भारत में नशाखोरी एक गंभीर सामाजिक समस्या बन चुकी है, जिससे हजारों युवाओं का जीवन बर्बाद हो रहा है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो समाज को इस बुरी लत से बचाने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं। अमनदीप सिंह उन्हीं व्यक्तित्वों में से एक हैं, जिन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा नशामुक्त भारत के संदेश को फैलाने में समर्पित कर दिया है।
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व्यसनमुक्ति की प्रेरणा और यात्रा की शुरुआत
अमनदीप सिंह मूल रूप से बेंगलुरु के पास चेक तिरुपति गाँव के निवासी हैं। उनका यह असाधारण अभियान व्यक्तिगत पीड़ा से उपजा। उनके अपने मामा शराब के आदी थे और इस लत के कारण उन्होंने अपनी जान गंवा दी। इस घटना ने अमनदीप को झकझोर दिया और उन्होंने संकल्प लिया कि वे समाज को नशे की भयावहता से आगाह करेंगे।
1 जनवरी 2008 को, उन्होंने साइकिल से भारत यात्रा की शुरुआत की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड को छोड़कर देश के सभी राज्यों की यात्रा की और 52,000 से अधिक गाँवों में व्यसनमुक्ति का संदेश फैलाया। इतना ही नहीं, उन्होंने 35,000 से अधिक स्कूलों और कॉलेजों में व्याख्यान देकर युवाओं को नशे के दुष्परिणामों से अवगत कराया।
यात्रा के प्रमुख पड़ाव और चुनौतियाँ
अमनदीप सिंह की यह यात्रा केवल शारीरिक परिश्रम की नहीं, बल्कि मानसिक और आर्थिक संघर्षों से भी भरी रही। उन्होंने अपने सफर के दौरान 14 साइकिलों का उपयोग किया, जिनके टायर और ट्यूब को 65 बार बदला गया। इस पूरी यात्रा में उन्होंने लगभग 8 लाख रुपये खर्च किए, जो उन्होंने अपनी सेविंग्स और समाज के सहयोग से जुटाए।
उनकी दिनचर्या बहुत ही अनुशासित रही। यात्रा के दौरान वे या तो खुद खाना पकाते या फिर गुरुद्वारों में मिलने वाले लंगर का भोजन करते। वे अक्सर खुले में या धार्मिक स्थलों पर रात बिताते।
बल्लारपूर से नांदेड और फिर घर वापसी
दिसंबर 2014 में, अमनदीप पहली बार बल्लारपुर आए थे और अब जब उन्होंने भारत का लगभग संपूर्ण दौरा कर लिया है, तो वे परती यात्रा पर हैं। 10 मार्च 2025 को वे दोबारा बल्लारपुर पहुँचे, जहाँ स्थानीय समाजसेवी राजेंद्रसिंह चीमा ने उन्हें अपने कार्यालय में रहने की जगह दी। 16 मार्च को वे नांदेड के लिए रवाना होंगे और फिर वहाँ से अपने मूल स्थान बेंगलुरु लौटेंगे।
व्यक्तिगत जीवन और समाज के प्रति योगदान
अमनदीप सिंह का जीवन त्याग और समर्पण का जीता-जागता उदाहरण है। उनके पास 60 एकड़ कृषि भूमि है, उनकी पत्नी शिक्षिका हैं और उनका बेटा अमेरिका में डॉक्टर है। खुद एक शिक्षक होने के बावजूद, उन्होंने नशामुक्त भारत के मिशन के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी।
उन्होंने अपनी पुरानी साइकिलें जरूरतमंदों को दान कर दीं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे केवल व्यसनमुक्ति का संदेश ही नहीं दे रहे, बल्कि हर स्तर पर समाजसेवा में योगदान कर रहे हैं।
सोशल मीडिया पर प्रभाव और गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड
सोशल मीडिया पर अमनदीप सिंह की लोकप्रियता भी उल्लेखनीय है। उनके 10 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं, जो उनकी प्रेरणादायक यात्रा को देख-समझकर जागरूक हो रहे हैं। उनकी इस अद्भुत यात्रा को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी स्थान मिला है।
गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड से उन्हें 1 लाख डॉलर (लगभग 83 लाख रुपये) की पुरस्कार राशि मिली, जिसे वे अपने क्षेत्र में स्कूल, कॉलेज और अस्पतालों के निर्माण में दान करेंगे। यह कदम समाज के प्रति उनके गहरे दायित्व को दर्शाता है।
नशामुक्ति आंदोलन की महत्ता और भविष्य की संभावनाएँ
अमनदीप सिंह का यह अभियान समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। नशे की लत केवल व्यक्ति को ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार और समाज को नुकसान पहुँचाती है। आज के युवा यदि समय रहते जागरूक नहीं हुए, तो इसका परिणाम भविष्य के लिए घातक हो सकता है।
उनकी इस यात्रा से प्रेरित होकर अगर हर राज्य में कुछ लोग इस मुहिम को आगे बढ़ाएँ, तो नशे की समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है। सरकार और समाज को भी ऐसे लोगों का समर्थन करना चाहिए ताकि वे अधिक से अधिक लोगों तक अपना संदेश पहुँचा सकें।
अमनदीप सिंह केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक आंदोलन बन चुके हैं। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि अगर एक व्यक्ति ठान ले, तो वह पूरे समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। उनकी 17 वर्षों की यात्रा इस बात का प्रमाण है कि सच्ची सेवा केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्म में होती है। उनके इस समर्पण से हम सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए और नशामुक्त भारत के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।