BJP Leader Caught in Illegal Mining: चंद्रपुर ज़िले में खनिज माफिया और सियासत का घालमेल एक बार फिर सुर्ख़ियों में है। जिस वक्त भाजपा के कद्दावर नेता खुलेआम प्रशासन पर “रेती नहीं मिल रही” का ठीकरा फोड़ रहे थे, उसी दौरान उनके ही सहयोगियों पर अवैध उत्खनन चलाने के आरोप लग रहा है, अब तो सनसनीखेज़ मोड़ यह है कि भाजपा के तालुका महामंत्री और हिवरा गांव के सरपंच निलेश गिरमा पुलगमकार को खुद अपनी ही ट्रैक्टर-ट्रॉली में चोरी का मुरुम (रेड-लेटर मिट्टी) भरते हुए पकड़ लिया गया!
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कैसे फूटा घोटाले का गुब्बारा?
रविवार देर शाम, गोंडपिपरी तहसील के वेडगांव इलाके में तैनात तलाठी विकास चोपड़े को पक्की ख़बर मिली कि हिवरा-पेटा मार्ग से एक ट्रैक्टर लगातार मुरुम ढो रहा है। टीम ने घेराबंदी कर MH-34- TC-000 नंबर के ट्रैक्टर को रोका—ट्रॉली ठसाठस खनिज से लदी थी, और कागज़ात शून्य! विशेष बात यह है कि यह ट्रैक्टर दो दिन पहले ही खरीदी की गई थी, और सीधे अवैध उत्खनन में इस्तेमाल किया गया। जब पूछताछ में सामने आया कि वाहन स्वयं निलेश पुलगमकार के नाम पर पंजीकृत है। मौके पर ही ट्रैक्टर सीज़ कर तहसील कार्यालय भेज दिया गया। राजस्व विभाग ने “खनिज चोरी अधिनियम 1957” की धारा 48(7) के तहत प्रकरण दर्ज़ किया।
‘रेत का साम्राज्य’—राजुरा विधानसभा क्षेत्र बना हॉट स्पॉट!
गोंडपिपरी तालुका राजुरा विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है, जहाँ के विधायक देवराव भोंगले हैं। इलाक़े के लिखितवाडा रेत घाट से लेकर वर्धा नदी किनारे तक, रात-दिन अवैध उत्खनन धड़ल्ले से चल रहा है। स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, रेत-मुरुम की यह समानांतर अर्थव्यवस्था रोज़ाना लाखों में खेलती है, जिसके संरक्षण में “कुछ सत्ताधारी-समर्थित रिश्तेदार” सक्रिय हैं। मज़ेदार बात यह कि पिछले ही हफ्ते भाजपाई मंचों पर “खनिज-मुक्त भ्रष्टाचार अभियान” की कसमे-वादे सुनाई दीं—लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त ने पार्टी को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है।
विकास कार्य या ‘कमीशन-कॉर्पोरेशन’?
ज़िले में सड़क-पुल व अन्य विकास योजनाओं को फिलहाल तीव्र गति मिली है—पर ठेके अधिकांश वही लोग समेट ले रहे हैं जो जनप्रतिनिधियों के ‘करीबी’ माने जाते हैं। अनुमान है कि परियोजनाओं में लगने वाली निर्माण सामग्री का 40-50 फ़ीसद हिस्सा नियमबाह्य ढंग से निकाली गई रेती/मुरुम से पूरा किया जाता है। राजस्व विभाग की उदासीनता ने अवैध सप्लाई-चेन को खुली छूट दे रखी है; नतीजा—सरकारी खज़ाने को करोड़ों का घाटा, पर्यावरण को अपूरणीय क्षति।