ताडोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प के मोहर्ली वनपरिक्षेत्र अंतर्गत सितारामपेठ नियतक्षेत्र के अंतर्गत आने वाले भामडेळी गावालगत इरई डैम परिसर में सोमवार को एक सनसनीखेज घटना सामने आई। नियमित गश्त के दौरान वनविभाग की टीम को एक वयस्क बाघ का शव अर्धजली अवस्था में मिला, जिससे पूरे वनविभाग में खलबली मच गई है।
Whatsapp Channel |
मृत बाघ की स्थिति भयावह थी — उसके शरीर का कुछ हिस्सा आंशिक रूप से जला हुआ था, लेकिन नकुन, दांत और हड्डियां पूरी तरह से सुरक्षित थीं। प्रारंभिक जांच में यह सामने आया कि बाघ की मौत आग लगने से पहले ही हो चुकी थी। इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि शव पर पड़ी हुई सड़ चुकी मांस की परतों में पनपे कीड़े भी आग से झुलसे हुए पाए गए।
शव की पहचान अब तक अज्ञात, लेकिन टी-24 बाघिन होने की जताई जा रही आशंका
वनविभाग के अनुसार, फरवरी 2025 से पहले तक प्रसिद्ध बाघिन टी-24 अपने तीन बछड़ों के साथ इस इलाके में सक्रिय दिखाई देती थी। फरवरी में बछड़े दो साल के हो गए और उन्होंने मां से अलग होकर अपना क्षेत्र बनाना शुरू कर दिया। लेकिन 16 मार्च के बाद से टी-24 का कोई भी दृश्य रिकॉर्ड नहीं हुआ है, जिससे उसकी खोजबीन जारी थी। ऐसे में मृत मिली बाघिन के टी-24 होने की प्रबल संभावना जताई जा रही है।
घटनास्थल पर जांच टीम
जैसे ही घटना की जानकारी मिली, वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दी गई। मौके पर पहुंचे। सहाय्यक वनसंरक्षक संकेत वाठोरे, वनपरिक्षेत्र अधिकारी संतोष थीपे, राज्य वन्यजीव सल्लागार मंडळाचे सदस्य धनंजय बापट, राष्ट्रीय व्याघ्र संवर्धन प्राधिकरण के प्रतिनिधि बंडू धोतरे, प्रधान मुख्य वनसंरक्षक प्रतिनिधि मुकेश भांदककर, पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. कुंदन पोडचेलवार, सेवा निवृत्त पशुसंवर्धन अधिकारी डॉ. पुरुषोत्तम कडूकर, पशु चिकित्सा पर्यवेक्षक मिलिंद जक्कुलवार
तथा अन्य वनपाल और पंच उपस्थित रहे। डॉ. पोडचेलवार और उनकी टीम ने मौके पर ही बाघ के शव का शवविच्छेदन (पोस्टमार्टम) किया और आवश्यक नमूने एकत्र किए। अब इन नमूनों को डीएनए परीक्षण और विस्तृत फॉरेंसिक जांच के लिए सीसीएमबी, हैदराबाद भेजा जाएगा।
वनगुन्हा दर्ज, जांच जारी
मामले की गंभीरता को देखते हुए वनविभाग ने आधिकारिक वनगुन्हा दर्ज कर लिया है। ताडोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प के उपसंचालक कुशाग्र पाठक व सहायक वनसंरक्षक संकेत वाठोरे के मार्गदर्शन में वनपरिक्षेत्र अधिकारी संतोष थीपे आगे की जांच में जुटे हुए हैं।
यह घटना वन्यजीव संरक्षण और सुरक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। क्या वाकई यह प्राकृतिक मौत थी या इसके पीछे कोई शिकार या मानवीय हस्तक्षेप है? इन सभी सवालों का जवाब अब सीसीएमबी की रिपोर्ट और वनविभाग की जांच पर निर्भर करेगा।
ताडोबा की धरती एक और बाघ की दर्दनाक मौत की गवाह बनी — जंगल का सन्नाटा अब और गहरा हो गया है।