चंद्रपुर की जीवनरेखा कही जाने वाली इरई नदी अब एक नई दिशा की ओर अग्रसर होती दिखाई दे रही है। दो दिन पहले🔍 इतिहास अभ्यासक प्रोफेसर सुरेश चोपने ने नदी की गहराईकरण प्रक्रिया का स्थल निरीक्षण किया। उन्होंने पाया कि प्रशासन ने आखिरकार बाढ़ से निपटने के लिए प्राथमिकता के आधार पर काम शुरू किया है। लेकिन उनके फेसबुक पर डाले गए आलोचनात्मक पोस्ट ने अब सोशल मीडिया पर नई बहस छेड़ दी है।
Whatsapp Channel |
हालांकि, अभी भी थर्मल पावर स्टेशन की राख नदी में साफ तौर पर दिख रही है। ऐसे में सिर्फ सतही समतलीकरण ही नहीं, बल्कि कम से कम तीन फीट तक नदी की गहराई बढ़ाने की सख्त जरूरत है। नागरिकों, न्यायालय और हर साल आने वाले बाढ़ की पीड़ा ने अंततः प्रशासन को इस कार्य के लिए मजबूर किया है। यह देखकर संतोष हुआ कि पालक मंत्री और प्रशासन ने इस विषय को गंभीरता से लिया है। जब इरई डैम के 6-7 दरवाजे खोल दिए जाते हैं, तब जो बाढ़ आती है उससे राहत मिल सकती है, परंतु बेकवॉटर फ्लडिंग से शहर को बचाना अब भी एक बड़ी चुनौती है।
पहल की नींव: 2006 में ग्रीन प्लैनेट सोसाइटी की पहल
2006 में ग्रीन प्लैनेट सोसायटी ने इरई नदी का व्यापक अध्ययन कर पहली बार उसके गहराईकरण की मांग रखी थी। 2007 में यह मांग एक जनआंदोलन का रूप ले चुकी थी, जब विभिन्न संस्थाओं को साथ लेकर नदी के किनारे और नदीपात्र में जनजागृति और आंदोलन शुरू किया गया। तब से लेकर आज तक ये आंदोलन अलग-अलग रूपों में चलता रहा। CTPS, कोल माइनिंग और अतिक्रमण जैसी समस्याएं नदी की बदहाली के लिए जिम्मेदार पाई गईं। अनेक मीटिंग्स हुईं, प्रयास हुए, लेकिन नदी जस की तस रही।
तीन साल पहले से नया मोड़: “चला जाणूया नदीला” उपक्रम की शुरुआत
तीन साल पहले महाराष्ट्र जल बिरादरी ने इस मुद्दे को दोबारा ज़ोरदार तरीके से उठाया। तत्कालीन पालक मंत्री की पहल पर “चला जाणूया नदीला” अभियान की शुरुआत की गई। इस सरकारी उपक्रम में इरई और उमा दोनों नदियों को शामिल किया गया। ग्रीन प्लैनेट सोसाइटी की ओर से इरई नदी के उगम से संगम तक का वैज्ञानिक और सामाजिक अध्ययन किया गया और सरकार को बिना किसी आर्थिक सहायता के एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी गई। यह रिपोर्ट आज भी जल बिरादरी की वेबसाइट पर उपलब्ध है, लेकिन प्रशासन इसे निधि के अभाव में अब तक अमल में नहीं ला पाया है।
सरकारी उदासीनता और नागरिकों की सक्रियता में टकराव
बैठकों में यह स्पष्ट किया गया कि इस पूरे कार्य को बिना किसी सरकारी खर्च के भी किया जा सकता है। लेकिन सभी जानते हैं कि प्रशासनिक व्यवस्था तब तक सक्रिय नहीं होती जब तक उसे “बजट” न मिले।
अब समय है जनता और नेताओं के एकजुट होने का
अब ज़रूरत है कि नागरिक, सामाजिक संस्थाएं और राजनैतिक दल एक मंच पर आकर इस नदी को पुनर्जीवित करने के लिए उगम से संगम तक एकजुट अभियान चलाएं। इस कार्य में महाराष्ट्र जल बिरादरी और जलपुरुष राजेन्द्र सिंह जैसे विशेषज्ञों का समर्थन मिलना किसी वरदान से कम नहीं।
इरई नदी के पुनर्जीवन की यह लड़ाई महज़ एक नदी की सफाई नहीं, बल्कि पूरे चंद्रपुर शहर के भविष्य को सुरक्षित करने की लड़ाई है। यह कहानी एक उदाहरण है कि जब समाज, संस्था और शासन मिलकर काम करें, तो दशकों पुरानी समस्याएं भी हल हो सकती हैं।
यदि यह अभियान सफलता से पूरा होता है, तो यह महाराष्ट्र के अन्य शहरों के लिए एक मॉडल प्रोजेक्ट बन सकता है।