Warora Assembly Elections कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं पूर्व सांसद स्वर्गीय बालू धानोरकर के निधन के बाद जब बीते लोकसभा चुनाव में प्रतिभा धानोरकर ने कांग्रेस की सीट पर चुनाव लड़ा तो जिले के पालकमंंत्री सुधीर मुनगंटीवार को ढाई लाख से अधिक के वोट से हरा दिया। इस करारी हार के बाद प्रतिभा धानोरकर का कांग्रेस में कद बढ़ गया। इसके बावजूद उन्हें अपने भाई प्रवीण काकडे के लिए वरोरा से कांग्रेस की टिकट दिलाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी। यही वजह है कि काकडे का नाम कांग्रेस की अंतिम सूची में ही जारी हो पाया। चर्चा है कि वरोरा सीट के बदले में सांसद धानोरकर को चंद्रपुर और बल्लारपुर जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर समझौता करना पड़ा। इसके चलते वहां कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार के समर्थकों को टिकट मिल गई। ऐसे में अब प्रवीण काकडे को जीताकर लाना सांसद प्रतिभा धानोरकर के लिए प्रतिष्ठा दांव पर लगाने का मुद्दा बन गया है। दूसरी ओर भाजपा में बगावत करने वाले 2 बड़े नेताओं ने नामांकन भरकर चुनावी मैदान में ताल ठोंककर खड़े हैं। महागठबंधन से सीट पाने की आस लगाये बैठे मशहूर नेत्रविशेषज्ञ डॉ. चेतन खुटेमाटे के अलावा शिवसेना से बागी हुए मुकेश जीवतोडे भी कांग्रेस के लिए संकट का कारण बन सकते हैं।
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भाभी की रणनीति के खिलाफ जेठ उतर गये मैदान में
पूर्व सांसद स्व. बालू धानोकर के बड़े भाई अनिल धानोरकर बीते अनेक वर्षों से राजनीति में सक्रिय है। वे नगराध्यक्ष भी रह चुके हैं। कांग्रेस को अब घर से ही चुनौतियां मिल रही है। क्योंकि एक ओर जहां अनिल धानोरकर की टिकट की दावेदारी को खारिज करते हुए उनकी भाभी अर्थात सांसद प्रतिभा धानोरकर ने अपने भाई प्रवीण काकडे को कांग्रेस का टिकट दिलाया तो जेठ अनिल धानोरकर काफी खफा हो गये। अंतत: मजबूर होकर उन्होंने वंचित बहुजन आघाड़ी का दामन थाम लिया। पर्चा भरने के बाद अब वे चुनावी मैदान में डटे हुए हैं। ऐसे में वरोरा का चुनावी रण काफी दिलचस्प होने जा रहा है। क्योंकि प्रतिभा धानोरकर के इस्तिफे के बाद यहां किसी विधायक के खिलाफ संघर्ष नहीं है। इसलिए यह चुनावी संघर्ष बहुरंगी नजर आ रहा है।
भाजपा के बागी बटोर सकते हैं कांग्रेस के वोट
एक ओर जहां प्रवीण काकडे को टिकट दिये जाने के कारण कांग्रेस के कुछ सदस्य नाराज है तो दूसरी ओर डॉ. चेतन खुटेमाटे ने पर्चा भरकर ओबीसी वोटों में सेंध लगाने की तैयारी कर ली है। वहीं भाजपा की ओर से वरोरा की टिकट पूर्व मंत्री संजय देवतले के पुत्र करण देवतले को दी गई। इसके चलते भाजपा से नाराज हुए और मुस्लिम समूदाय में गहरी पैठ रखने वाले अहेतेशाम अली ने बगावत करते हुए प्रहार जनशक्ति पार्टी की ओर से अपना नामांकन पेश कर दिया। जबकि मनसे से बीते कुछ वर्ष पूर्व भाजपा में आये रमेश राजुरकर भी भाजपा के फैसले से सहमत नहीं हुए। उन्होंने निर्दलीय के रूप में नामांकन भरकर अपने बागी तेवर दिखा दिये। महागठबंधन के सहयोगी उद्धव ठाकरे के शिवसेना से बगावत कर मुकेश जीवतोडे ने भी पर्चा भरा। वहीं कांग्रेस नेता दिनेश चोखारे भी मैदान में कूद पड़े हैं। इस तरह के बहुरंगी रणनीतियों में किसी भी प्रत्याशी के स्पष्ट रूप से जीतने का आभास यहां नजर नहीं आता। बागियों की ओर से कांग्रेस के वोट बटोरे जाने की पूर्ण संभावना है।
कांग्रेस अपना गढ़ बरकरार रख पाएगी या नहीं ?
बीते चुनावों के इतिहास पर यदि गौर किया जाएं तो यह स्पष्ट होता है कि वरोरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र कभी भी भाजपा के लिए फतह करने योग्य नहीं रहा। एक बार भी भाजपा को वरोरा सीट पर जीत नहीं मिल पाई है। जबकि कांग्रेस को यहां से 10 बार विधायक बनने का मौका मिला है। एक-एक बार जनता दल, निर्दलीय और शिवसेना ने जीत हासिल की है। शुरूआत से लेकर अब तक यहां दादासाहेब देवतले, नीलकंठराव शिंदे , मोरेश्वर टेमुर्डे,
संजय देवतले, बालू धानोरकर, प्रतिभा धानोरकर विधायक बने हैं।
कौन-कौन हैं चुनावी मैदान में ?
प्रवीण सुरेश काकडे (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस), करणं संजय देवतले (भारतीय जनता पार्टी), रमेश महादेवराव राजुरकर (भारतीय जनता पार्टी एवं निर्दलीय), अहेतेशाम सदाकत अली (प्रहार जनशक्ती), अनिल नारायण धानोरकर (वंचित बहुजन आघाडी एवं निर्दलीय), चेतन गजानन खुटेमाटे (निर्दलीय), मुकेश मनोज जिवतोडे (शिवसेना उबाठा एवं निर्दलीय), दिनेश दादाजी चोखारे (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस एवं निर्दलीय), विनोद कवडूजी खोब्रागडे (निर्दलीय), अमोल दिलीप बावणे (निर्दलीय), राजू मारोती गायकवाड (निर्दलीय), जयंत मोरेश्वर टेमुर्डे (निर्दलीय), श्रीकृष्ण धुमदेव दडमल (निर्दलीय), रंजना मनोहर पारशिवे (निर्दलीय), महेश पंढरीनाथ ठेंगणे (निर्दलीय), मुनेश्वर बापूराव बदखल (निर्दलीय), प्रवीण धोंडोजी सूर (मनसे), जयवंत नथुजी काकडे (बहुजन रिपब्लिकन सोशालिस्ट पार्टी), प्रवीण मनोहर खैरे (निर्दलीय), नरेंद्र नानाजी जीवतोडे (निर्दलीय), सुभाष जगन्नाथ ठेंगणे (निर्दलीय), अतुल ईश्वर वानकर (निर्दलीय), सागर अनिल वरघणे (बहुजन समाज पक्ष), महेश पंढरीनाथ ठेंगणे (निर्दलीय), रमेश कवडूजी मेश्राम (गोंडवाना गणतंत्र पार्टी एवं निर्दलीय), नामदेव किसनाजी दुमणे (निर्दलीय), अंबर दौलतराव खानेकर (राष्ट्रीय समाज पक्ष), सेवकदास कवडूजी बरके (पीपल्स पार्टी ऑफ इंडिया (डेमोक्रेटिक), सुमितकुमार नामदेव चंद्रागडे (निर्दलीय), तारा महादेवराव काले.