Guillain Barre Syndrome : चंद्रपुर जिले में ‘गुइलेन बॅरे सिंड्रोम’ (GBS) का पहला मामला सामने आया है। पोंभुर्णा तालुका के चेक ठाणेवासना गांव की 12 वर्षीय बच्ची साक्षी इस दुर्लभ बीमारी से ग्रसित पाई गई है। फिलहाल, नागपुर के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज में उसका इलाज जारी है, लेकिन उसकी हालत चिंताजनक बनी हुई है। इस बीमारी के महंगे इलाज से गरीब माता-पिता आर्थिक संकट में हैं।
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कैसे सामने आया मामला?
साक्षी, जो चेक ठाणेवासना की जिला परिषद स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ती है, 1 जनवरी को अचानक बीमार पड़ गई। उसकी तबीयत बिगड़ने के बाद 4 जनवरी को उसे पहले पोंभुर्णा ले जाया गया, फिर चंद्रपुर और अंततः नागपुर रेफर किया गया। नागपुर में मेडिकल जांच में पुष्टि हुई कि उसे GBS हो चुका है।
GBS क्या है और कैसे फैलता है?
GBS एक दुर्लभ बीमारी है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करती है। इस सिंड्रोम का मुख्य कारण अभी तक पूरी तरह समझा नहीं गया है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, यह आमतौर पर किसी वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण के बाद विकसित होता है। इसके लक्षणों में मांसपेशियों की कमजोरी, थकान, झुनझुनी, पैरों से हाथों और चेहरे तक फैलने वाली संवेदनशीलता की समस्या, यहां तक कि लकवे जैसी स्थिति शामिल हो सकती है।
स्वास्थ्य विभाग को मामले की जानकारी तक नहीं!
इस गंभीर बीमारी का मामला सामने आने के बावजूद, पोंभुर्णा पंचायत समिति के गट विकास अधिकारी को इसकी कोई जानकारी नहीं थी। आश्चर्य की बात यह है कि जिला स्वास्थ्य विभाग भी इस विषय पर चुप्पी साधे हुए है। आखिरकार प्रशासन ने इस जानकारी को छिपाने की कोशिश क्यों की, यह सवाल खड़ा होता है।
गांव में जांच अभियान शुरू
जिला स्वास्थ्य विभाग ने सतर्कता बरतते हुए चेक ठाणेवासना, दिघोरी, गंगापुर और नवेगांव मोरे गांव के नागरिकों के रक्त के नमूने लिए हैं। साथ ही, गांव के जल स्रोतों की भी जांच की गई है। फिलहाल अन्य लोगों में GBS के लक्षण नहीं पाए गए हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग अभी भी जांच में जुटा हुआ है।
गरीब परिवार के सामने आर्थिक संकट
GBS का इलाज बेहद खर्चीला है। साक्षी के पिता एक खेतिहर मजदूर हैं, जबकि मां मजदूरी कर परिवार चलाती हैं। ऐसे में बच्ची के इलाज का खर्च उनके लिए बड़ी चुनौती बन गया है।
स्वास्थ्य विभाग को सख्त कदम उठाने की जरूरत
GBS से महाराष्ट्र में लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग को गंभीरता से इस पर ध्यान देना होगा। सरकार को न केवल जागरूकता बढ़ानी चाहिए, बल्कि जरूरतमंद मरीजों के इलाज के लिए आर्थिक सहायता भी प्रदान करनी चाहिए।