मां और बेटे का रिश्ता दुनिया में सबसे अनमोल और निःस्वार्थ माना जाता है। यह सिर्फ खून का संबंध नहीं होता, बल्कि इसमें प्रेम, त्याग, देखभाल और जिम्मेदारी का भाव भी होता है। ऐसा ही एक भावुक मामला चंद्रपुर जिले के चिमूर शहर से सामने आया है, जहां 16 साल पहले बिछड़ी मां और बेटे की मुलाकात ने पूरे समाज को भावुक कर दिया। यह कहानी सिर्फ पुनर्मिलन की नहीं, बल्कि प्रेम और अपनापन निभाने वाले एक अनजान शख्स की इंसानियत की भी है।
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मां-बेटे की बिछड़ने की दर्दनाक घटना
चिमूर के आजाद वार्ड की रहने वाली छाया विनायक भैसारे नाम की महिला अपने बेटे से 16 साल पहले बिछड़ गई थी। छाया देवी के पति का देहांत हो चुका था, जिसके बाद उनके परिवार में एक बेटा और चार बेटियां थीं। चारों बेटियों की शादी हो चुकी थी, और घर में छायाबाई अपने बेटे, बहू और पोते के साथ रह रही थीं।
छायाबाई को मानसिक स्वास्थ्य की समस्या थी, जिससे उनका व्यवहार कभी-कभी असामान्य हो जाता था। बेटा उनकी सही चिकित्सा करवाना चाहता था, इसलिए उसने उन्हें नागपुर के एक अच्छे डॉक्टर को दिखाने का फैसला किया। इस सिलसिले में वह अपनी मां को पहले बुट्टीबोरी स्थित अपने जीजा के घर ले गया। लेकिन उसी दिन वहां बाजार लगा हुआ था, और बाजार में अचानक छायाबाई लापता हो गईं। बेटे और जीजा ने उन्हें ढूंढने के लिए पूरा इलाका छान मारा, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। उस दिन के बाद से मां-बेटे के बीच लंबी जुदाई शुरू हो गई।
बेटे ने अपनी मां को खोजने के तमाम प्रयास किए, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। धीरे-धीरे 16 साल का समय गुजर गया, परंतु मां की यादें बेटे के दिल में हमेशा बनी रहीं।
छायाबाई की संघर्षपूर्ण जिंदगी
बुट्टीबोरी से लापता होने के बाद छायाबाई भटकते-भटकते नागपुर-अमरावती मार्ग स्थित खड़गांव गांव में पहुंच गईं। यहां वे पूरी तरह अकेली थीं, न खाने का ठिकाना था और न रहने का कोई सहारा। उन्होंने गांव में छोटे-मोटे काम करके अपनी गुजर-बसर शुरू कर दी। करीब 3-4 साल तक उन्होंने गांव में जैसे-तैसे जीवन बिताया।
गांव के एक व्यक्ति, वारीसभाई, जो टायर पंक्चर की दुकान चलाते थे, अक्सर उन्हें काम करते हुए देखते थे। छायाबाई के शांत स्वभाव और ईमानदारी ने वारीसभाई का ध्यान आकर्षित किया। चार साल बाद, उन्होंने छायाबाई को अपने घर में शरण दी और उन्हें अपनी मां की तरह सम्मान दिया। इस तरह, वारीसभाई और छायाबाई के बीच एक नया मां-बेटे जैसा रिश्ता बन गया। छायाबाई के लिए वारीसभाई का घर नया सहारा बन गया, और वे वहां पूरे 10 साल तक रहीं।
संयोग से हुआ पुनर्मिलन
चार दिन पहले चिमूर के राजेश तायड़े नामक व्यक्ति किसी काम से खड़गांव गए थे। वहां उन्होंने एक होटल में छायाबाई को देखा, और उन्हें शक हुआ कि यह महिला चिमूर की ही हो सकती है। उन्होंने होटल मालिक से जानकारी ली और खुद छायाबाई से भी पूछताछ की। जब छायाबाई ने बताया कि वे चिमूर की हैं, तो राजेश तायड़े को यकीन हो गया कि यह वही महिला है, जो सालों पहले लापता हो गई थी।
उन्होंने तुरंत संजय भैसारे (छायाबाई के बेटे) को फोन कर इस बारे में बताया। खबर सुनते ही संजय की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने तुरंत खड़गांव जाकर मां से मिलने का फैसला किया।
16 साल बाद मां-बेटे की भावुक मुलाकात
खड़गांव पहुंचने के बाद संजय ने जब अपनी मां को देखा, तो उनकी आंखों में आंसू छलक पड़े। छायाबाई भी अपने बेटे को पहचान गईं। यह एक बेहद भावुक दृश्य था, जिसे देखकर गांव के लोग भी भावुक हो गए।
संजय अपनी मां को अपने घर वापस ले आया। 16 साल बाद अपने परिवार में लौटने की खुशी छायाबाई के चेहरे पर साफ झलक रही थी। हालांकि, वारीसभाई और छायाबाई के बीच जो अपनापन और रिश्ता बना था, उसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वारीसभाई ने छायाबाई को विदाई देते हुए कहा कि उनके घर के दरवाजे हमेशा उनके लिए खुले रहेंगे।
समाज के लिए सीख
यह कहानी सिर्फ एक मां और बेटे के पुनर्मिलन की नहीं, बल्कि इंसानियत और मानवीय संवेदनाओं की मिसाल भी है। 16 साल की जुदाई के बाद भी बेटे ने अपनी मां को नहीं भुलाया और उनकी खोज में लगा रहा। वहीं, वारीसभाई ने भी अनजान महिला को सहारा देकर यह साबित किया कि सच्चा अपनापन सिर्फ खून के रिश्तों में ही नहीं, बल्कि इंसानियत में भी बसता है।
इस घटना से समाज को यह सीख मिलती है कि हमें अपने बुजुर्गों और माता-पिता का सम्मान करना चाहिए। उनकी देखभाल करना हमारी जिम्मेदारी है, और अगर किसी बुजुर्ग को कोई सहारा नहीं है, तो हमें उसे अपनाना चाहिए, जैसा वारीसभाई ने किया।
छायाबाई की कहानी हर उस परिवार के लिए एक प्रेरणा है, जो अपनों से बिछड़ गए हैं। यह साबित करता है कि अगर सच्चा प्रेम और अपनापन हो, तो वर्षों की दूरियां भी मिट सकती हैं। मां-बेटे का यह पुनर्मिलन समाज में सकारात्मकता और प्रेम का संदेश देता है।