चंद्रपुर जिले में इंसान और वन्यजीवों के बीच संघर्ष भयावह मोड़ पर पहुंच चुका है। बीते 12 घंटों में दो लोगों की बाघ के हमले में दर्दनाक मौत हो गई। जिले में बीते 17 दिनों में अब तक 11 लोग बाघों का शिकार बन चुके हैं, जिससे ग्रामीणों में गहरा भय और आक्रोश व्याप्त है। खेतों और जंगल की ओर जाने में लोग डर महसूस कर रहे हैं, जिससे खरीफ सीजन से पहले ही किसान संकट में आ गए हैं।
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पहली घटना – जंगल में सरपण लेने गई महिला पर बाघ का हमला:
मूल तहसील के भगवानपुर क्षेत्र में मंगलवार सुबह 10 बजे संजीवनी संजय मॅकलवार (उम्र 45) नामक महिला पर बाघ ने उस वक्त हमला किया जब वह अपने पति और अन्य रिश्तेदारों के साथ जंगल में सरपण और कुटीर उद्योग के लिए सामग्री लेने गई थीं। भगवानपुर के वन विकास महामंडल के कम्पार्टमेंट नंबर 524 में अचानक झाड़ियों में छिपे बाघ ने झपट्टा मारा और संजीवनी को खींचते हुए अंदर ले गया। शोर मचाने के बाद बाघ वहां से भाग निकला, लेकिन तब तक महिला की जान जा चुकी थी।
घटनास्थल पर पहुंचे अधिकारी और गांव में डर का माहौल:
घटना की सूचना मिलते ही वनविकास महामंडल के अधिकारी एस.बी. बोथे, वनपाल शिंदे, स्थानीय पुलिस पाटील, वनरक्षक और पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे और पंचनामा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए मूल के उपजिला अस्पताल भेजा गया। इस घटना से चिरोली, टोलेवाही और भगवानपुर गांवों में दहशत का माहौल बन गया है।
दूसरी घटना – बकरी चराने गए किसान की भी मौत:
मंगलवार दोपहर करीब 1 बजे कांतापेट निवासी सुरेश मुंगरु सोपानकार (उम्र 52) बकरी चराने जंगल में गए थे। देर शाम जब बकरियों का झुंड अकेले लौट आया और सुरेश नहीं लौटे, तब ग्रामीणों को शक हुआ। वन विभाग की मदद से जब खोजबीन की गई, तब उनका क्षत-विक्षत शव मिला, जिससे साफ हो गया कि वे भी बाघ का शिकार हो गए।
17 दिनों में 11 मौतें, खरीफ से पहले संकट गहराया:
चंद्रपुर जिले में सिर्फ 17 दिनों में 11 लोग बाघों की हिंसा के शिकार हो चुके हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बाघ जंगलों से बाहर आकर रिहायशी और कृषि क्षेत्रों में घुसपैठ कर रहे हैं, जिससे खेतों में काम करना, पशुपालन और दैनिक जीवन प्रभावित हो रहा है। वन विभाग की ओर से अभी तक स्थायी समाधान या प्रभावी रोकथाम की पहल नहीं की गई है।
यह समस्या अब केवल वन्यजीव संरक्षण या मानव सुरक्षा की नहीं रह गई है, बल्कि यह एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक संकट बन चुकी है। यदि जल्द ही वन विभाग और प्रशासन सतर्क नहीं हुआ तो इससे न केवल और जानें जाएंगी, बल्कि ग्रामीणों की आजीविका भी खतरे में पड़ सकती है। बाघ संरक्षण के नाम पर मानव जीवन की अनदेखी करना अब भारी पड़ रहा है। जरूरत है एक संतुलित और सक्रिय वन नीति की, जो इंसान और जानवर दोनों के लिए सुरक्षित हो।