चंद्रपुर के ऐतिहासिक व प्रकृति से भरपूर रामबाग मैदान को बचाने के लिए अब जनआंदोलन का रूप ले चुका संघर्ष एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच रहा है। रविवार, 11 मई को सुबह 7 बजे इसी मैदान पर एक महापंचायत का आयोजन किया गया है, जिसमें स्थानीय नागरिकों, खिलाड़ियों, पुलिस व सेना भर्ती की तैयारी कर रहे युवाओं, योग समूहों और सामाजिक संगठनों से भारी संख्या में उपस्थित रहने का आह्वान किया गया है।
यह घोषणा रामबाग मैदान बचाव संघर्ष समिति ने शुक्रवार, 9 मई को आयोजित पत्रकार परिषद में की। इस मौके पर पप्पू देशमुख, राजेश अडूर, मंतोष देबनाथ, उमेश वासलवार, दीपक कामतवार, रवींद्र माडावर, गणेश झाडे, प्रशांत वाघमारे, अतुल बेजगमवार, प्रवीण वडलुरी, कोमिल मडावी, मनप्रीत सिंह, अमोल घोडमारे, सोहेल शेख, प्रफुल बैरम, अक्षय येरगुडे और रजनी पॉल समेत कई सदस्य उपस्थित रहे।
क्या है पूरा मामला?
जिला परिषद प्रशासन ने रामबाग मैदान पर 3399 वर्गमीटर (करीब 36,587 वर्गफुट) में चार मंजिला नई इमारत बनाने की योजना बनाई है। जबकि संघर्ष समिति का दावा है कि जटपुरा गट नं. 1 की शिट नं. 21 में ही 8430.90 वर्गमीटर (लगभग 90,750 वर्गफुट) — यानी 2 एकड़ से ज्यादा जमीन पहले से उपलब्ध है।
समिति ने आरोप लगाया कि जब इतनी बड़ी और बेहतर जमीन पहले से उपलब्ध है, तो फिर प्रदूषित शहर के बीचोंबीच स्थित एकमात्र हरित क्षेत्र — रामबाग मैदान को क्यों निशाना बनाया जा रहा है?
प्रतीकात्मक प्रदर्शन और जनप्रतिनिधियों को खुला आमंत्रण
महापंचायत की शुरुआत प्रतीकात्मक खेल प्रतियोगिताओं और योग प्रदर्शन से होगी, जिसमें खिलाड़ी, युवा और योग समूह भाग लेंगे। इसके बाद मैदान पर ही खुली चर्चा और प्रस्ताव पारित किए जाएंगे। समिति ने बताया कि सभी जनप्रतिनिधियों को व्यक्तिगत रूप से पत्र भेजकर महापंचायत में उपस्थित रहने की अपील की जाएगी।
संघर्ष समिति के सवालों की बौछार:
जब 90,000 वर्गफुट जमीन पहले से मौजूद है, तो रामबाग मैदान पर निर्माण की जिद क्यों?
क्या शहरवासियों को खुला प्राकृतिक मैदान नहीं चाहिए?
क्या प्रशासन हरियाली से ज्यादा ‘सीमेंट-कंक्रीट’ को प्राथमिकता दे रहा है?
आंदोलन को मिल रहा जनसमर्थन
रामबाग मैदान चंद्रपुर की पहचान रहा है — जहां सुबह-शाम सैकड़ों लोग योग, दौड़, कसरत, खेल और सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं। यह शहर के प्रदूषणग्रस्त वातावरण में एकमात्र ताजा हवा और हरियाली का स्रोत है। इसे बचाने की इस लड़ाई को अब आम जनता से लेकर अनेक सामाजिक संस्थाओं का समर्थन मिल रहा है।
विकास बनाम हरियाली की जंग
यह संघर्ष सिर्फ एक मैदान का नहीं, बल्कि हर शहरवासी के ‘स्वस्थ जीवन के अधिकार’ का सवाल बनता जा रहा है। विकास की आड़ में हरियाली और सामुदायिक स्थानों का बलिदान — क्या यही नया शहरीकरण है? रामबाग मैदान की लड़ाई हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या आने वाली पीढ़ियों के लिए खुला आसमान और हरित मैदान छोड़ने का कोई जिम्मा हमारी सरकारों और प्रशासनों का नहीं है?
अब यह देखना होगा कि 11 मई की महापंचायत सिर्फ एक सभा बनकर रह जाएगी या फिर यह आंदोलन चंद्रपुर के जनमन का प्रतीक बनकर शहर के भविष्य की दिशा तय करेगा।
