चंद्रपुर में नए जिला परिषद भवन के लिए रामबाग मैदान के पास 100 से अधिक वृक्ष काटे गए। संघर्ष समिति ने 22 जुलाई को वृक्षारोपण आंदोलन की घोषणा की। जानिए पूरा मामला।
जहां एक ओर सरकार हरित क्रांति और पर्यावरण संरक्षण की बात करती है, वहीं दूसरी ओर चंद्रपुर जैसे अत्यंत प्रदूषित शहर में विकास के नाम पर हरियाली की बलि दी जा रही है। आगामी 22 जुलाई को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के जन्मदिवस से पहले चंद्रपुर में ज़िला परिषद की नई इमारत के निर्माण हेतु रामबाग मैदान के पास करीब 100 से अधिक पुराने और दुर्लभ वृक्षों की निर्मम कटाई कर दी गई।
यह पेड़ ताड़, सिंधी और सागवान जैसे बहुमूल्य प्रजातियों के थे और इनकी आयु 40 से 50 वर्षों से अधिक बताई जा रही है। रामबाग मैदान बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक पप्पू देशमुख ने इस पर तीव्र आक्रोश जताते हुए कहा कि यह कार्य ‘विकास नहीं, बल्कि विकृति’ है।
जनता के दबाव के बाद भी नहीं माना प्रशासन
पूर्व में जिला परिषद की इमारत के लिए रामबाग मैदान पर खुदाई की गई थी, जिससे मैदान को भारी नुकसान हुआ। लेकिन नागरिकों, संगठनों, खिलाड़ियों और योग समूहों के सामूहिक विरोध के बाद निर्माण कार्य रोक दिया गया और महापंचायत में सर्वसम्मति से विरोध का प्रस्ताव पारित किया गया, जिसकी प्रति जिला अधिकारी को भी सौंपी गई थी।
इसके बावजूद प्रशासन ने अडियल रवैया अपनाते हुए मैदान के समीप के लगभग 100 पेड़ काट डाले। जबकि पुराने ज़िला परिषद भवन के पास दो एकड़ भूमि पहले से ही उपलब्ध है, जहां नई इमारत का निर्माण संभव था।
‘विकास’ की आड़ में ठेकेदारों को लाभ पहुँचाने का आरोप
देशमुख का कहना है कि निर्माण कार्य को किसी भी हालत में जल्दी पूरा करने का दबाव सिर्फ इसीलिए है ताकि ठेकेदारों को फायदा मिले और कुछ “हिस्सेदारों” को आर्थिक लाभ हो सके। उन्होंने प्रशासन पर ठेकेदारों के हितों में काम करने का आरोप भी लगाया।
22 जुलाई को वृक्षारोपण आंदोलन की चेतावनी
संघर्ष समिति ने एलान किया है कि मुख्यमंत्री के जन्मदिवस पर 22 जुलाई को सुबह 8 बजे, उसी स्थान पर 100 नए पेड़ लगाकर पेड़ कटाई का जोरदार विरोध किया जाएगा। उन्होंने जनता से अधिकाधिक संख्या में इस आंदोलन में शामिल होने की अपील की है।
चंद्रपुर जैसे शहर में, जो पहले से ही प्रदूषण के गंभीर स्तर से जूझ रहा है, वहां हरियाली की कटाई को लेकर प्रशासन की यह नीति कई सवाल खड़े करती है। जहां एक ओर ‘हर घर तिरंगा’ और ‘हर घर पेड़’ जैसे अभियान चल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार स्वयं हरित क्षेत्र समाप्त करने में अग्रणी नजर आ रही है। सवाल यह भी है कि यदि दो एकड़ जमीन पहले से मौजूद है तो फिर पेड़ों की बलि क्यों दी गई?
