Political analysis : Chandrapur District Assembly 2024 Victory: How Factionalism Led to Congress Defeat and BJP’s Triumph
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चंद्रपुर जिले में कांग्रेस की गुटबाजी की परंपरा नई नहीं है। वर्तमान में यह विरोधी दल नेता विजय वडेट्टीवार और सांसद प्रतिभा धानोरकर के बीच देखी जा रही है। इसके पूर्व गुटबाजी को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नरेश पुगलिया और स्व. शांताराम पोटदुखे के बीच देखी गई। इस बार के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की गुटबाजी खुलकर सामने आयी। जहां वडेट्टीवार समर्थक उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा था, वहां धानोरकर गुट शांत बैठा हुआ था। और जहां धानोरकर गुट का प्रत्याशी चुनाव लड़ रहा था, वहां वडेट्टीवार गुट शांत नजर आया। किंतु इसी शांति ने चंद्रपुर जिले से कांग्रेस का सूपड़ा साफ करने में अहम रोल अदा किया। कांग्रेस जिलाध्यक्ष व विधायक सुभाष धोटे की सीट तक नहीं बच पायी। वहीं कांग्रेस का गढ़ रहे वरोरा में इतनी बुरी हार मिली कि कांग्रेस को तीसरे क्रमांक पर धकेल दिया गया। चंद्रपुर में कांग्रेस कमबैक करने की स्थिति में होकर भी कांग्रेसी नेताओं के आपसी झगड़े और समझौतों की राजनीति ने यह सीट भी गंवा दी। बेशक भाजपा के नेताओं ने जमकर तैयारी की, उनकी पूरी टीम सक्रिय रही, एकजूट होकर अंतिम समय तक लड़ते रहे और अंत में चंद्रपुर जिले के 6 में से 5 सीटों पर जीत हासिल कर अपना परचम लहरा दिया।
♦ Chandrapur Assembly…
निर्दलीय विधायक रहे किशोर जोरगेवार ने पिछली बार के चुनावों में 72 हजार से अधिक वोटों की लीड हासिल की थी। इस बार भले ही वे अपने इस लीड को कायम नहीं रख पाएं, किंतु 22,804 वोटों से मिली जीत ने कांग्रेस के मनसुबों को दफन कर दिया है। इस बार जोरगेवार को जहां 106841 वोटों पर समाधान करना पड़ा, वहीं नये-नवेले कांग्रेस प्रत्याशी को 84,037 वोट मिले। भाजपा के बागी ब्रिजभूषण पाझारे 14,598 बटाेर पाएं। जबकि कांग्रेस के बागी राजू झोडे महज 5,711 वोटों पर ही सिमट गये। विधायक जोरगेवार का भाजपा से अंदरुनी विरोध होने के बावजूद कांग्रेस की गुटबाजी उन पर हावी नहीं हो पायी। क्योंकि अनेक कांग्रेसी जोरगेवार के लिए अंदरुनी तौर पर काम कर रहे थे। और कांग्रेस का एक बड़ा खेमा प्रवीण पडवेकर को वडेट्टीवार समर्थक होने के चलते या तो निष्क्रिय रहा या तो दिखावे भर के लिए साथ रहा। ऐसे में पूरी शक्ति के साथ कांग्रेस को जीताकर लाने की ललक इस बार चंद्रपुर कांग्रेस में नजर नहीं आयी। और भाजपा नेता जोरगेवार ने अपना परचम लहरा दिया।
♦ Ballarpur Assembly…
भाजपा के दिग्गज नेता एवं बरसों से मंत्री पद पर रहे सुधीर मुनगंटीवार को टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने इस बार भी कोई खास रणनीति नहीं अपनाई। पिछली बार डॉ. विश्वास झाडे को मैदान में उतारा और कांग्रेस से टिकट मांगने वाले राजू झोडे की उपेक्षा की। झोडे और झाडे में वोटों का बंटवारा हुआ तो आसानी से मुनगंटीवार जीत गये। यही पैटर्न इस बार भी काम आया। डॉ. अभिलाषा गावतूरे को कांग्रेस की टिकट नकार दी गई और संतोषसिंह रावत को टिकट दे दी गई। इससे पुन: वोटों का बंटवारा हुआ और भाजपा ने अपनी पूरी शक्ति के साथ बल्लारपुर विधानसभा क्षेत्र में मेहनत की तथा जीत गये। इस बार मुनगंटीवार को 1,05,969 वोट, संतोष रावत को 79,984 तथा अभिलाषा गावतूरे को 20,935 वोट मिले। वंचित के सतीश मालेकर भी 5075 वोट लेने में सफल रहे। मुनगंटीवार 25,985 वोटों की लीड के साथ जीत हासिल की और 7वीं बार विधायक बन गये।
♦ Bramhapuri Assembly…
कांग्रेस के दिग्गज नेता व विधायक विजय वडेट्टीवार को इस बार तब झटका लगा जब वोटों की गणना के समय भाजपा प्रत्याशी क्रिष्णलाल सहारे उनके बराबरी पर चलते दिखाई दिये। लंबे समय तक राजनीति पर पकड़ बनाने वाले वडेट्टीवार को भी इस बार लीड पाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। हालांकि वे अंतिम समय में जीत गये। परंतु यह उनके राजनीतिक भविष्य के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है। जहां विजय वडेट्टीवार को 1,14,196 वोट मिले, वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी भाजपा प्रत्याशी क्रिष्णलाल सहारे को 1,00,225 वोट और वंचित के डॉ. राहुल मेश्राम को 4,005 वोट मिले। महज 13,971 वोटों की लीड पर ही को समाधान करना पड़ा। उनकी जीत से जिला कांग्रेसमुक्त होने से बच गया। वर्ष 2019 में विजय वडेट्टीवार को 18,549 वोटों की लीड थी। इससे यह साफ होता है कि वडेट्टीवार का जनसमर्थन घट गया है।
♦ Rjura Assembly…
एक वर्तमान विधायक सुभाष धोटे और 3 पूर्व विधायक एड. वामनराव चटप, एड. संजय धोटे, सुदर्शन निमकर ऐसे कुल 4 विधायकों की रणनीति को पछाड़ा गया। भाजपा नेता देवराव भोंगले जो कि करीब डेढ़ वर्ष पूर्व ही राजुरा में सक्रिय हुए इन पर बाहरी पार्सल का थप्पा लगाया गया। परंतु भोंगले ने कांग्रेस जिलाध्यक्ष सुभाष धोटे की सारी रणनीतियों को मिट्टी में दफन करते हुए अपने जीत का परचम लहरा दिया। मोदी लहर में भी पिछली बार जीतकर आने वाले सुभाष धोटे इस बार टिक नहीं पाये। इस बार सुभाष धोटे को केवल 69,828 वोट मिले। जबकि 72,882 वोट लेकर भाजपा प्रत्याशी देवराव भोंगले विजयी हुए। वहीं एड. वामनराव चटप केवल 55,090 वोट ही ले पाएं। खास बात यह रही कि कांग्रेस नेता धोटे करीब 7 हजार फर्जी मतदाताओं के पंजीयन के मामले को पूरजोर ढंग से न तो किसी सभा में मुद्दा बना सकें और न ही प्रशासन के माध्यम से किसी आरोपी को पकड़वाने में सफल हो सकें। वहीं गड़चांदूर में एक भाजपाई के मकान में से मिले 62 लाख नकद रुपयों को लेकर भी कांग्रेस चुप्पी साधे बैठी रही। जबकि भाजपा नेता एड. संजय धोटे एवं सुदर्शन निमकर की ओर से देवराव भोंगले को उम्मीदवारी दिये जाने के विरोध में पत्रकार परिषद और शिकायतों का दौर चलने के बावजूद इन्होंने अपना नामांकन पत्र वापिस ले लिया। भाजपा का अंतर्गत विरोध खत्म करने में भाजपा सफल रही। किंतु कांग्रेस अपने पुराने ढर्रे पर चलती रही और अंतत: हार गई। अंतिम राउंड में भोंगले कैसे जीत गये, इस पर कांग्रेस वासियों को शॉक लग गया है।
♦ Warora Assembly…
29 वर्ष के युवक एवं भाजपा प्रत्याशी करण देवतले ने इस बार के चुनाव में पहली दफा ही हिस्सा लिया। वरोरा से वे जीतने में कामयाब रहे। कांग्रेस के अंतर्गत कलह और परिवारवाद की भेंट चढ़ गये वरोरा में राजनीतिक गतिविधियां जनता के रोष का कारण बनी। यही वजह है कि वरोरा में कांग्रेस प्रत्याशी प्रवीण काकडे तीसरे क्रमांक पर पहुंच गये। कांग्रेस सांसद प्रतीभा धानोरकर की जीद पर उनके सगे भाई प्रवीण काकडे को टिकट दिया गया। लेकिन वे अपने भाई को जीताने में बुरी तरह से नाकाम रही। केवल 25,048 वोट लेकर काकडे तीसरी पर पहुंच गये। वहीं भाजपा प्रत्याशी करण देवतले को 65,170 वोट तथा निर्दलीय प्रत्याशी मुकेश जीवतोडे को 47,720 वोट हासिल हुए। 15,450 वोटों की लीड से जीते करण देवतले पूर्व मंत्री स्व. संजय देवतले के पुत्र हैं। यहां कांग्रेस का अहम और परिवारवाद ने कांग्रेस को डूबो दिया।
♦ Chimur Assembly…
भाजपा नेता बंटी भांगडिया के शक्ति के आगे इस बार भी कांग्रेस ने घूटने टेक दिये। चिमूर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा हुई। इसके बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भी सभा हुई। लेकिन कांग्रेस ने यहां कोई कमाल नहीं कर दिखाया। इधर, ब्रम्हपुरी में विधायक विजय वडेट्टीवार अपने मतदाताओं को पृथक ब्रम्हपुरी जिला दिलाने का आश्वासन बांटते रहे। जबकि इन्हीं वडेट्टीवार ने चिमूर को जिला बनाने का भी आश्वासन दिया था। कांग्रेस की इस दोगली नीति का खामियाजा इस बार चिमूर वासियों ने सबक सिखाते हुए दे दिया। ब्रम्हपुरी को जिला बनाने का आश्वासन देने से चिमूर वासी खफा हो गये। पिछले चुनावों में भाजपा नेता बंटी भांगडिया ने 87,146 वोट लिये थे। 9,752 की लीड हासिल करते हुए उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी सतीश वारजुकर को हराया था। इस बार के चुनाव में सतीश वारजुकर को पटखनी देते हुए बंटी भांगडिया 9,853 वोटों की लीड से जीत गये। अर्थात 101 वोट पिछली बार से अधिक की लीड भांगडिया ने हासिल की। कांग्रेस इस बार भी हार गई और यह न केवल वारजुकर की हार है, बल्कि कांग्रेस के दिग्गज नेता विजय वडेट्टीवार की भी हार मानी जा रही है। क्योंकि किसी समय वडेट्टीवार स्वयं चिमूर के विधायक हुआ करते थे। इसके बावजूद वे अपने साथ वारजुकर को जीताने में नाकाम रहे।