Ghugus Local fake journalists: चंद्रपुर जिले की औद्योगिक नगरी घुग्घुस क्षेत्र में इन दिनों अवैध तस्करी अपने चरम पर है। कोयला, रेती, मुरुम, गांजा और डीजल की धड़ल्ले से तस्करी हो रही है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस गैरकानूनी धंधे को संरक्षण देने वाले कुछ ‘छुटभैये पत्रकार’ खुद को सिकंदर समझ बैठे हैं।
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पत्रकारिता के नाम पर ‘उगाही गिरोह’ सक्रिय
घुग्घुस क्षेत्र के पांढरकवड़ा, नकोड़ा और बेलसनी के रेती घाटों में बड़े पैमाने पर अवैध खनन और तस्करी चल रही है। इसके अलावा, गड़चंदूर मार्ग और नागाड़ा में कोयले की तस्करी भी खुलेआम हो रही है। इन सभी गैरकानूनी गतिविधियों की खबरें दबाने के बदले कुछ छुटभैये पत्रकार एक संगठित गिरोह के रूप में काम कर रहे हैं।
ट्रैक्टर मालिकों से हर सप्ताह ₹2000, हाइवा चालकों से ₹10,000, कोयला तस्करों से हर महीने ₹50,000 की उगाही खुलेआम जारी है। इनका नेटवर्क इतना मजबूत हो गया है कि तस्करी के वाहनों को खुद ही एस्कॉर्ट (सुरक्षित रास्ता देने) करने का काम भी कर रहे हैं।
‘चढ़ावा’ नहीं चढ़ाया तो खबर बनेगी हथियार!
अगर कोई तस्कर इस उगाही में देरी करता है या पैसे देने से इनकार करता है, तो ये तथाकथित पत्रकार उसे खबरों के जरिए निशाना बनाते हैं। उन्हें धमकियां दी जाती हैं कि अगर पैसा नहीं दिया तो उनके खिलाफ रिपोर्ट छापी जाएगी। यहां तक कि वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर थानेदार और तहसीलदार की तरह खुद को कानून से ऊपर समझने लगे हैं।
अब एक बड़ा सवाल उठ रहा है – आखिर प्रशासन कब तक इन फर्जी पत्रकारों के आतंक को अनदेखा करता रहेगा?
अगर समय रहते इन पर नकेल नहीं कसी गई, तो घुग्घुस क्षेत्र में तस्करी का यह खेल और भी खतरनाक रूप ले सकता है। प्रशासन को चाहिए कि वह इन ‘पत्रकार’ नाम के बिचौलियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे और अवैध तस्करी पर अंकुश लगाए।➡ क्या प्रशासन इन पर कोई ठोस कदम उठाएगी या फिर आम जनता ही इस ‘पत्रकारिता के मुखौटे’ को बेनकाब करने के लिए मजबूर होगी?