ओडिशा से छत्तीसगढ़ होते हुए पिछले तीन वर्षों से गडचिरोली ज़िले में कहर बरपाने वाले जंगली हाथियों का आतंक अब और भी गंभीर होता जा रहा है। इसी सिलसिले में अब दो नए टस्कर (नर हाथी) छत्तीसगढ़ से गडचिरोली में दाखिल हुए हैं, जिनका उत्पात थमने का नाम नहीं ले रहा है। ये दोनों हाथी बीते सप्ताह कुरखेडा और धानोरा तालुकों में नजर आए थे और अब 25 मई की मध्यरात्रि को उन्होंने सीधे गडचिरोली शहर के लांजेडा इलाके में दस्तक दी, जिससे प्रशासन और नागरिकों में हड़कंप मच गया।
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शहर में आधी रात को हाथियों का ‘सैर-सपाटा’
25 मई की रात लगभग 12 बजे लांजेडा परिसर में इन दोनों टस्कर हाथियों के प्रवेश से नागरिकों में डर का माहौल पैदा हो गया। गनीमत यह रही कि उस समय सड़कें सुनसान थीं और लोग अपने घरों में सो रहे थे, जिससे किसी बड़े हादसे की नौबत नहीं आई। घटना की सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम ने त्वरित कार्रवाई करते हुए तड़के करीब 3 बजे दोनों हाथियों को आमिर्झा जंगल की ओर खदेड़ दिया।
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो
हाथियों की शहर में हलचल का वीडियो कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिससे यह मामला आम जनमानस में चर्चा का विषय बन गया है। कुछ दिन पहले, 11 मई को भी इन्हीं दो टस्कर हाथियों ने मानापूर गांव में जमकर उत्पात मचाया था, जिसमें एक महिला घबराकर गिर गई और घायल हो गई थी। गांव में उस दिन दहशत का माहौल था, जो अब शहर तक पहुँच गया है।
तीन सालों से जारी है हाथियों का कहर
गौरतलब है कि पिछले तीन वर्षों से ओडिशा से आए जंगली हाथियों के एक झुंड ने गडचिरोली जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में भारी तबाही मचाई है। खेतों को नुकसान, घरों को तहस-नहस करने के अलावा कई लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है। फिलहाल जिले में हाथियों की कुल संख्या 32 तक पहुँच चुकी है। लेकिन हालिया दो टस्कर हाथी इस पुराने झुंड का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि ये एक नए और अलग झुंड से संबंध रखते हैं। इससे अंदेशा है कि इनके पीछे पूरा झुंड भी जल्द ही गडचिरोली के जंगलों में दाखिल हो सकता है।
प्रशासन के पास संसाधनों की कमी
वन विभाग के पास प्रशिक्षित जनशक्ति और आवश्यक उपकरणों की भारी कमी है, जिसके कारण ऐसी आपात स्थिति में वे प्रभावी तरीके से कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं। हाथियों को काबू में करने या दूर भगाने के लिए जो व्यवस्थाएं होनी चाहिए, वे फिलहाल मौजूद नहीं हैं। यही वजह है कि हर बार विभाग की टीम को भारी मशक्कत करनी पड़ती है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और मांग
इस गंभीर परिस्थिति को देखते हुए कांग्रेस के जिलाध्यक्ष महेंद्र ब्राह्मणवाडे ने सरकार से मांग की है कि हाथियों की समस्या पर तत्काल प्रभाव से ठोस कदम उठाए जाएं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि समय रहते यह समस्या नियंत्रित नहीं की गई, तो गडचिरोली जिले में हाथियों का संकट और भी विकराल रूप ले सकता है।
यह मामला न केवल वन्यजीवों के मानव बस्तियों में घुसपैठ का उदाहरण है, बल्कि वन विभाग की संसाधनों की कमी और प्रशासन की असंवेदनशीलता को भी उजागर करता है। साथ ही यह सवाल भी उठाता है कि आखिर कब तक ग्रामीण और अब शहरी क्षेत्र के नागरिक जंगली हाथियों के डर में जीते रहेंगे? क्या सरकार जागेगी जब कोई बड़ा हादसा होगा?
अब वक्त आ गया है जब इस संकट को केवल वन्यजीव समस्या न मानकर, इसे एक सामाजिक और मानवीय संकट के रूप में लिया जाए। प्रशासन को चाहिए कि वह युद्धस्तर पर हाथियों के लिए नियंत्रण योजनाएं बनाए, विशेष प्रशिक्षण दे और आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर इस आपदा पर काबू पाए—वरना यह संकट और गहरा सकता है।