“विदर्भ की धरती पर बिछने जा रही है 4,819 करोड़ की रेल पटरी… पर सवाल ये है – किसने बिछाई ये नींव? विकास की ये रेल आख़िर चली किसकी मेहनत से? चलिए जानते हैं इस श्रेय युद्ध की पूरी कहानी।”
विदर्भ क्षेत्र में प्रस्तावित 🔍बल्लारशाह-गोंदिया 250 किलोमीटर दुहेरी रेल्वेमार्ग, जिसकी लागत करीब ₹4,819 करोड़ बताई जा रही है, अब एक महत्त्वपूर्ण विकास परियोजना से अधिक राजनीतिक श्रेय की लड़ाई बनता जा रहा है। इस रेल प्रोजेक्ट को लेकर भाजपा और कांग्रेस में जबरदस्त जुबानी जंग छिड़ चुकी है।
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भाजपा का दावा: “हमारी मांग का नतीजा है यह प्रोजेक्ट”
भाजपा के वरिष्ठ नेता और माजी केंद्रीय मंत्री 🔍हंसराज अहीर तथा पूर्व सांसद डॉ. अशोक नेते ने दावा किया है कि यह रेल्वेमार्ग उनकी वर्षों पुरानी मांग और प्रयासों का नतीजा है। नेते ने रेल्वे मंत्रालय में इस प्रोजेक्ट को बार-बार उठाया था और अहीर ने तो इसे विदर्भ के विकास से सीधे तौर पर जोड़ते हुए अपनी प्राथमिकताओं में शामिल किया था।
दोनों नेताओं का कहना है कि उन्होंने इस परियोजना को केंद्र सरकार की प्राथमिकता में शामिल करवाने के लिए लगातार दबाव बनाया और उसी के परिणामस्वरूप अब इसकी मंजूरी सामने आई है।
कांग्रेस का पलटवार: “हमारी मेहनत रंग लाई”
वहीं, कांग्रेस भी पीछे हटने को तैयार नहीं। चंद्रपुर की सांसद 🔍प्रतिभा धानोरकर और गडचिरोली के सांसद नामदेव किरसान ने भी श्रेय का दावा करते हुए कहा है कि उन्होंने खुद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और दक्षिण-पूर्व-मध्य रेलवे के महाप्रबंधक को पत्र लिखकर इस प्रोजेक्ट की मांग की थी। धानोरकर ने दावा किया कि कांग्रेस के दबाव और प्रयासों के चलते ही यह प्रोजेक्ट केंद्र की मंजूरी तक पहुंचा।
कांग्रेस सांसदों का कहना है कि भाजपा केवल झूठा क्रेडिट लेने में लगी है, जबकि ज़मीनी स्तर पर प्रस्ताव, फॉलोअप और संवाद कांग्रेस की ओर से हुआ।
“आखिर सच्चाई क्या है?”
अब जब दोनों ही प्रमुख दल इस प्रोजेक्ट का श्रेय लेने में एक-दूसरे से होड़ कर रहे हैं, जनता के बीच भ्रम और असंतोष फैल रहा है। कई लोगों का कहना है कि 🔍रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को सार्वजनिक रूप से स्पष्ट करना चाहिए कि यह प्रोजेक्ट किसके प्रयास से, कब और कैसे स्वीकृत हुआ।
विकास या राजनीति?
यह पहली बार नहीं है जब किसी विकास परियोजना को लेकर राजनीतिक दलों में श्रेय की होड़ मची हो। लेकिन इस बार मामला और गंभीर इसलिए हो गया है क्योंकि दोनों ही पक्ष साक्ष्य के साथ अपने दावे पेश कर रहे हैं — कोई पत्रों की प्रतियां दिखा रहा है तो कोई पूर्व के संसद भाषणों का हवाला दे रहा है।
बल्लारशाह-गोंदिया दुहेरी रेल्वेमार्ग, जो वास्तव में विदर्भ की आर्थिक और सामाजिक प्रगति का वाहक बन सकता है, अब राजनीतिक श्रेय की जंग में फंसा हुआ नजर आ रहा है। इस लड़ाई का अंत कब और कैसे होगा, यह तो वक्त ही बताएगा।