निष्ठावान-कट्टर कार्यकर्ता चुप : भीतरघात से बदला सत्ता समीकरण
Chandrapur CDCC Bank BJP-Congress Politics : बैंक मतलब वित्त। वित्त मतलब अर्थ। और अर्थ पूर्ण संस्था अर्थात बैंक पर कब्जा जमाने के लिए वर्तमान में चल रही गतिविधियों में राजनीति की पैठ ने सारे समीकरणों को तार-तार कर दिया। राजनेताओं का जहां असली रूप खुलकर जनता के सामने आ रहा है, वहीं वर्चस्व कायम करने के लिए अभद्र युति कार्यकर्ताओं को विचलित करने लगी है। कांग्रेस हो या भाजपा, कौनसे नेता किसका करीबी है, यह आम कार्यकर्ताओं को समझ नहीं आ रहा है। बरसों तक अपने पार्टी के लिए निष्ठावान बनकर कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं को अब यह एहसास होने लगा है कि उनके नेता पार्टी विरोधी समझे जाने वाले दल के साथ किसी भी समय हाथ मिलाने, साथ घूमने, गले मिलने, मिठाई खिलाने, मनोमिलन की सारी हदें पार कर सकते हैं। जबकि गांव में रहने वाले आम कार्यकर्ता पार्टी के बैनर से चिपककर बरसों तक दूसरे दल के अपने ही पड़ोसी मित्रों से बैर पालते आये हैं। CDCC बैंक के चुनाव ने यह साबित कर दिया कि आम कार्यकर्ताओं को अपने राजनीतिक दल की निष्ठा के लिए कट्टर नहीं बनना चाहिये। दूसरे दल के साथ वे घूम सकते हैं और मिठाई खा सकते हैं।
अध्यक्ष पद के लिए घमासान तेज
भाजपा का सहकारी बैंक पर ‘राजनीतिक कब्जा’ स्पष्ट नजर आ रहा है। कांग्रेस नेताओं की भीतरघात से चंद्रपुर का सत्ता समीकरण बदल गया है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस नेताओं की गद्दारी से भाजपा को बड़ी जीत मिली हैं। फिलहाल अध्यक्ष पद के लिए घमासान तेज हो चुका है।
भाजपा नेताओं से मिलीभगत
चंद्रपूर जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक के संचालक पद की हालिया चुनावी प्रक्रिया ने जिले की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया है। कांग्रेस के अपने ही नेताओं द्वारा पार्टी के हितों की अनदेखी और भाजपा नेताओं से मिलीभगत करने के कारण भाजपा ने एक बड़ा राजनैतिक उलटफेर कर डाला। भाजपा, जो अब तक सिर्फ एक संचालक पद पर थी, अब नौ संचालकों के साथ शक्ति के केंद्र में आ गई है।
अचानक रुख बदलते नेताओं को देख रही जनता
चुनाव के पहले चरण में कांग्रेस की सांसद प्रतिभा धानोरकर, भाजपा विधायक कीर्तीकुमार भांगडिया और उद्धव ठाकरे गुट के रविंद्र शिंदे एक साथ आए। भाजपा विधायक भांगडिया के सहयोग से सांसद धानोरकर महिला गुट से निर्विरोध चुनी गईं। परंतु इसके बाद धानोरकर के रुख में अचानक बदलाव देखने को मिला।
जोरगेवार और वडेट्टीवार की फजीहत
दूसरी ओर, भाजपा विधायक किशोर जोरगेवार, जो सहकारी बैंक में भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार मुखर रहे, उन्हें किसी भी पक्ष ने अपने साथ लेने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। कांग्रेस विधायक विजय वडेट्टीवार और जिला अध्यक्ष सुभाष धोटे भी असहाय दिखे। अंततः जोरगेवार और वडेट्टीवार को चुनावी मैदान से पीछे हटना पड़ा। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के कारण धोटे को अपने भाई शेखर धोटे की उम्मीदवारी आखिरी वक्त पर वापस लेनी पड़ी।
कांग्रेस के कई नेता भाजपा में शामिल
आषाढी एकादशी के दिन प्रतिभा धानोरकर, विजय वडेट्टीवार, सुधाकर अडबाले और सुभाष धोटे एक ही मंच पर जरूर नजर आए, लेकिन तब तक बाजी भाजपा के हाथ लग चुकी थी। उसी दौरान बंटी भांगडिया और किशोर जोरगेवार ने कांग्रेस के कई नेताओं को भाजपा में शामिल कर डाला।
भाजपा के नए ‘नायक’
भाजपा ने अब कुल 9 संचालकों को अपने पाले में कर लिया है। गजानन पाथोडे, सुदर्शन निमकर, संजय डोंगरे, नंदा अल्लूरवार, यशवंत दिघोरे, आवेश खान पठाण, गणेश तर्वेकर, निशिकांत बोरकर और ललित मोटघरे।
निमकर का दावा – धोटे के समर्थन से जीते
पूर्व विधायक सुदर्शन निमकर ने खुलकर स्वीकार किया कि उन्हें कांग्रेस जिलाध्यक्ष धोटे के समर्थन से जीत मिली। धोटे ने उन्हें मिठाई खिलाकर बधाई भी दी। वहीं सांसद धानोरकर ने भाजपा के नागेश्वर ठेंगणे के लिए खुलेआम वोट मांगे। ओबीसी गुट से श्यामकांत थेरे मात्र दो वोटों से हार गए, जिससे कांग्रेस की अंदरूनी कमजोरी और साफ हो गई।
अध्यक्ष पद पर सस्पेंस बरकरार
वर्तमान में कांग्रेस के पास 12 संचालक हैं, जबकि भाजपा अपने 10-11 संचालकों का दावा कर रही है। कांग्रेस नेता उल्हास करपे और रोहित बोम्मावार 12 संचालकों को लेकर पर्यटन पर निकल पड़े हैं, जिससे अध्यक्ष पद को लेकर स्थिति पूरी तरह अस्पष्ट है।
कांग्रेस की रणनीतिक चूक और भाजपा की चाणक्य नीति
कांग्रेस नेताओं के अंदरूनी कलह, अहंकार और स्वार्थ ने भाजपा को सत्ता का रास्ता दिखा दिया। जबकि भाजपा ने विरोधियों की असहमति को अपने पक्ष में मोड़कर संचालक मंडल पर मजबूत पकड़ बना ली।
सत्ता संघर्ष का अगला अध्याय
अब सबसे बड़ा सवाल यही है – क्या कांग्रेस अपने 12 संचालकों को एकजुट रख पाएगी या भाजपा की रणनीति फिर भारी पड़ेगी ?
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