चंद्रपुर जिले में बाघ के हमलों की खौफनाक शृंखला थमने का नाम नहीं ले रही है। आज गुरुवार सुबह एक और दर्दनाक घटना सामने आई जिसमें बाघ ने एक काका-भतीजे पर हमला कर दिया। इस हमले में काका की मौके पर ही मौत हो गई जबकि भतीजा गंभीर रूप से घायल हो गया है।
Whatsapp Channel |
यह भीषण घटना मुल तहसील के करवन गांव के पास कोसंबी चक क्षेत्र में घटी, जब गुरुवार सुबह लगभग 7 बजे कुछ ग्रामीण पशु चराने खेतों की ओर गए थे। मृतक की पहचान बंडू परशुराम उराडे (55) के रूप में हुई है और घायल युवक का नाम किशोर मधुकर उराडे (35) है।
दबा बैठा बाघ, अचानक जानलेवा हमला
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, काका-भतीजा समेत कुछ अन्य ग्वाले खेतों में पशु चरा रहे थे। तभी करीब 8 बजे झाड़ियों में छिपा बैठा बाघ अचानक बंडू उराडे पर झपटा और उन्हें वहीं मार डाला। पास ही मौजूद किशोर उराडे ने काकाजी को बचाने की कोशिश की लेकिन बाघ के प्रहार से वे गंभीर रूप से घायल हो गए। संघर्ष के बाद बाघ जंगल में भाग गया।
घटनास्थल पर खून का सागर, गांव में हड़कंप
अन्य ग्वालों ने शोर मचाकर ग्रामीणों और प्रशासन को सूचना दी। घटनास्थल पर पहुंचे ग्रामीणों को बंडू उराडे का शव खून से सना मिला, जबकि किशोर को तत्काल मुल के अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस घटना ने पूरे करवन क्षेत्र में भय का माहौल पैदा कर दिया है।
13 दिन, 9 मौतें – बाघों के हमलों का आंकड़ा भयावह
इस ताजा घटना ने चंद्रपुर जिला प्रशासन और वनविभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बीते 13 दिनों में बाघों के हमलों में 9 लोगों की मौत हो चुकी है। अकेले मुल तहसील में 4 मौतें हुई हैं।
बाघ हमले की श्रृंखला – दिन-ब-दिन बढ़ती दहशत:
10 मई: सिंदेवाही तहसील में एक ही दिन में तीन महिलाओं की मौत
11 मई: मुल तहसील में एक महिला की मौत
12 मई: फिर मुल तहसील में एक महिला की मौत
14 मई: चिमूर तहसील में एक महिला की मौत
18 मई: नागभीड़ और मुल तहसील में दो पुरुषों की मौत
22 मई: करवन (मुल) में काका की मौत, भतीजा गंभीर घायल
वन विभाग पर उंगली – क्या यह प्रशासनिक विफलता नहीं?
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि वे लंबे समय से बाघों के बढ़ते खतरे को लेकर वन विभाग को चेताते आ रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। लोगों में भारी आक्रोश है। वनविभाग की निष्क्रियता और लचर निगरानी प्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।
ग्रामीणों की मांग – बाघ का तत्काल बंदोबस्त हो
इस खतरनाक स्थिति से निजात पाने के लिए ग्रामीणों ने वन अधिकारियों के समक्ष बाघ को पकड़ने या गोली मारने की मांग की है। दहशत के कारण खेतों में काम करना, जंगल से चारा लाना और पशु चराना ग्रामीणों के लिए जानलेवा बन गया है।
चंद्रपुर, जिसे ‘ग्रीन गोल्ड’ का इलाका कहा जाता है, अब ‘डेथ जोन’ बनता जा रहा है। लगातार हो रही मौतें केवल वन्यजीवों के संरक्षण बनाम मानव सुरक्षा के सवाल को फिर से चर्चा में ला रही हैं। इस स्थिति को संभालने के लिए केवल वन्यजीव संरक्षण नहीं, बल्कि ठोस मानव-सुरक्षा नीति, संवेदनशील योजना और सक्रिय कार्रवाई की जरूरत है। यदि वन विभाग जल्द कुछ नहीं करता, तो यह हिंसक चक्र और विकराल रूप ले सकता है।
प्रशासन को जागना होगा, केवल मृतकों की संख्या गिनने से कुछ नहीं होगा। जब तक बाघों के साथ मानव टकराव की जड़ में जाकर समाधान नहीं निकाला जाएगा, तब तक चंद्रपुर की धरती पर ऐसी रक्तरंजित कहानियां दोहराती रहेंगी।
