राजेंद्र परतेकी: शिक्षक जिन्होंने शिक्षा के प्रति समर्पण की मिसाल कायम की
चंद्रपुर जिले के जिवती तालुका के अतिदुर्गम, मागास और आदिवासीबहुल क्षेत्र में स्थित पालडोह गांव की एक छोटी सी उच्च प्राथमिक शाला में शिक्षा के क्षेत्र में एक अनूठी क्रांति हुई है। इस बदलाव का श्रेय स्कूल के मुख्याध्यापक राजेंद्र उदेभान परतेकी को जाता है, जिन्होंने इस छोटे से गांव के बच्चों के जीवन में शिक्षा की ज्योत जलाई है। 365 दिन लगातार चलने वाली इस स्कूल में बच्चे विभिन्न विषयों में निपुण हो रहे हैं, और अब ये बच्चे न केवल खुद शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं बल्कि अन्य छात्रों को भी पढ़ाने में सहयोग कर रहे हैं। teacher’s day
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एक गांव, एक स्कूल, और शिक्षा की नई राह
जिवती तालुका, जो तेलंगाना और महाराष्ट्र की सीमा के करीब नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आता है, आदिवासी समुदाय के कोलाम जाति के बच्चों के लिए शिक्षा का स्तर हमेशा से एक चुनौती रही है। इस क्षेत्र में पढ़ाई-लिखाई का अभाव था, लेकिन राजेंद्र परतेकी की अडिग मेहनत और उनकी टीम ने इसे संभव कर दिखाया। जहां कभी चार कक्षाएं और केवल 22 छात्रों की उपस्थिति होती थी, आज वहां 9 कक्षाएं हैं और 183 छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। यह बदलाव पूरे राज्य के लिए एक मिसाल बन चुका है।
अनूठी शिक्षा पद्धति: 365 दिन का स्कूल
इस स्कूल में 365 दिन पढ़ाई होती है, यानी बिना किसी छुट्टी के। पिछले आठ सालों से बच्चे रोज़ाना इस स्कूल में खुशी-खुशी आते हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ-साथ सांस्कृतिक गतिविधियां, खेलकूद और अन्य सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों के जरिए बच्चों का सर्वांगीण विकास हो रहा है।
बच्चों की सुबह की शुरुआत खेलकूद से होती है, जिसमें दौड़, योगा, थालीफेंक, गोला फेंक और खो-खो जैसे व्यक्तिगत और टीम स्पोर्ट्स शामिल हैं। सुबह नौ बजे पूरक मार्गदर्शन कार्यक्रम शुरू होता है, जहां छात्रों को विषयों पर गहन जानकारी दी जाती है।
शिक्षा में तकनीकी का अनोखा संगम
इस स्कूल की सबसे खास बात यह है कि पारंपरिक शिक्षा पद्धतियों की जगह यहां नए तकनीकी साधनों का उपयोग हो रहा है। मोबाइल, स्क्रीन मिररिंग, स्मार्ट टीवी, प्रोजेक्टर और कंप्यूटर का इस्तेमाल कर शिक्षा को रोचक और प्रभावी बनाया गया है। यहां तक कि शिक्षक की अनुपस्थिति में भी बच्चे खुद स्कूल को चलाते हैं, जो इस शिक्षा प्रणाली का अद्वितीय पहलू है।
समाज और स्कूल: सामूहिक प्रयास से बनी मिसाल
इस विद्यालय की सफलता में समाज का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जब शाला के लिए नए कक्ष बनाने का मुद्दा सामने आया, तो गरीब किसान विठ्ठल माने ने स्कूल को अपनी जमीन दी। फिर लोगों ने मिलकर 2 लाख रुपये जुटाए और स्कूल की दो मंजिला इमारत बनाई। आज यह स्कूल क्षेत्र के बच्चों के लिए एक प्रेरणादायक केंद्र बन चुका है। यहां परभणी और नांदेड़ जैसे शहरों से भी बच्चे आकर पढ़ाई कर रहे हैं।
शिक्षक दिवस पर प्रेरणा का स्रोत
शिक्षक दिवस के अवसर पर, राजेंद्र परतेकी जैसे शिक्षकों का योगदान और समर्पण हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि अगर एक शिक्षक ठान ले तो वह अकेले दम पर पूरे समाज की दिशा बदल सकता है। उनके नेतृत्व में चल रही पालडोह की यह स्कूल अब न केवल गांव बल्कि पूरे राज्य में शिक्षा का एक आदर्श उदाहरण बन चुकी है।