ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व से एक सनसनीखेज खबर सामने आई है। जंगल का राजा कहे जाने वाले प्रसिद्ध बाघ ‘छोटा मटका’ इस समय गंभीर रूप से घायल है। बुद्ध पूर्णिमा की रात (12 मई) को अपने इलाके और मादा बाघिन ‘नयनतारा’ पर अधिकार को लेकर हुए खूनी संघर्ष में उसने एक घुसपैठिए बाघ ‘ब्रह्मा’ को मौत के घाट उतार दिया। हालांकि, इस संघर्ष में छोटा मटका खुद भी बुरी तरह जख्मी हो गया है।
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क्या हुआ था बुद्ध पूर्णिमा की रात?
रामदेगी क्षेत्र में हुई यह लड़ाई जंगल की सत्ता के लिए लड़ी गई थी। ‘नयनतारा’ नाम की आकर्षक बाघिन, जिसकी नीली आंखें पर्यटकों के बीच चर्चा का विषय रहती हैं, छोटा मटका के क्षेत्र में रहती है। पिछले कुछ वर्षों से यह इलाका छोटा मटका का एकछत्र राज रहा है। उसकी दहाड़ और दबदबा इतना है कि कोई दूसरा नर बाघ इस क्षेत्र में कदम रखने की हिम्मत नहीं करता। लेकिन बुद्ध पूर्णिमा की रात यह परंपरा टूटी।
दहाड़ते हुए दो शेर, एक ही पहाड़ पर…
‘ब्रह्मा’ नामक घुसपैठिए बाघ ने नयनतारा और इलाके पर अधिकार जमाने की कोशिश की। इसके बाद जो हुआ, वो जंगल के इतिहास में दर्ज होने लायक था – एक भयानक, भीषण और जानलेवा संघर्ष। कुछ पर्यटक इस मंजर के चश्मदीद गवाह बने। दहाड़ों और पंजों की टक्कर से जंगल गूंज उठा। कई घंटों तक चली इस खौफनाक लड़ाई के अंत में छोटा मटका विजयी हुआ, लेकिन उसकी जीत की कीमत बहुत बड़ी थी – वह गंभीर रूप से घायल हो गया। लहूलुहान अवस्था में लंगड़ाता हुआ नजर आया।
ब्रह्मा की मौत, मटका का रक्तरंजित बदन
संघर्ष के बाद छोटा मटका जब बाहर निकला, उसके मुंह से खून बह रहा था, और एक पैर बुरी तरह लहूलुहान था। उसे चलने में भी कठिनाई हो रही थी। तत्काल वन विभाग ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए 27 लोगों की विशेषज्ञ टीम – जिसमें वन अधिकारी, मेडिकल एक्सपर्ट और ट्रैकिंग स्टाफ शामिल हैं – तैनात कर दी।
नैसर्गिक इलाज की अनोखी पहल
विशेष बात यह है कि छोटा मटका पर किसी भी प्रकार की जबरन चिकित्सा नहीं की जा रही है। उसे उसकी प्राकृतिक परिस्थिति में ही उपचारित किया जा रहा है। वन विभाग की रणनीति है कि बाघ की प्राकृतिक प्रवृत्तियों और जंगल में उसका व्यवहार प्रभावित न हो, इसलिए उस पर प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं किया गया है। पांच ट्रैप कैमरों की सहायता से उसकी हर हरकत पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है। ताडोबा के विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, फिलहाल छोटा मटका की स्थिति चिंताजनक नहीं है। हालांकि उसकी हालत गंभीर थी, पर अब वह धीरे-धीरे उबर रहा है।
जंगल की राजनीति और छोटा मटका का वर्चस्व
छोटा मटका सिर्फ एक बाघ नहीं है – वह ताडोबा की पहचान है। अपने पिता ‘मटका’ से विरासत में मिले दबदबे को उसने और भी ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। इससे पहले भी उसने ताला, रुद्र, बली, मोगली और बजरंग जैसे बाघों को मात देकर अपने क्षेत्र से खदेड़ दिया है। 2023 में बजरंग और मोगली को हराने के बाद, अब ब्रह्मा को मारकर उसने फिर से अपनी सत्ता कायम की है।
क्या छोटा मटका वापसी कर पाएगा?
सवाल यह है – क्या छोटा मटका फिर से अपनी पुरानी ताकत हासिल कर पाएगा? क्या वह दोबारा जंगल का निर्विवाद राजा बन सकेगा? वन विभाग आशावान है, और उसकी निगरानी में बाघ के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है।
“जंगल का नियम है—जो जीता, वही सिकंदर!”
छोटा मटका ने ब्रह्मा को मारकर अपना वर्चस्व कायम रखा है, लेकिन अब उसकी “दूसरी लड़ाई” अपने घावों से उबरने की है। पूरा ताडोबा उसके स्वस्थ होने का इंतजार कर रहा है!
ताडोबा के जंगलों में बाघों की संघर्ष की यह कहानी रोमांच, खून और ताकत का ऐसा मिश्रण है, जो प्रकृति की क्रूरता और सौंदर्य दोनों को दर्शाती है। ‘छोटा मटका’ की यह जंग साबित करती है कि जंगल में राज करने के लिए सिर्फ ताकत नहीं, साहस और निष्ठा भी जरूरी है।