चंद्रपुर जिले में हाल ही में आयोजित ‘वनशक्ति’ कार्यशाला के दौरान महाराष्ट्र के वनमंत्री गणेश नाईक ने ताडोबा क्षेत्र के पर्यटन को पंचतारांकित (फाइव स्टार) बनाने की जोरदार वकालत की। लेकिन इस भव्य योजना के पीछे एक गहरी विडंबना छिपी रह गई— बाघ के हमले में मारे गए 11 ग्रामीणों के परिवारों से न तो उन्होंने मुलाकात की, न ही उनके दुख-दर्द को साझा किया।
चंद्रपुर के कई जनप्रतिनिधि भी वनमंत्री की इसी राह पर चलते नजर आ रहे हैं— मानव-वन्यजीव संघर्ष की जटिल समस्या से नजरें फेरते हुए, पूरा ध्यान व्याघ्र पर्यटन यानी टाइगर टूरिज्म के चमकदार सपनों पर केंद्रित कर दिया गया है। “स्थानीय रोजगार” के नाम पर टायगर सफारी प्रकल्प को आगे बढ़ाने की तैयारी में प्रशासन और राजनीति एक साथ खड़े हैं।
पर्यटन को नया आयाम देने के नाम पर चंद्रपुर जिले में ₹580 करोड़ की लागत से प्रस्तावित टायगर सफारी प्रकल्प को राज्य सरकार ने हरी झंडी दे दी है। मुंबई के मंत्रालय में आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में राज्य के वनमंत्री गणेश नाईक और चंद्रपुर के विधायक किशोर जोरगेवार की अगुवाई में इस परियोजना को तात्कालिक प्राथमिकता देने का निर्णय लिया गया।
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इस सफारी के तहत विदेशी और देसी प्राणियों के थीम-आधारित दर्शन ज़ोन बनाए जाएंगे, जिनमें कांगारू, जगुआर, रंग-बिरंगे पक्षी आदि शामिल होंगे। इसके अलावा वाहन सफारी, चिल्ड्रन पार्क और ईको-टूरिज्म सुविधाएं भी विकसित की जाएंगी।
एक और तस्वीर: वाघ हमलों के शिकार ग्रामीणों को कोई पूछने वाला नहीं!
जिस समय वनमंत्री पर्यटन को “पंचतारांकित” स्वरूप देने की बातें कर रहे थे, उसी दौरान ताडोबा के सीमावर्ती गावों में बाघ के हमलों में जान गंवाने वाले 11 ग्रामीणों के घरों में सन्नाटा पसरा था।
ना कोई मंत्री वहां पहुंचा, ना कोई स्थानीय जनप्रतिनिधि संवेदना जताने गया।
प्रश्न उठता है — क्या सरकार और प्रशासन की प्राथमिकताएं अब इकोनॉमी ओवर इम्पैथी की दिशा में बढ़ गई हैं?
रोजगार की आड़ में ‘सफारी इकोनॉमिक्स’
बैठक में विधायक जोरगेवार ने सफाई दी कि यह परियोजना चंद्रपुर के युवाओं को रोजगार देगी और लाखों पर्यटकों को आकर्षित करेगी। लेकिन स्थानीय समुदाय, जो मन-वन्यजीव संघर्ष से सीधे प्रभावित है, उनकी सुरक्षा और पुनर्वास की रणनीति कहीं चर्चा का विषय नहीं बनी।
“बाघ हमलों से जान बचाने की योजना नहीं, पर बाघ को पिंजरे में दिखाने का बड़ा बजट है” — एक ग्रामीण की यह टिप्पणी पूरी तस्वीर बयां कर देती है।
क्या वाकई चंद्रपुर को चाहिए यह सफारी?
इस प्रकल्प से कुछ फायदे तो स्पष्ट हैं — निश्चित बाघ दर्शन का लालच पर्यटकों को लुभाएगा, विदेशी प्राणियों की मौजूदगी पर्यटन को इंटरनॅशनल टच देगी, स्थानीय व्यापार और रोजगार को नया मोर्चा मिलेगा… मगर, जिनकी जमीनें ली जाएंगी, जिनके जंगल सिकुड़ेंगे, और जिनकी जान को रोज़ाना बाघ से खतरा है — क्या उनके लिए ये फायदे हैं या नई मुसीबतें?
पर्यटन बनाम मानवता
चंद्रपुर की टायगर सफारी परियोजना एक ओर विकास, आर्थिक लाभ और ग्लोबल पर्यटन का चेहरा बन सकती है, लेकिन दूसरी ओर यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि:
क्या हम विकास की दौड़ में संवेदनशीलता और न्याय को पीछे छोड़ रहे हैं?
क्या मानव जीवन की कीमत, अब टूरिज्म पैकेज से कम हो गई है?
अगर इस परियोजना को लागू करते समय सामाजिक न्याय, पर्यावरणीय संतुलन और प्रभावित परिवारों के पुनर्वास का ध्यान नहीं रखा गया, तो यह सफारी विकास नहीं, बल्कि संवेदनहीनता की एक भव्य नुमाइश बनकर रह जाएगी।