Chimur Assembly Elections गत 10 सालों से चिमूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र पर भाजपा अपना वर्चस्व रखने में कामयाब रही है। हालांकि यह 10 पूर्व तक कांग्रेस का ही गढ़ माना जाता रहा। परंतु भाजपा नेता बंटी उर्फ कीर्तिकुमार भांगडिया इस गढ़ को भेदने में सफल रहे। परंतु बीते विधानसभा चुनावों में उनकी जीत महज 9 हजार 752 वोटों से हुई। इससे यह स्पष्ट होता है कि उनका जनाधार घट रहा है। इस घटते जनाधार को वे इस बार कैसे बढ़त में तब्दील करेंगे, यह तो चुनाव परिणामों के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा। लेकिन भांगडिया के लिए यह मसला जरूर चिंता व चिंतन का विषय है। बागी और निर्दलीय उम्मीदवारों के चुनावी मैदान में डटे रहने के कारण कांग्रेस के वोटों को क्षति पहुंचेगी। कांग्रेस प्रत्याशी सतीश वारजुकर को यदि पिछली बार से अधिक वोट लेने हैं तो उन्हें बागियों की नाराजगी दूर कर अपने साथ लेना होगा। वरना कांग्रेस यहां कमबैक नहीं कर पाएगी।
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कांटे की टक्कर लेकिन मुंगले बिगाड़ सकते हैं गणित
चिमूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में काटे की टक्कर जैसी स्थित है। भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला नजर आता है। यहां भाजपा से बगावत करने वाले हालात नजर नहीं आये। किंतु महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी ओबीसी के प्रदेश संगठक धनराज मुंगले ने कांग्रेस से बगावत कर यहां नामांकन दर्ज कराया है। इसके चलते कांग्रेस के वोटों को भारी नुकसान भुगतना पड़ सकता है। वहीं वंचित बहुजन आघाडी के प्रत्याशी अरविंद सांदेकर भी सेक्यूलर वोटों को बटोर सकते हैं। ऐसे में भले ही विधायक भांगडिया को नुकसान न हो, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी सतीश वारजुकर को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
चौरंगी संघर्ष से गूंजेगा चिमूर
भाजपा नेता बंटी भांगडिया चिमूर के विधायक हैं। उनके खिलाफ कांग्रेस ने फिर एक बार चुनावी मैदान में सतिश वारजुकर को उतारा है। लेकिन इन सब के बीच धनंजय मुंगले और अरविंद सांदेकर के वोट बटोरने से वारजुकर को भारी नुकसान पहुंच सकता है। मुंगले और सांदेकर की दावेदारी के चलते यहां चौरंगी संघर्ष देखने को मिल रहा है। यदि वे चुनावी मैदान में डटे रहते हैं तो जनता के पास चार सशक्त पर्याय उपलब्ध हो जाएंगे। ऐसे में यहां किसके वोट कटेंगे और कौन जीत पाएगा, यह कहना मुश्किल नजर आता है। पिछली बार के चुनाव में भाजपा नेता बंटी भांगडिया को 41.94 प्रतिशत अर्थात 87146 वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी सतीश वारजुकर को 37.25 प्रतिशत अर्थात 77394 वोट हासिल हुए थे। जबकि वंचित बहुजन आघाडी से प्रत्याशी रहे अरविंद सांदेकर को 11.78 अर्थात 24474 वोट प्राप्त हुए थे। जबकि निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ चुके धनराज मुंगले को 5.46 अर्थात 11339 वोट हासिल हुए थे। इस बार चिमूर में राजनीतिक घमासान होने के प्रबल आसार है।
47 वर्ष बाद कांग्रेस क्या पुन: लौटेगी?
वर्ष 1962 से 20014 तक चिमूर में कांग्रेस सत्ता पर बैठी रही। बीते 10 साल से यहां भाजपा का राज है। कांग्रेस की 47 वर्षों की सत्ता के गढ़ को तोड़ने में भाजपा नेता भांगडिया कामयाब तो रहे, लेकिन अब हालात बदले-बदले से नजर आ रहे है। 1962 से यहां 13 बार चुनाव हो चुके हैं। 9 बार कांग्रेस, दो बार बीजेपी, एक बार निर्दलीय और एक बार शिवसेना ने यहां बाजी मारी है। चुनाव जीतने वालों में मारोतिराव डी. तुमपल्लीवार, मोतीराम बिरजे, अडाकुजी सोनवणे, यशोधरा बजाज, भुजंगराव बागड़े, बाबूराव वाघमारे, रमेश गजबे, अविनाश वारजुकर, विजय वडेट्टीवार, बंटी भंगड़िया का समावेश है।
कौन-कौन हैं चुनावी मैदान में ?
कीर्तिकुमार उर्फ बंटी भांगडिया (भारतीय जनता पक्ष), सतीश वारजुकर (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस), धनंजय मुंगले (निर्दलीय), अरविंद आत्माराम सांदेकर (वंचित बहुजन आघाडी), अनिल अंबादास घोंगले (निर्दलीय), हेमंत गजानन दांडेकर (निर्दलीय), कैलास श्रीहरी बोरकर (निर्दलीय), प्रकाश नान्हे (निर्दलीय), डॉ. हेमंत सुखदेव उरकुडे (निर्दलीय), योगेश नामदेवराव गोनाडे (निर्दलीय), निकेश प्रल्हाद रामटेके (निर्दलीय), अमित हरिदास भीमटे (निर्दलीय), नारायणराव दिनबाजी जांभुले (निर्दलीय), राजेंद्र हरिचंद रामटेके (बहुजन समाज पार्टी), दांडेकर भाऊराव लक्ष्मण (निर्दलीय), मडावी मनोज उद्धवराव, रमेश बाबुराव पचारे (निर्दलीय), जितेंद्र मुरलीधर ठोंबरे (निर्दलीय), केशव सीताराम रामटेके (निर्दलीय).