नागपुर से शुरू हुआ बोगस शिक्षक भर्ती और शालार्थ ID घोटाला पूरे महाराष्ट्र में फैला। 1000 करोड़ की लूट का अंदेशा, राज्य सरकार ने SIT गठित करने का निर्णय लिया। विधायक सुधाकर अडबाले ने विधान परिषद में उठाए तीखे सवाल
महाराष्ट्र के शिक्षा विभाग में एक बार फिर भ्रष्टाचार की भयंकर गूंज सुनाई दी है। नागपुर और भंडारा जिलों से शुरू हुए बोगस शिक्षक भर्ती और फर्जी शालार्थ ID घोटाले ने अब राज्य भर में अपने पैर पसार लिए हैं। इस बहुचर्चित घोटाले की जांच अब राज्य सरकार ने राज्यस्तरीय विशेष जांच टीम (SIT) को सौंपने का निर्णय लिया है, जिसमें सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और वरिष्ठ IAS/IPS अधिकारियों को शामिल किया जाएगा।
यह प्रकरण तब उछला जब विधान परिषद में विधायक सुधाकर अडबाले ने तारांकित प्रश्न के माध्यम से शिक्षा मंत्री पंकज भोयर से इस घोटाले पर स्पष्टीकरण मांगा। अडबाले ने मांग की कि इस मामले में गृह और शिक्षा विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारियों सहित उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को शामिल कर एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराई जाए।
शिक्षा राज्यमंत्री पंकज भोयर ने अपने उत्तर में स्वीकार किया कि यह घोटाला केवल नागपुर-भंडारा तक सीमित नहीं है, बल्कि नाशिक और जळगांव जैसे जिलों में भी इसकी पुष्टि हो चुकी है। अब इस पूरे प्रकरण की जांच एक राज्यस्तरीय SIT को सौंपी जाएगी, जिसमें न्यायिक और प्रशासनिक पृष्ठभूमि के अनुभवी अधिकारी रहेंगे।
क्या है पूरा मामला?
शिक्षक पदों पर भर्ती 2 मई 2012 से बंद है, और फरवरी 2013 से TET (शिक्षक पात्रता परीक्षा) अनिवार्य कर दी गई थी। इसके बावजूद 2013 के पहले डीएड (D.Ed) पास उम्मीदवारों को मृत शिक्षण अधिकारियों के नाम से नियुक्ति दी गई। 2019 के बाद तो बोगस शालार्थ ID का इस्तेमाल करके शिक्षकों की भर्ती की गई और सरकारी खजाने को करोड़ों का चूना लगाया गया।
सूत्रों के अनुसार, यह घोटाला 1000 करोड़ रुपये से अधिक का हो सकता है और इसमें शिक्षा अधिकारियों, उपसंचालकों, आयुक्त कार्यालय से लेकर मंत्रालय तक के अधिकारियों की मिलीभगत सामने आई है।
कब खुलेगा भागे हुए मास्टरमाइंड का राज?
इस घोटाले का मुख्य सूत्रधार, जिसे निलंबित किया जा चुका है, पिछले तीन महीनों से फरार है। विधायक अडबाले ने प्रश्न उठाया कि उसे अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? अब तक इस मामले में 18 से अधिक अधिकारी और कर्मचारी गिरफ्तार हो चुके हैं। विधायक ने ED से संपत्ति की जांच और दोषियों को बर्खास्त करने की भी मांग की है।
राजनीतिक पेंच और प्रशासनिक असफलता
यह मामला न केवल प्रशासनिक ढांचे की विफलता को उजागर करता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि किस प्रकार से राजनीतिक संरक्षण और तंत्र की मिलीभगत से फर्जीवाड़ा राज्य भर में फैलता है। यह घोटाला आने वाले समय में राजनीतिक तूफान खड़ा कर सकता है, खासकर जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव समीप हैं।
शिक्षा जैसे संवेदनशील विभाग में इस प्रकार का संगठित भ्रष्टाचार शासन की जवाबदेही और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। देखना होगा कि राज्य सरकार की SIT इस मामले को कितनी ईमानदारी से अंजाम तक पहुंचा पाती है या फिर यह भी अन्य घोटालों की तरह राजनीतिक भूलभुलैया में खो जाएगा।
