महाराष्ट्र की राजनीति में चंद्रपुर एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है। पूर्व वन, सांस्कृतिक और मत्स्यव्यवसाय मंत्री सुधीर मुनगंटीवार को मंत्री पद न मिलने से उनका असंतोष पहले ही राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ था, लेकिन हाल ही में उनकी एक 🔍सोशल मीडिया पोस्ट ने नई बहस को जन्म दे दिया है। यह विवाद सीधे 🔍चंद्रपुर के पालकमंत्री और आदिवासी विकास मंत्री डॉ. अशोक उईके से जुड़ा हुआ है।
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राजनीतिक उथल-पुथल की शुरुआत
राज्य के सूचना प्रौद्योगिकी और🔍 सांस्कृतिक मंत्री आशिष शेलार के चंद्रपुर दौरे के दौरान एक विशेष घटना घटी। वे कोरपना में आयोजित आदिवासी सांस्कृतिक महोत्सव में शामिल होने पहुंचे थे। इस मौके पर विश्रामगृह में सुधीर मुनगंटीवार ने उनका भव्य स्वागत किया। इस कार्यक्रम में🔍 डॉ. अशोक उईके भी उपस्थित थे। लेकिन, जब मुनगंटीवार ने इस मुलाकात की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कीं, तो उसमें आशिष शेलार के स्वागत का उल्लेख किया गया, लेकिन 🔍डॉ. उईके का नाम नदारद था। 🔍दो घंटे बाद, एक और पोस्ट की गई जिसमें उईके का नाम जोड़ा गया। इस घटना ने राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी।
क्या मुनगंटीवार और उईके के बीच नाराजगी है?
राजनीतिक संकेतों का महत्व होता है और एक अनुभवी नेता से यह मान लेना कि यह महज एक भूल थी, कठिन प्रतीत होता है। क्या यह🔍 चंद्रपुर की राजनीति में बदलते समीकरणों की ओर इशारा कर रहा है? या फिर यह नेतृत्व संघर्ष की एक झलक थी? चंद्रपुर मुनगंटीवार का गृह जिला है, लेकिन जिले की राजनीतिक कमान फिलहाल डॉ. उईके के हाथों में है। यह घटना इस बात का संकेत देती है कि पुराने और नए नेतृत्व के बीच खींचतान तेज हो रही है।
भाजपा में गुटबाजी की खुली तस्वीर
चंद्रपुर में🔍 भाजपा की अंदरूनी गुटबाजी सोमवार को विश्रामगृह में स्पष्ट रूप से देखी गई। जब मंत्री आशिष शेलार का आगमन हुआ, तो पार्टी कार्यकर्ता दो गुटों में बंट गए—एक तरफ 🔍सुधीर मुनगंटीवार के समर्थक थे, तो दूसरी ओर 🔍किशोर जोरगेवार के समर्थक। इस दौरान नारेबाजी शुरू हो गई। मुनगंटीवार समर्थकों ने ‘सुधीर भाऊ आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं’ के नारे लगाए, जबकि जोरगेवार समर्थकों ने ‘किशोर भाऊ जिंदाबाद’ के नारे बुलंद किए। इस नारेबाजी से खुद शेलार भी असमंजस में पड़ गए कि पहले किस गुट का स्वागत स्वीकार करें।
गुटबाजी के राजनीतिक मायने
भाजपा में यह स्पष्ट हो चुका है कि मुनगंटीवार और जोरगेवार दो अलग-अलग धड़े बना चुके हैं। वरिष्ठ नेता मुनगंटीवार का राजनीतिक प्रभाव चंद्रपुर में वर्षों से मजबूत रहा है, लेकिन जोरगेवार गुट अब उनकी चुनौती बनकर उभर रहा है।
चंद्रपुर भाजपा में मुनगंटीवार बनाम जोरगेवार गुट का टकराव पार्टी के लिए गंभीर चुनौती पेश कर सकता है। एक ओर मुनगंटीवार के समर्थक उन्हें चंद्रपुर की राजनीति में केंद्रीय भूमिका दिलाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं जोरगेवार गुट भी अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटा हुआ है। इस घटनाक्रम का असर आगामी चुनावों पर भी पड़ सकता है।
क्या भाजपा इस संकट से उबर पाएगी?
इस विवाद से स्पष्ट है कि चंद्रपुर भाजपा अंदरूनी खींचतान और गुटबाजी के दौर से गुजर रही है। अगर पार्टी इस संकट को नहीं सुलझाती, तो इसका असर जिले के आगामी राजनीतिक समीकरणों पर पड़ सकता है। भाजपा के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने नेताओं को एकजुट कर पार्टी में बढ़ते अंतर्विरोधों को कम करे, अन्यथा यह गुटबाजी पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है।
आने वाले दिनों में देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इस विवाद को किस तरह से संभालती है और क्या चंद्रपुर में पार्टी की एकजुटता बनी रह पाएगी या यह अंदरूनी संघर्ष और तेज हो जाएगा।