Baheliya Poacher Gang : खबरों के मुताबिक महाराष्ट्र में बहेलिया गिरोह द्वारा बीते डेढ़ से दो साल के दौरान 25 से अधिक बाघों का शिकार करने का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। इन बाघों की खाल, हड्डियों और अन्य अंगों को बेचकर लगभग 7 करोड़ रुपये का अवैध व्यापार किया गया। इस गिरोह के शिकारी पिछले कई महीनों से राज्य में सक्रिय थे, लेकिन वन विभाग को इसकी भनक तक नहीं लगी।
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गुप्त सूचना से हुआ पर्दाफाश
मेलघाट वन्यजीव अपराध शाखा के सतर्क होने के बाद राजुरा वन विभाग को बहेलिया शिकारी गिरोह की जानकारी मिली। इसी सूचना के आधार पर वन विभाग की विशेष टीम ने गिरोह के सरगना अजित राजगोंड उर्फ अजित पारधी को गिरफ्तार किया। जांच में सामने आया कि महाराष्ट्र के राजुरा, ब्रम्हपुरी, बल्लारपुर और गोंदिया जैसे इलाकों में इन शिकारियों ने बाघों का अवैध शिकार किया था।
16 और आरोपियों की गिरफ्तारी, जांच जारी
वन विभाग ने इस मामले में कार्रवाई तेज करते हुए, अजित राजगोंड उर्फ अजित पारधी की गिरफ्तारी के बाद तेलंगाना के आसिफाबाद इलाके से 16 और आरोपियों को पकड़ा गया है। ये सभी बहेलिया गिरोह से जुड़े शिकारी बताए जा रहे हैं।
बाघों के शिकारी गिरोह : मध्य प्रदेश के पारधी परिवार की खतरनाक साजिश
महाराष्ट्र-तेलंगाना सीमा के पास स्थित राजुरा वन परिक्षेत्र में बाघों के शिकार का एक बड़ा मामला सामने आया है। मध्य प्रदेश के कटनी जिले के अजित पारधी, केरू पारधी और कुट्टू पारधी नामक तीन भाई बाघों के शिकार में माहिर बताए जा रहे हैं। इस अवैध गतिविधि में अजित की पत्नी रीमाबाई, उसकी मां इंजेक्शन बाई, बहुएं रबिना और सेवा, नातिन राजकुमारी, भाई केरू और एक अन्य साथी शेरू भी शामिल हैं।
शिकारियों का गुप्त ठिकाना
सूत्रों के अनुसार, इस गिरोह ने चुनाला -बामनवाड़ा गांव के बीच स्थित एक बंद पड़े पॉवर प्लांट को अपना ठिकाना बना लिया था। बताया जा रहा है कि पिछले एक साल से यह गिरोह यहां डेरा जमाए हुए था। स्थानीय निवासियों के अनुसार, इस क्षेत्र में 4-5 परिवारों के लोग छोटे-छोटे टेंट बनाकर रह रहे थे। महिलाओं और बच्चों की अक्सर मौजूदगी दिखती थी, लेकिन पुरुष सप्ताह में सिर्फ एक-दो बार ही नजर आते थे, जिससे उनके गतिविधियों पर संदेह गहराने लगा था।
यह इलाका “मध्यचांदा वन विभाग” के अंतर्गत आता है, जहां बाघों की संख्या अधिक है और यह उनका प्रमुख भ्रमण मार्ग भी है। गिरोह कई महीने से ही इस क्षेत्र में सक्रिय था, जबकि अजित पारधी सितंबर में जमानत पर रिहा होने के बाद यहां पहुंचा। वन विभाग की सुस्त निगरानी के कारण शिकारी गिरोह को खुला मैदान मिल गया और वे बाघों के शिकार की योजना को अंजाम देने लगे।