नेताओं के आशीर्वाद से खुलेआम लूटी जा रही है जीवनदायिनी नदी
चंद्रपुर जिले में इन दिनों आसमान से अंगारे बरस रहे हैं। तापमान 45 डिग्री पार कर चुका है। खेत सूख रहे हैं, तालाब दम तोड़ रहे हैं, और जीवनदायिनी वर्धा नदी कराह रही है। पर अफसोस, इन त्रासद हालातों के बीच भी सत्ता के संरक्षण में रेत के सौदागर अपनी तिजोरियां भरने में मशगूल हैं।
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विदर्भ के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल वर्धा और पैनगंगा ‘वढ़ा संगम’ में नदियों के प्रवाह को एक तरफ मोड़कर नदी के तट पर बसे बरोसा गांव की ओर से अस्थायी सड़कें बिछाई गई हैं — और इन सड़कों के सहारे नदी के सीने को चीरते हुए दिन-रात हजारों ब्रास रेती निकाली जा रही है। ट्रैक्टरों का रेला लगा है, पोकलेन और जेसीबी मशीनें नदी के पेट में गहरे जख्म कर रही हैं, और प्रशासन आंखें मूंदकर बैठा है।
जब क्षेत्र मे सड़क निर्माण कार्य कर रहे एक निजी कंपनी के साइट इंचार्ज सिंह से सवाल किया गया तो जवाब मिला — “हमें 8 हजार ब्रास की अनुमति है।” पर हकीकत चीख-चीख कर गवाही दे रही है कि पिछले एक साल से नदी का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। सवाल उठता है — माइनिंग विभाग कहाँ सो रहा है? क्या उनकी जिम्मेदारी इतनी ही रह गई है कि कागजों पर खानापूर्ति कर दी जाए?
प्राकृतिक आपदा को न्योता: भविष्य में बाढ़ और सूखे का खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि नदी से अत्यधिक रेत निकाले जाने से न केवल जलस्तर में गिरावट आएगी, बल्कि बाढ़ का खतरा भी कई गुना बढ़ जाएगा। इसके अलावा, क्षेत्र के किसानों की फसलें भी प्रभावित होंगी और सिंचाई संकट उत्पन्न होगा। अप्रैल का अंत हो चुका है, मई-जून-जुलाई की भीषण गर्मी अभी बाकी है। ऐसे में अगर समय रहते संबंधित विभाग ने ठोस कदम नहीं उठाए तो आने वाले दिनों में स्थिति भयावह हो सकती है।
सत्ता का आशीर्वाद, नियमों की तिलांजलि
यह महज लूट नहीं, सुनियोजित लूट है — सत्ता की छत्रछाया में पलती, फलती और अब बेलगाम होती लूट!
सूत्रों के अनुसार, चंद्रपुर शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित पिपरी गांव मे तीन बड़े रेत माफियाओं ने मिलकर एक सत्तादरी प्रभावशाली नेता को साझेदार बनाकर वर्धा नदी के गर्भ में पक्की सड़क तक डाल दी है और नदी के तट को चीरकर अब बिना रोकटोक दिन-रात रेत उत्खनन हो रहा है। नदी के किनारे एक किलोमीटर दूरी रेत के पहाड़ खड़े कर दिए गए हैं, जो बिना रॉयल्टी अदा किए ही पड़ोसी जिला यवतमाल सहित जिले के विभिन्न कंपनियों में दोगुनी कीमत पर बेचे जा रहे हैं।
प्रशासन का मौन केवल संयोग नहीं, साजिश का संकेत देता है। क्योंकि जब नदी का प्रवाह बदला जा रहा हो, रेत के पहाड़ बन रहे हों, तो यह संभव नहीं कि अधिकारी अनजान रहें।
रेत माफिया का आतंक: नीतियों की उड़ती धज्जियां, अधिकारी मूकदर्शक
प्रदेश में रेत के अनाधिकृत उत्खनन और अवैध ढुलाई पर रोक लगाने के लिए सरकार ने भले ही कड़े नियम बनाए हों, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। राज्य सरकार की नीतियों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और राजस्व विभाग के अधिकारी मूकदर्शक बनकर इस लूट को चुपचाप देख रहे हैं।
चुनींदा ट्रैक्टर और हायवाओं को पकड़ कर महज औपचारिकता निभाई जाती है, ताकि अखबारों में प्रेस विज्ञप्ति जारी कर वाहवाही लूटी जा सके। मगर वास्तविकता यह है कि अधिकारियों की नाक के नीचे से हजारों ब्रास रेती प्रतिदिन चोरी हो रही है। बिना किसी भय और रोक-टोक के, खुलेआम रेत का अवैध उत्खनन और परिवहन जारी है, जिससे न केवल सरकार को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है, बल्कि पर्यावरण और स्थानीय व्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है।
ग्रामीणों को एक ब्रास रेत के लिए तरसना, कंपनियों को हजारों ब्रास की लूट
दूसरी ओर, जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी योजना के निर्माण कार्यों के लिए एक-एक ब्रास रेत के लिए लोग तरस रहे हैं। प्रशासन जहां आम जनता को रेत नहीं उपलब्ध करवा पा रहा, वहीं निजी कंपनियों को हजारों ब्रास रेती अवैध रूप से मुहैया कराई जा रही है। यह स्पष्ट तौर पर सरकारी मशीनरी की लचर कार्यप्रणाली और भ्रष्टाचार की पोल खोलता है।
एक सवाल: कब जागेगा प्रशासन?
आखिर कब तक जीवनदायिनी नदियों के साथ ऐसा अत्याचार होता रहेगा? कब तक सत्ता की छत्रछाया में चलने वाला यह काला कारोबार यूं ही फलता-फूलता रहेगा? क्या प्रशासनिक मशीनरी अपने कर्तव्य का पालन करते हुए इस अवैध कारोबार पर अंकुश लगाएगी या फिर आने वाली पीढ़ियों के लिए जलसंकट की भयावह विरासत छोड़ देगी?