चंद्रपुर जिले के 🔍घुग्घूस क्षेत्र की राजनीतिक फिजा इन दिनों खासा गरम है। जहां एक ओर यह औद्योगिक नगरी भाजपा का पारंपरिक गढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर चुनावी नतीजे कई बार कांग्रेस के पक्ष में जाते देखे गए हैं। इस क्षेत्र में अब एक नई हलचल देखने को मिल रही है—भाजपा के युवा नेता 🔍आशीष मशिरकर को ग्रामीण नेतृत्व की कमान सौंपे जाने की चर्चा ने स्थानीय राजनीति में हलचल मचा दी है।
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भाजपा की रणनीति में युवा चेहरों को प्राथमिकता
आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए भाजपा नेतृत्व ने रणनीतिक तौर पर युवा नेताओं को जिम्मेदारी सौंपने का फैसला लिया है। बताया जा रहा है कि आशीष मशिरकर यवतमाल जिले के वर्तमान भाजपा विधायक के रिश्तेदार हैं, इसी रणनीति के तहत आशीष की एंट्री को देखा जा रहा है। आशीष लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्यक्षी मुनगंटीवार के प्रचार मे सक्रिय रहे, अब वर्तमान भाजपा विधायक जोरगेवार के करीबी भी माने जाते हैं। उनकी नियुक्ति से घुग्घूस क्षेत्र में भाजपा की पकड़ मजबूत करने की कोशिश की जा रही है।
जहाँ एक ओर आशीष की नियुक्ति को लेकर पार्टी की एक लॉबी इसे सकारात्मक मान रही है, वहीं दूसरी ओर दूसरे खेमा इससे खासा असहज नजर आ रहा है। यह खींचतान उस समय और गहराई जब यह देखा गया कि पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज कर कुछ नए चेहरों को अहम जिम्मेदारियाँ सौंपी गईं। इससे पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता असंतुष्ट और नाराज हैं।
विधानसभा चुनावों में भाजपा की स्थिति और चुनौतियाँ
2019 के विधानसभा चुनाव में विधायक जोरगेवार ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में 8,200 घुग्घुस क्षेत्र मे मत मिले, वहीं 2024 में भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी से कम मत प्राप्त हुए, जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष पनप गया। यह स्पष्ट संकेत है कि क्षेत्रीय नेतृत्व के बावजूद मतदाता आधार कांग्रेस की ओर अधिक झुका हुआ है। इसके पीछे पार्टी की जमीनी पकड़ में कमी, नेतृत्व का एकतरफा रवैया, और आंतरिक संघर्ष जैसे कारण रहे हैं। अब जोरगेवार का यह दूसरा कार्यकाल है और वे अपने राजनीतिक वर्चस्व को बनाए रखने के लिए घुग्घूस क्षेत्र में अधिक सक्रिय हो गए हैं।
पूर्व नेतृत्व और सत्ता का संतुलन
इस क्षेत्र में पहले पूर्व मंत्री सुधीर मुनगंटीवार के शिष्य🔍 देवराव भोंगले और विवेक बोडे का प्रभाव था। अब भोंगले के राजुरा विधायक बनने के बाद विवेक की पकड़ ढीली पड़ी है, और इस शून्य को भरने के लिए विधायक खेमा अब आक्रामक रूप में सामने आया है।
भाजपा के भीतर दो गुटों की स्पष्ट रेखाएं
भाजपा के दो वरिष्ठ नेता—🔍मुनगंटीवार और 🔍जोरगेवार—के समर्थकों के बीच तनातनी अब खुलकर दिखने लगी है। शहर के विभिन्न कार्यक्रमों में अलग-अलग मंच, पोस्टर वार, और गायब चेहरों ने इस गुटबाजी को उजागर किया है। यह स्थिति न केवल भाजपा की छवि को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि कांग्रेस को पुनः पनपने का मौका भी दे रही है।
पुराने समर्थकों की नाराज़गी, नए चेहरों को अवसर
विधायक के वित्तीय विंग को संभाल रहे 🔍ललित द्वारा कुछ कार्यकर्ताओं को आर्थिक लाभ पहुँचाने और नगरपालिका जैसे सरकार विभागीय कार्यों का बंटवारा केवल अपने समर्थकों के बीच करने को लेकर पार्टी में गहरा असंतोष व्याप्त है। इसके चलते कई पुराने कार्यकर्ता हाशिये पर चले गए हैं, जो खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। वहीं जिन कार्यकर्ताओं ने विधानसभा चुनाव के दौरान झी जान लगाकर पार्टी के उम्मीदवार को जीतने मे सहयोग किया, उन्हें अभी तक सही सम्मान नहीं मिला, जिससे नाराजगी और बढ़ी है। इससे पार्टी के भीतर ‘नई भर्ती बनाम पुराने कार्यकर्ता’ की बहस ने जोर पकड़ लिया है। वहीं हाल ही में विधायक के कार्यालय मे कामों के बटवारे को लेकर ललित और मुन्ना के बीच जमकर विवाद तक हो गया।
शहर अध्यक्ष पद पर भी खींचतान
घुग्घूस शहर भाजपा अध्यक्ष के पद को लेकर भी घमासान जारी है। एस घमासान मे अनेक सीनियर नेताओ ने आस लगा बैटे है, उनका कहना है “हमारा नंबर कब आएगा”!
क्या आशीष मशिरकर ला पाएंगे संतुलन?
इन सबके बीच आशीष मशिरकर की एंट्री को पार्टी की अंदरूनी गुटबाज़ी को थामने और नए नेतृत्व को उभारने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। वे शहर के मूल निवासी हैं और युवा चेहरा होने के कारण पार्टी उन्हें एक दीर्घकालिक विकल्प के रूप में देख रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वे पार्टी के पुराने असंतोषों को शांत कर, संगठन को मजबूत कर पाएंगे या फिर वे भी गुटबाजी का एक और चेहरा बनकर रह जाएंगे।
आगामी चुनावों की तैयारी और आंतरिक संतुलन बनाए रखने की चुनौती भाजपा के सामने है, और यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी कि आशीष की नियुक्ति इस राजनीतिक समीकरण को साध पाएगी या उलझा देगी।
भाजपा के लिए घुग्घूस क्षेत्र हमेशा से एक जटिल चुनावी गणित रहा है—जहां पार्टी के विधायक तो रहे, लेकिन मत कांग्रेस को अधिक मिले। आशीष मशिरकर की नियुक्ति इस समीकरण को किस दिशा में ले जाएगी, यह वक्त बताएगा। लेकिन इतना तय है कि इस एंट्री ने भाजपा के भीतर नए समीकरण बना दिए हैं—और कुछ पुराने धागों को तोड़ भी दिया है।