औद्योगिक नगरी घुग्घुस में इन दिनों भारतीय जनता पार्टी (BJP) के शहर अध्यक्ष पद को लेकर जबरदस्त खींचतान और अंतर्कलह का दौर चल रहा है। यह घमासान केवल एक पद के लिए नहीं, बल्कि दो राजनीतिक ध्रुवों—सेवाकेंद्र बनाम विधायक खेमा—के बीच वर्चस्व की लड़ाई बन चुका है। वरिष्ठ बनाम युवा, निष्ठा बनाम अवसरवादिता, और रणनीति बनाम लोकप्रियता के बीच सियासी शतरंज बिछ चुकी है।
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राजनीति के बदले समीकरण
पिछले वर्ष हुए राज्य मे विधानसभा चुनावों के बाद से घुग्घुस की राजनीति ने एक नया मोड़ लिया है। पहले जहां भाजपा का पूरा ढांचा मुंगटीवार सेवाकेंद्र के निर्देशों पर ही चलता था, अब वही सेवाकेंद्र नेतृत्व हाशिए पर जाता दिख रहा है। शहर के अधिकांश भाजपा नेता अब विधायक जोरगेवार के खेमे में सशक्त रूप से खड़े नजर आ रहे हैं। इससे घुग्घुस की सियासत में उबाल आ गया है और भाजपा के भीतर शक्ति संतुलन तेजी से बदल रहा है।
नेतृत्व पर उठते सवाल
शहर अध्यक्ष का कार्यभार अभी विधायक देवराव भोंगले के करीबी विवेक बोडे के पास ही है। हालांकि, उनके जिले के महामंत्री बनने के बाद यह चर्चा तेज हो गई है कि वह अब शहर के प्रति उतना समय और ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। इसी कारण पार्टी के भीतर से ही यह मांग उठ रही है कि अब शहर अध्यक्ष का चेहरा बदला जाए।
कौन-कौन हैं दावेदार?
शहर अध्यक्ष पद की दौड़ में अब चार प्रमुख नाम सामने आ रहे हैं:
संजय तिवारी – राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हंसराज अहीर और विधायक किशोर जोरगेवार के समर्थक, पूर्व उपसरपंच और वरिष्ठ भाजपा नेता। दो बार उन्होंने अपनी संभावित उम्मीदवारी को पार्टी के आदेश पर वापस लिया—पहले देवराव भोंगले के लिए और फिर नीतू चौधरी के लिए। अब वह सेवाकेंद्र को छोड़ विधायक खेमा जॉइन कर चुके हैं और मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं।
संतोष नुने – पूर्व ग्रामपंचायत प्रभारी सरपंच, युवा चेहरा। शुरुआत विधायक भोंगले के नेतृत्व में करने के बाद अब जोरगेवार के साथ हैं। उनका स्थानीय कार्यकर्ताओं पर अच्छा प्रभाव है।
महेश लठ्ठा – पूर्व ग्रामपंचायत सदस्य, युवाओं में लोकप्रिय कार्यकर्ता। राजनीति में उन्होंने भी सेवाकेंद्र से दूरी बनाकर जोरगेवार के प्रति निष्ठा दिखाई है।
इमरान खान – वर्ष 2014 से विधायक जोरगेवार के नजदीकी और बेहद लोकप्रिय चेहरा। संगठनात्मक कार्यों में सक्रिय, और कार्यकर्ताओं में पसंदीदा उम्मीदवार माने जाते हैं।
इन चारों नामों में सबसे अधिक चर्चा तिवारी और इमरान के इर्द-गिर्द घूम रही है। तिवारी के पास अनुभव और त्याग की पूंजी है, तो इमरान के पास युवा जोश और कार्यकर्ताओं का समर्थन।
अंदरूनी राजनीति और रणनीति
सूत्रों की मानें तो विधायक जोरगेवार के वित्तीय सहायक ने भी कुछ युवा नेताओं को अपने रणनीतिक घेरे में लेकर उन्हें अध्यक्ष पद के लिए तैयार करना शुरू कर दिया है। यह अंदरूनी प्लानिंग इस बात का संकेत है कि सियासी बसंत अभी और करवटें लेगा। वहीं, दूसरी ओर सेवाकेंद्र के नेतृत्वकर्ता विधायक सुधीर मुंगटीवार और उनके करीबी भोंगले-बोडे गुट ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। यह चुप्पी किसी बड़े राजनीतिक दांव की ओर इशारा कर रही है, जिसे वक्त आने पर भुनाया जा सकता है।
क्या होगा अंतिम फैसला?
अब सवाल यह है कि शहर अध्यक्ष का ताज किसे मिलेगा? क्या यह पद लंबे समय से उपेक्षा झेल रहे वरिष्ठ तिवारी को मिलेगा? या फिर युवा और लोकप्रिय चेहरा इमरान बाजी मार ले जाएंगे? या संतोष नुने और महेश लठ्ठा जैसे युवाओं में से कोई अंतिम समय में सरप्राइज़ देंगे?
यह भी संभव है कि पार्टी कोई नया, सर्वस्वीकार्य और निष्कलंक चेहरा सामने लाए जो दोनों गुटों को साध सके।
घुग्घुस की भाजपा इकाई इस समय गुटबाजी के जिस भंवर में उलझी है, उससे बाहर निकलने के लिए पार्टी नेतृत्व को बहुत ही सूझबूझ भरा निर्णय लेना होगा। अन्यथा यह संघर्ष संगठन की जड़ों को कमजोर कर सकता है। शहर अध्यक्ष की कुर्सी फिलहाल भाजपा के लिए केवल पद नहीं, बल्कि नेतृत्व, दिशा और भविष्य की रणनीति का प्रतीक बन चुकी है। अब देखना यह होगा कि कौन इस कुर्सी को पाता है और कौन सिर्फ तमाशबीन बनकर रह जाता है।