चंद्रपुर जिले के तडाली एमआईडीसी स्थित धारीवाल पावर स्टेशन की पानी सप्लाई पाइपलाइन बार-बार फटने से किसानों की फसलें डूबती रहीं; हाईकोर्ट ने जिलाधिकारी को आठ हफ्ते में मुआवजा तय करने का आदेश दिया।
चंद्रपुर जिले के तडाली MIDC में स्थित Dhariwal Infrastructure limited (DIL) – Chandrapur पावर स्टेशन की पानी सप्लाई करने वाली 20 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन ने पिछले कई सालों से किसानों का जीना मुहाल कर दिया है। यह पाइपलाइन हर साल कई जगहों पर फटती रही, जिससे खेतों में पानी भर जाता और लाखों रुपये की खड़ी फसलें तबाह हो जातीं। अंततः किसानों की वर्षों की लड़ाई को मुंबई उच्च न्यायालय, नागपुर खंडपीठ ने बड़ी राहत दी है।
न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति वृषाली जोशी की खंडपीठ ने सुनवाई के बाद आदेश जारी करते हुए कहा कि –
- प्रभावित किसान जिलाधिकारी चंद्रपुर के समक्ष मुआवजे की मांग के लिए आवेदन करें।
- जिलाधिकारी को निर्देश दिया गया है कि वे आठ सप्ताह के भीतर इन आवेदनों पर निर्णय लें।
- मुआवजे की राशि तय होते ही इसे राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा 50 लाख रुपये की सुरक्षा राशि से किसानों को अदा किया जाए।
मामला कैसे शुरू हुआ?
अंतुर्ला गांव के किसान अशोक कौरसे और चार अन्य किसानों ने यह याचिका दाखिल की थी। किसानों का आरोप था कि धारीवाल इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी ने वर्धा नदी से पानी लाने के लिए बनाई गई पाइपलाइन के कारण उनकी जमीनें बार-बार डूब रही हैं और भारी नुकसान हो रहा है।
- यह पाइपलाइन धानोरा, वढा, पांढरकवड़ा, महाकुर्ला, अंतुर्ला, शेणगाव, सोनेगाव, येरूर और गवराला गांवों से होकर गुजरती है।
- पावर स्टेशन को 19.26 क्यूबिक लीटर पानी प्रतिवर्ष वर्धा नदी से उपयोग की अनुमति मिली है।
- कंपनी ने अदालत में भी स्वीकार किया कि पाइपलाइन फटने से नुकसान हुआ है।
किसानों की मांग क्या थी?
याचिकाकर्ताओं ने प्रति वर्ग मीटर 4,444 रुपये मुआवजा तय करने की मांग की थी। उन्होंने यह भी आग्रह किया कि मुआवजा 2011 से 2025 तक के हर साल के नुकसान के अनुसार दिया जाए।
कोर्ट का रुख
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कंपनी को अपनी निष्ठा साबित करने के लिए 50 लाख रुपये कोर्ट में जमा करने का आदेश दिया था। अब अदालत ने यह रकम तीन महीने के लिए राष्ट्रीयकृत बैंक में रखने का आदेश देते हुए स्पष्ट किया कि जिलाधिकारी के निर्णय के बाद यही राशि किसानों के मुआवजे के भुगतान के लिए उपयोग होगी।
यह मामला सिर्फ किसानों बनाम कंपनी का नहीं, बल्कि उद्योग बनाम पर्यावरणीय न्याय का प्रतीक है। जहां एक ओर उद्योगों को पानी और जमीन की सुविधा मिलती है, वहीं स्थानीय किसानों के जीवन और आजीविका पर इसका गहरा असर पड़ता है। यह फैसला उन सभी मामलों के लिए नजीर बन सकता है, जहां औद्योगिक परियोजनाओं के कारण किसानों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है।
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