A Daughter’s Toughest Choice: Exam or Bidding Farewell to Her Father?”
चंद्रपुर जिले के बल्लारपुर तहसील मे बुधवार की रात कोठारी गाँव में एक ऐसा दर्दनाक दृश्य देखने को मिला, जिसने पूरे गाँव को शोक में डाल दिया। 18 वर्षीय परी रूपेश विरुटकर, जो 12वीं कक्षा की छात्रा है, उसे अपनी जिंदगी की सबसे कठिन परीक्षा का सामना करना पड़ा।
पिता की अंतिम सांस और बेटी की परीक्षा
परी के पिता, रूपेश लक्ष्मण विरुटकर (45 वर्ष), बीते कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। घर का माहौल चिंताजनक था, लेकिन परी अपनी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी। हालांकि, उसकी आँखें किताबों पर थीं, लेकिन मन पिता की बिगड़ती तबीयत में अटका था। और फिर वही हुआ, जिसका डर था। बुधवार रात 2 बजे पिता ने अपनी आखिरी सांस ली।
घर में रोने-धोने का माहौल था। माँ सारिका विरुटकर गहरे सदमे में थीं। भाई-बहन भी इस दुख को सहन नहीं कर पा रहे थे। लेकिन इसी बीच परी को याद आया कि अगले दिन उसकी जीवविज्ञान (बायोलॉजी) की परीक्षा है।
कठिन फैसला: पिता का अंतिम संस्कार या परीक्षा?
इस विकट परिस्थिति में परी को परिवार ने हिम्मत दी और समझाया कि परीक्षा देना बहुत जरूरी है। आँसू भरी आँखों से, भारी मन के साथ, वह परीक्षा केंद्र की ओर बढ़ी। हालाँकि वह परीक्षा हॉल तक पहुँचने में सफल रही, लेकिन जब उसने प्रश्न पत्र खोला, तो उसकी आँखों के सामने बार-बार पिता का चेहरा आ रहा था।
कलम कांप रही थी, कागज पर गिरते आँसू उत्तरों को धुंधला कर रहे थे। कुछ सवालों के जवाब देने के बाद उसका मन विचलित हो गया। वह खुद को रोक नहीं पाई और परीक्षा अधूरी छोड़कर घर की ओर दौड़ पड़ी।
माँ की ममता और बेटी का सहारा
घर पहुँचते ही परी ने पिता के निर्जीव शरीर को देखा और अपने आँसू रोक नहीं सकी। उसने पिता के शव पर सिर रखकर फूट-फूटकर रोना शुरू कर दिया। माँ, जो पहले से ही गहरे दुःख में थीं, अपनी बेटी को देख और भी टूट गईं।
परी की एक बड़ी बहन है, जिसकी शादी हो चुकी है। अब परिवार में माँ और भाई का सहारा सिर्फ परी ही है। पिता के अंतिम संस्कार के बाद, पूरा कोठारी गाँव शोक में डूब गया। हर कोई परी के इस दुःख को महसूस कर रहा था और उसकी हिम्मत की सराहना कर रहा था।
अब परी का अगला सफर
यह घटना परी की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल चुकी है। अब उसे खुद को संभालते हुए अपने परिवार को भी सहारा देना होगा। अपने सपनों को पूरा करने के साथ-साथ उसे अपनी माँ का सहारा भी बनना है।
परी की यह कहानी न केवल दुःखद है, बल्कि यह बताती है कि कठिन परिस्थितियाँ इंसान को कैसे परखती हैं। इस परीक्षा में भले ही परी पूरी तरह सफल न हो पाई हो, लेकिन उसने जो साहस दिखाया, वह किसी भी परीक्षा से कहीं बड़ा है।
एक बेटी का अपने पिता के प्रति समर्पण, उसकी मजबूती और संघर्ष की यह कहानी पूरे समाज को प्रेरित करती है।
