“मेरा बच्चा बस सांस ले रहा है… पर कोई हलचल नहीं करता। उसकी आँखों में जीवन है, पर शरीर जैसे जड़ हो गया है।” यह पुकार है अर्जुन गजर की – एक मजदूर पिता, जो अपने चार महीने के बेटे आयुष को बचाने के लिए पूरी दुनिया से उम्मीदें जोड़ रहा है।
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चार महीने के आयुष को स्पाइनल मस्क्युलर एट्रॉफी (Spinal Muscular Atrophy – SMA) नामक एक अत्यंत दुर्लभ और जानलेवा अनुवांशिक बीमारी ने अपनी चपेट में लिया है। यह बीमारी दस लाख बच्चों में से किसी एक को होती है, जिसमें शरीर के स्नायुओं को नियंत्रित करने वाली मोटर न्यूरॉन्स धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं। नतीजा – बच्चा अपने हाथ, पैर, गर्दन को हिलाना तो दूर, सही से रो भी नहीं पाता।
ज़िंदगी बचा सकती है एक इंजेक्शन – कीमत: 16 करोड़ रुपये
इस बीमारी का फिलहाल एकमात्र और अंतिम इलाज है Zolgensma नामक एक जीन-थेरपी इंजेक्शन, जिसकी कीमत है – 16 करोड़ रुपये। डॉक्टरों के अनुसार, यह इंजेक्शन सिर्फ एक बार देना होता है, लेकिन यह तभी असरदार होता है जब बच्चे की उम्र 16 महीने से कम हो। इसका मतलब है कि अर्जुन गजर के पास अपने बेटे आयुष को बचाने के लिए सिर्फ 12 महीने का समय बचा है – और हर दिन निर्णायक हो सकता है।
अर्जुन की असहायता, पर लड़ने का हौसला अडिग
चंद्रपुर के भीवापूर वॉर्ड स्थित गवळी मोहल्ला निवासी अर्जुन गजर दिहाड़ी पर मजदूरी करते हैं। महज़ दो वक़्त की रोटी का इंतज़ाम करना ही कठिन है – ऐसे में 16 करोड़ का इंतजाम? नामुमकिन नहीं, तो असंभव ज़रूर लगता है। लेकिन पिता का प्यार कहाँ हार मानता है?
“मैं हर दरवाज़ा खटखटा रहा हूं – सामाजिक संस्थाएं, स्वयंसेवी संगठन, नेता, पत्रकार, प्रधानमंत्री तक… मेरा आयुष सिर्फ सांस भर रहा है, वो जीना भी तो चाहता है,” अर्जुन ने संवाददाता सम्मेलन में भावुक होते हुए कहा।
कई अस्पताल, कई परीक्षण, और अंत में कठोर सच्चाई
आयुष का जन्म 26 जनवरी 2025 को चंद्रपुर के शासकीय रुग्णालय में हुआ। लेकिन जन्म के 15 दिन बाद तक भी उसने कोई शारीरिक हरकत नहीं की, जिससे माता-पिता चिंतित हो उठे। फिर एक के बाद एक डॉक्टर, अस्पताल और अंततः नागपुर के एनएसएच क्रिटिकल केयर हॉस्पिटल में भर्ती। बेंगलुरु भेजे गए ब्लड सैंपल्स ने अंततः उस बीमारी की पुष्टि की, जिसे हर अभिभावक अपने सबसे बुरे सपने में भी न देखना चाहे।
अर्जुन का समाज और सरकार से मार्मिक आह्वान
अपने बेटे को बचाने की उम्मीद में अर्जुन ने पूर्व मंत्री सुधीर मुनगंटीवार, विधायक किशोर जोरगेवार जैसे नेताओं से मदद मांगी है। साथ ही उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी से भी विनती की है कि आयुष को जीवनदान देने में सरकार मदद करे।
“अगर समय रहते यह इंजेक्शन मिल गया, तो मेरा बच्चा सामान्य जीवन जी सकता है। नहीं तो डॉक्टरों ने साफ कहा है कि ऐसे बच्चे दो साल से ज़्यादा नहीं जी पाते,” अर्जुन ने आँखों में आँसू भरकर कहा।
अब समाज की अग्निपरीक्षा
क्या एक पिता अपने मासूम बेटे को सिर्फ इसलिए खो देगा क्योंकि उसके पास करोड़ों रुपये नहीं हैं? क्या इस देश में जीवन का मूल्य अब रुपयों से मापा जाएगा? यह मामला सिर्फ एक बच्चे की ज़िंदगी का नहीं, बल्कि मानवता की परीक्षा का है।
जो चाहें मदद करना, वे इस आवाज़ को आगे बढ़ाएं – क्योंकि एक मासूम सांसें गिन रहा है और हर दिन, हर घड़ी उसे मौत के करीब ले जा रही है।
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