एक अनोखी और प्रेरणादायक घटना में, चंद्रपुर जिले के राजूरा वनपरिक्षेत्र के आरक्षित जंगलों में शनिवार, 5 अप्रैल को कुल 340 🔍भारतीय स्टार कछुओं को आज़ादी की सांस दी गई। ये सभी कछुए पहले अवैध वन्यजीव व्यापार या बंदीवास से मुक्त कर पुनर्वसन परियोजना के अंतर्गत उपचारित किए गए थे। अब ये अपनी प्राकृतिक दुनिया में लौट चुके हैं।
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वन्यजीव संरक्षण का जीता-जागता उदाहरण
यह मिशन 🔍महाराष्ट्र वनविभाग और🔍 RESQ चैरिटेबल ट्रस्ट के संयुक्त प्रयासों से संभव हुआ। पुणे के बवधन स्थित वन्यजीव ट्रांजिट ट्रीटमेंट सेंटर में इन कछुओं को खास पुनर्वसन प्रक्रियाओं से गुज़ारा गया। जहां इन्हें स्वच्छ पर्यावरण, प्राकृतिक आहार और सूर्यप्रकाश जैसी मूलभूत सुविधाएं दी गईं, जो बंदीवास में इन्हें नसीब नहीं थीं।
कछुओं की ‘नई ज़िंदगी’ की कहानी
कुल 441 कछुओं में से 340 कछुए पूरी तरह स्वस्थ होकर अब जंगल में लौट चुके हैं। बाकियों का उपचार व पुनर्वसन अभी जारी है। इन कछुओं के लिए विशेष रूप से बनाए गए बाह्य अधिवास में उन्हें प्राकृतिक भोजन, ग्रीष्म ताप नियंत्रण और सामाजिकता जैसे पहलुओं से परिचित कराया गया। वजन, कवच की मजबूती, भोजन की आदतें और गतिविधियों की लगातार निगरानी की गई ताकि उनकी पूर्ण रूप से वापसी सफल हो।
900 किलोमीटर की रोमांचक यात्रा
पुनर्वसन केंद्र से इन कछुओं ने लगभग 900 किलोमीटर की लंबी यात्रा तय की और अब वे राजूरा के आरक्षित जंगलों में एक सुरक्षित और प्राकृतिक आवास में स्वतंत्र रूप से विचरण कर रहे हैं। यह वही क्षेत्र है जहां पहले भी छोटे स्तर पर पुनर्स्थापन किए गए थे और कछुओं में प्रजनन और वृद्धि जैसे सकारात्मक संकेत देखे गए।
बच्चों की भागीदारी ने बढ़ाई रंगत
इस पुनर्स्थापन अभियान को खास बना दिया राजूरा के आदर्श विद्यालय के करीब 100 छात्रों ने, जिन्होंने इस पूरे कार्यक्रम में उत्साहपूर्वक भाग लिया। इन बच्चों की उपस्थिति न सिर्फ पर्यावरण शिक्षा की मिसाल बनी, बल्कि वन्यजीव संरक्षण के प्रति जागरूकता भी फैलाई।
वन अधिकारियों का दावा: यह सिर्फ पुनर्स्थापन नहीं, एक वैज्ञानिक क्रांति है!
🔍 चंद्रपुर के प्रधान मुख्य वनसंरक्षक श्री जितेंद्र रामगावकर ने बताया कि कछुओं की जंगल में पुनर्स्थापना के बाद उनके व्यवहार और अनुकूलन क्षमता पर महत्वपूर्ण जानकारी मिल रही है। आगे की बैच के लिए नई टैगिंग प्रणाली पर काम किया जा रहा है जिससे कछुओं की गतिविधियों पर और बारीकी से नज़र रखी जा सकेगी।
वहीं उपवनसंरक्षक श्वेता बोड्डू ने कहा, “यह सिर्फ एक पुनर्स्थापन नहीं, बल्कि कल्याण-केंद्रित, विज्ञान-आधारित वन्यजीव संरक्षण का आदर्श उदाहरण है। महाराष्ट्र सिर्फ कड़ी कार्रवाई तक सीमित नहीं है, बल्कि दीर्घकालीन पुनर्बहाली को भी उतना ही महत्व दे रहा है।”
इस ऐतिहासिक घटना से यह स्पष्ट है कि अगर इच्छाशक्ति, विज्ञान और संवेदनशीलता साथ हों, तो प्रकृति को उसकी खोई हुई संपदा लौटाई जा सकती है। चंद्रपुर का जंगल अब स्टार कछुओं के लिए एक नई उम्मीद और सुरक्षित आश्रय बन चुका है।