प्रशासन की नाक के नीचे चंद्रपुर से यवतमाल तक रोजाना हजारों ब्रास रेत की तस्करी, सवालों के घेरे में अफसरशाही
इन दिनों जिले में 🔍अवैध रेत उत्खनन और तस्करी का गोरखधंधा अपने चरम पर है। जहां आम नागरिकों को अपने निर्माण कार्यों के लिए एक-एक ब्रास रेत के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है, वहीं दूसरी ओर सरकारी कार्यों के लिए आवंटित रेत घाटों से धड़ल्ले से नियमों को ताक पर रखकर रोजाना हजारों ब्रास रेत का परिवहन किया जा रहा है।
Whatsapp Channel |
🔍चंद्रपुर जिले के 🔍वर्धा नदी से निकाली गई रेत, जो स्थानीय कार्यों के लिए निर्धारित है, उसे अवैध रूप से चंद्रपुर से होते हुए 🔍यवतमाल जिले में भेजा जा रहा है। यह रेत तस्कर पल्ला गाड़ियों (ट्रकों) में रेत भरकर उसे दोगुने दामों पर बेच रहे हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह सब जिला प्रशासन और महसूल विभाग की नाक के नीचे हो रहा है, जो अब संदेह के घेरे में आ गया है।
मध्यरात्रि की दबिश – महसूल विभाग की बड़ी कार्रवाई
घुग्घुस–वणी मार्ग पर मंगलवार और बुधवार की मध्यरात्रि 12:30 से 1:30 के बीच नायब तहसीलदार डॉ. सचिन खंडाळे के नेतृत्व में महसूल विभाग ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए तीन अवैध रेत से भरी ट्रकों को जल बिछाकर धर दबोचा।
टीम में मंडल अधिकारी प्रकाश सुरवे, तलाठी शाम खराटे (पिपरी) और तलाठी शेनगाव शामिल थे।
जब्त किए गए वाहनों में से एक, MH 29 BD 5400, में 7 ब्रास रॉयल्टी रेत दिखायी गई थी, जबकि वास्तव में 12 ब्रास रेत पाई गई। वहीं अन्य दो वाहन—MH 27 BX 7209 और MH 32 AJ 4442—में 10-10 ब्रास रेत भरी थी, लेकिन उनके पास कोई वैध दस्तावेज नहीं था। तीनों ट्रकों को घुग्घुस पुलिस स्टेशन में जमा किया गया है।
तस्करी की साज़िश – कौन है इस खेल का मास्टरमाइंड?
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जब्त किए गए वाहनों में से एक यवतमाल जिले का है, जबकि अन्य दो वाहन यवतमाल जिले के कडम तालुका के मेतीखेडा गाँव से संबंधित हैं। इससे साफ है कि यह तस्करी एक संगठित नेटवर्क का हिस्सा है, जिसमें घाट संचालक, वाहन मालिक, ड्राइवर और शायद कुछ विभागीय कर्मचारी भी शामिल हो सकते हैं।
स्थानीय लोगों में इस कार्रवाई को लेकर खासी चर्चा है। उनका कहना है कि क्या महसूल विभाग इस मामले में केवल जुर्माना लगाकर इन वाहनों को छोड़ देगा या फिर दोषियों पर कठोर कानूनी कार्रवाई होगी?
प्रशासन पर उठे सवाल – क्या है अंदरूनी साठगांठ की बू?
इस घटना ने प्रशासन की भूमिका पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। क्या अन्य अधिकारी जानबूझकर इस अवैध कारोबार को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं? कहीं घाट संचालकों और संबंधित विभागों के बीच कोई ‘अदृश्य समझौता’ तो नहीं?
अब सवाल यह उठता है: क्या घाट संचालकों पर भी कार्रवाई होगी? क्या दोषियों पर आपराधिक मामला दर्ज होगा? या फिर यह कार्रवाई भी कागजों तक ही सिमटकर रह जाएगी?
अब जिले की जनता की नज़र महसूल विभाग की अगली कार्रवाई पर टिकी हुई है। अगर इस बार भी यह मामला जुर्माना भरने और खानापूर्ति में सिमट गया, तो यह साफ संदेश जाएगा कि जिला प्रशासन की भूमिका संदिग्ध है और रेत माफिया को खुली छूट मिली हुई है।
अब देखना होगा कि प्रशासन इस अवैध रेत तस्करी पर वास्तव में लगाम लगा पाता है या फिर यह भी बाकी मामलों की तरह फाइलों में दफन होकर रह जाएगा।