Rising Pollution in Ghugus: Leaders Silent, Citizens Suffer Dust and Diseases! : चंद्रपुर जिले की घुग्घुस शहर, जो कभी अपने उद्योगों के लिए प्रसिद्ध था, आज प्रदूषण की चपेट में आ चुका है। शहर में बड़े-बड़े उद्योग फल-फूल रहे हैं, नेताओं की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन मजबूत होती जा रही है, लेकिन आम जनता को सिर्फ धूल, धुआं और बीमारियां मिल रही हैं। मुख्य सड़कों पर उड़ती धूल, दिन-रात भारी वाहनों की आवाजाही और वायु प्रदूषण ने शहरवासियों का जीना मुश्किल कर दिया है।
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जनता के हिस्से में सिर्फ धूल और बीमारियां
शहर के प्रमुख मार्गों – राजीव रतन चौक से लेकर शिवाजी चौक और प्रियदर्शिनी स्कूल तक – की हालत ऐसी हो चुकी है कि वहां से गुजरना किसी चुनौती से कम नहीं। भारी वाहनों की आवाजाही से सड़कें धूल-मिट्टी से भर चुकी हैं। शहरवासियों के लिए सांस लेना दूभर हो गया है। बच्चे, बुजुर्ग और युवा—allergies, अस्थमा, आंखों में जलन, और त्वचा रोगों जैसी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।
नेताओं को बस होर्डिंग में चमकने की चिंता
शहर में हर चौक-चौराहे पर नेताओं के बड़े-बड़े होर्डिंग्स और बैनर नजर आते हैं। हर त्यौहार, हर चुनाव और हर कार्यक्रम पर ये होर्डिंग्स तो जरूर दिखते हैं, लेकिन प्रदूषण के खिलाफ एक भी आंदोलन नजर नहीं आता। क्या नेताओं को धूल, धुआं और जनता की तकलीफें नहीं दिखतीं? या फिर उनकी आंखें केवल ठेकेदारों और उद्योगपतियों के फायदे पर ही टिकी रहती हैं?
सड़क पर सफाई सिर्फ दिखावे के लिए
जब भी कोई बड़ा नेता जिले में या शहर मे आने वाला होता है या कोई राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित होता है, तो सड़कें अचानक साफ-सुथरी कर दी जाती हैं। पानी का छिड़काव कर धूल को कुछ समय के लिए दबा दिया जाता है, ताकि नेताओं को यह महसूस न हो कि शहर में प्रदूषण की समस्या है। लेकिन जैसे ही कार्यक्रम खत्म होता है, सबकुछ फिर वैसा ही हो जाता है। आखिर जनता कब तक इस धोखे में रहेगी?
नेताओं की चुप्पी – डर या स्वार्थ?
एक समय था जब शहर में प्रदूषण के खिलाफ आवाजें उठती थीं। लेकिन अब आंदोलनकारी नेता भी चुप हैं। सवाल उठता है – क्या ये नेता भी उद्योगपतियों से मिले हुए हैं? क्या वे अपने निजी स्वार्थ के लिए जनता की आवाज को दबा रहे हैं? या फिर उन्हें डर है कि अगर उन्होंने कंपनियों के खिलाफ आवाज उठाई, तो उनकी खुद की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति खतरे में पड़ जाएगी?
शहर का विकास या ठेकेदार बने नेताओं का फायदा?
घुग्घुस को औद्योगिक नगरी कहा जाता है, लेकिन अगर देखा जाए तो असल में यह सिर्फ ठेकेदार बने नेताओं के आर्थिक विकास का केंद्र बन चुका है। शहर के विकास के नाम पर ठेके दिए जाते हैं, सड़कें बनाई जाती हैं, लेकिन कुछ ही महीनों में वे सड़कें उखड़ जाती हैं। दूसरी ओर, ठेकेदारों और नेताओं की जेबें भरती जाती हैं।
नेताओं को जनता की तकलीफ क्यों नहीं दिखती?
हर बार चुनावों में नेता वादे करते हैं कि वे शहर को बेहतर बनाएंगे, प्रदूषण को कम करेंगे, स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाएंगे। लेकिन चुनाव खत्म होते ही वे जनता की परेशानियों से मुंह मोड़ लेते हैं। अगर उन्हें वाकई जनता की फिक्र होती, तो क्या वे प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या पर चुप रहते?
बड़े-बड़े कार्यक्रम, लेकिन प्रदूषण पर कोई समाधान नहीं
शहर में हर साल बड़े राजनीतिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों के लिए कंपनियां भारी फंडिंग करती हैं। नेता इन कंपनियों से धन लेकर अपने प्रचार और आयोजनों पर खर्च करते हैं, लेकिन प्रदूषण की समस्या पर कोई ठोस कदम नहीं उठाते। जनता को साफ हवा नहीं मिलती, लेकिन नेताओं को कंपनियों से मोटा मुनाफा जरूर मिलता है।
क्या जनता की आवाज दब गई है?
अब समय आ गया है कि घुग्घुस की जनता इस गंभीर समस्या के खिलाफ एकजुट होकर खड़ी हो। सिर्फ चुनावी वादों से संतुष्ट होने के बजाय नेताओं से जवाब मांगा जाए। क्या शहर का विकास सिर्फ पोस्टरों, होर्डिंग्स और झूठे वादों तक सीमित रहेगा? या फिर जनता अपनी सेहत, पर्यावरण और भविष्य के लिए ठोस कदम उठाएगी?
नेताओं को यह समझना होगा कि जनता सिर्फ वोट बैंक नहीं है। अगर वे अपने दायित्वों को नहीं निभाएंगे, तो जनता उन्हें सबक सिखाने में देर नहीं करेगी। घुग्घुस को फिर से एक स्वच्छ, स्वस्थ और रहने लायक औद्योगिक शहर बनाने के लिए सभी को मिलकर आवाज उठानी होगी। वरना, यहां की हवा, सड़कें और भविष्य—सब धूल में मिल जाएंगे।