भाजपा जिलाध्यक्षों पर पदाधिकारियों के बजाय धड़क रहे पत्रकारों के पोस्ट
फिलहाल जिले में एक नया ही ट्रेंड चल पड़ा है। वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार अक्सर निष्पक्ष पत्रकारिता की दुहाई देते हुए राजनीतिक दलों को सरेंडर हुए पत्रकारों पर टिपणी करते हुए गोदी मीडिया शब्द के अनेकों बार उपयोग करते हुए देखे जा सकते हैं। पत्रकारों को निष्पक्ष होना चाहिये। बीते वर्षों में कुछ पत्रकार तो निष्पक्ष होने का दिखावा करते रहे। लेकिन अब नये ट्रेंड के अनुसार कुछ पत्रकार खुलकर किसी एक राजनीतिक दल और किसी एक राजनेता का सपोर्ट करने से नहीं हिचकिचा रहे। इसके चलते पत्रकारिता की साख लगातार गिर रही है।
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बहरहाल चंद्रपुर जिले में एक मामला काफी गरमाया हुआ है। भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार के 7वीं बार विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज कराने के बाद नवगठित देवेंद्र फड़णवीस की सरकार बनी तो इसके 42 मंत्रिमंडल की सूची में मुनगंटीवार को दरकिनार कर दिया गया। इसके चलते स्थानीय आम भाजपा कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों में नाराजगी है। परंतु सोशल मीडिया पर खुलकर किसी भी वरिष्ठ पदाधिकारी की ओर से कोई पोस्ट, नाराजगी अथवा आलोचना नहीं की गई है। परंतु जिले के चंद पत्रकार अपना दर्द छिपा नहीं पाये। दर्द छलक उठा और कुछ पत्रकारों ने अपनी दर्द भरी भावनाएं सोशल मीडिया पर लिखना शुरू कर दिया। इस पर महाराष्ट्र टाइम्स के डिजिटल मीडिया के चंद्रपुर जिला प्रतिनिधि नीलेश झाडे ने इन भाजपा समर्थक पत्रकारों की निष्पक्ष पत्रकारिता पर सवाल उठाते हुए व्यंग कसा है। नीलेश देवाजी झाडे अपनी एक पोस्ट में लिखते हैं कि भाऊ को मंत्री पद नहीं मिला, उनके कार्यकर्ता नाराज होना चाहिये, लेकिन यहां तो पत्रकार अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं। यह सब समझ से परे हैं। झाडे की इस पोस्ट से स्थानीय मीडिया विचलित होने की चर्चा है।
महाराष्ट्र टाइम्स के जिला प्रतिनिधि नीलेश झाडे की पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल होते ही ‘चंद्रपुर तक’ ने भाजपा के अनेक पदाधिकारियों एवं जिलाध्यक्षों (शहर व ग्रामीण) के सोशल मीडिया अकाउंट का जायजा लिया तो किसी भी पदाधिकारी की ओर से मंत्री पद नहीं मिलने की बात पर नाराजगी जताने या आलोचना करने की कोई पोस्ट स्पष्ट रूप से नजर नहीं आयी। इससे यह स्पष्ट होता है कि विधायक सुधीर मुनगंटीवार के समर्थक एवं उनके सहयोगी पदाधिकारियों एवं अध्यक्षों के बजाय चंद्रपुर जिले के अनेक पत्रकारों (भाऊ समर्थक पत्रकारों) को भाजपाईयों से ज्यादा दर्द हुआ है।
हालांकि इसमें कोई गलत बात नहीं है। पत्रकारिता अब व्यवसाय है। और इस व्यवसाय पर राजनीति एवं राजनेता मेहरबान होते हैं। इससे पत्रकारिता को आर्थिक लाभ भी मिलता है। अब जब सुधीर मुनगंटीवार को मंत्री पद नहीं मिला है तो उनके समर्थक अनेक पत्रकारों पर आर्थिक संकट मंडरा सकता है। इसलिए शायद उनका दर्द और उनकी नाराजगी भाजपाई से ज्यादा झलक रही है। पत्रकार भी एक आम नागरिक होता है। उसे भी किसी राजनीतिक दल एवं राजनेता का समर्थक होने में कोई अनुचित बात नहीं है। लेकिन निष्पक्ष पत्रकारिता का दंभ भरने वाले जब किसी एक दल के समर्थन में खुलकर सामने आने लगे तो यह दूसरे दल के साथ अन्याय की तरह प्रतीत होता है। बात चाहे जो भी पत्रकारों का दर्द, उनका लेखन, उनकी पोस्ट निष्पक्ष पत्रकारिता को कूचलते हुए आगे बढ़ रही है।