भाजपा नेता ब्रिजभूषण पाझारे और देवराव भोंगले ने अपने राजनीतिक करिअर की शुरुआत लगभग एक ही समय पर की थी। इन दोनों नेताओं ने पूरी निष्ठा के साथ मंत्री सुधीर मुनगंटीवार का साथ दिया। हर चुनाव को जीतने और जीताने में अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी। बदले में उनका राजनीतिक करिअर निखरता चला गया। लेकिन वर्तमान में जहां ओबीसी वोटों की राजनीति करने वाले देवराव भोंगले राजुरा से जीतकर विधायक बन गये, वहीं अनुसूचित जाति से आने वाले ब्रिजभूषण पाझारे अर्श से फर्श पर आ गये। क्योंकि चंद्रपुर विधानसभा की सीट एससी के लिए रिजर्व थी। और ऐन समय पर भाजपा में प्रवेश कर गये निर्दलीय विधायक किशोर जोरगेवार के आगमन से यह सीट उन्हें दी गई तथा पाझारे को भाजपा से बगावत करना पड़ा और वे निर्दलीय होकर चुनाव जीत न पाएं। मंत्री मुनगंटीवार के 2 सिपहसालार में से एक का राजनीतिक भाग्य खुल गया और एक चौपट हो गये।
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भाजपा के युवा नेता तथा जिला परिषद के निर्माणकार्य व शिक्षा सभापति और जिप गटनेता देवराव विठोबा भोंगले का घुग्घुस के विकास कार्यों में बड़ा योगदान रहा है। यही वजह है कि कम उम्र में ही वर्ष 2000 में सरपंच के रूप में घुग्घुस की जनता ने उन्हें चुनकर दिया था। तब विदर्भ में सबसे कम उम्र के वे सरपंच बने थे। पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री हंसराज अहिर, राज्य के पूर्व वित्तमंत्री सुधीर मुनगंटीवार, पूर्व विधायक नाना शामकुले का हमेशा उन्हें मार्गदर्शन रहा। घुग्घुस के वार्ड क्र. 2 में रहनेवाले देवराव भोंगले एमए, बीएड की शिक्षा अर्जित की है। भारतीय जनता पार्टी के देवराव भोंगले जिला महामंत्री है। वर्ष 2007 से 2010 तक पंचायत समिती में सभापति के रूप में कामकाज संभाला। घुग्घुस के प्रयास लोक-कल्याणकारी संस्था के अध्यक्ष भी है। वर्ष 2012 में घुग्घुस क्षेत्र से देवराव ने जिला परिषद चुनाव लड़ा और निर्माण कार्य विभाग के सभापति बने थे। वर्ष 2017 में पोंभूर्णा तहसील के चिंतलधाबा से जिला परिषद चुनाव लड़कर वे जिला परिषद के अध्यक्ष बने। अब 2024 में राजुरा से विधायक बनने में सफल हो गये।
जबकि ब्रिजभूषण पाझारे ने भी वर्ष 2000 में अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। वे घुग्घुस के नकोडा – मारडा क्षेत्र के पंचायत समिति का चुनाव लड़कर सभापति बने और इसी क्षेत्र से वर्ष 2012 में जिला परिषद चुनाव लड़े और सभापति बन गये। फिर एक बार वर्ष 2017 में जिला परिषद चुनाव लड़कर समाजकल्याण के सभापति बने। पिछली बार जब विधानसभा चुनावों की गतिविधियां चल रही थी तो पाझारे को मंत्री मुनगंटीवार ने होल्ड पर रखा था, उन्हें आश्वसस्त किया गया था कि वर्ष 2024 में उन्हें भाजपा की टिकट दिलाई जाएगी। लेकिन अचानक विधायक किशोर जोरगेवार की भाजपा में हुई इंट्री से सारा खेल बिगड़ गया। पाझारे का राजनीतिक करिअर दांव पर लग गया। बगावत कर निर्दलीय चुनाव पाझारे लड़ तो पाएं लेकिन इस संघर्ष में उन्होंने अपना राजनीतिक कद खो दिया।
देवराव भोंगले से ब्रिजभूषण पाझारे की यदि तुलना की जाएं तो जहां भोंगले ने सरपंच पद से अपने करिअर की शुरुआत की, वहीं पाझारे ने पंचायत समिति चुनावों से अपना लोहा मनवाया था। परंतु अनुसूचित जाति और बौद्ध समाज के युवाओं को राजनीति में ऊंचा मकाम हासिल करना आसान काम नहीं है। समय-समय पर पाझारे को अपमान और विफलता के घूंट सहने पड़े। मंत्री मुनगंटीवार की तुलना बाबासाहब से करने के बावजूद उन्हें भाजपा में वह ओहदा नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। बड़े पदों पर लेते समय आमतौर पर राजनीतिक दल जातिगत समीकरणों और जातिगत राजनीति के फायदे-नुकसान पर अधिक मंथन करती है। इसका खामियाजा पाझारे को भुगतना पड़ा। अंतत: जब चंद्रपुर विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो उन्हें भाजपा से आउट होना पड़ा। अब पाझारे जैसे राजनीतिक खिलाड़ी और बौद्ध समाज के एक होनहार युवा के राजनीतिक भविष्य का क्या होगा, यह सवाल आम जनता में चर्चा का विषय बना हुआ है।