किसी पार्टी के आम कार्यकर्ता की ओर से उसी पार्टी के सबसे बड़े नेता की आलोचना करने पर उसके विरोधी दल की ओर से शानदार स्वागत करने की परंपरा अब समाज के हर स्तर पर दिखाई पड़ रही है। ऐसा ही कुछ मामला घुग्घुस में भी देखने को मिला। एक मामूली कार्यकर्ता के रूप में अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने के चक्कर में अनूप भंडारी नामक युवक ने सबसे पहले विधायक किशोर जोरगेवार के यंग चांदा ब्रिगेड का दामन थामा। परंतु वहां उपयुक्त मौका नहीं मिलने से वे गत वर्षों में कांग्रेस में प्रवेश कर गये। यहां उन्होंने घुग्घुस शहर अध्यक्ष राजुरेड्डी के मार्गदर्शन में विजय वडेट्टीवार के सानिध्य में काम तो किया। परंतु उनका कांग्रेस में मन नहीं लग पाया। आये दिन शिर्ष नेताओं पर आपत्तिजनक टिपणी करना और कांग्रेस के आलाकमान, राहुल गांधी की सतत आलोचना करना शुरू में किसी कांग्रेसी को समझ नहीं आया। लेकिन भाजपा में अपना मुकाम तलाशने के लिए अपने ही कांग्रेस नेता को टारगेट करने का इनाम अब जाकर अनूप भंडारी को मिला है। उनके भाजपा प्रवेश से यह स्पष्ट हो गया है कि वे बीते अनेक दिनों से राहुल गांधी की आलोचना कर खुद का कद बढ़वाने की नीति के तहत स्वयं को भाजपा के करीब ले जाना चाहते थे। इस प्रयास में वे सफल भी हो गये। लेकिन सबसे अहम मुद्दा यह है कि बार-बार पार्टी बदलने वाले भंडारी अब भाजपा में कितने दिन टिक पायेंगे, यह सवाल आम नागरिक चुटकियां लेते हुए पूछने लगे हैं।
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मौत के मातम में पक्ष प्रवेश का जल्लोश
देश में इस समय चलन है कि जो कार्यकर्ता किसी बड़े नेता की आलोचना करेगा, उसे दूसरी पार्टी में प्रवेश मिलते ही बड़ा सम्मान होने लगता है। यही चलन अब घुग्घुस तक भी पहुंच चुका है। कहते हैं कि राजनीति में भावनाओं की कोई कद्र नहीं होती। शायद यह सच ही है। घुग्घुस भाजपा में यह दृश्य दिखाई पड़ा। भाजपा के वरिष्ठ नेता व मॉर्निंग वॉक ग्रुप के सदस्य प्रवीण सोदारी की हार्टअटैक के चलते उनकी मौत हो गई। वे भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष व राजुरा विधानसभा अध्यक्ष देवराव भोंगले के कट्टर समर्थक तथा निष्ठावंत कार्यकर्ता थे। 15 सितंबर को उनके निधन से शहर शोक में डूबा रहा। किंतु घुग्घुस भाजपा की ओर से देवराव भोंगले के नेतृत्व में कांग्रेस के अलोचक अनुप भंडारी व उनके समर्थकों का पक्ष प्रवेश सम्मेलन शानदार जल्लोष में चलता रहा। किसी कर्मठ व कट्टर कार्यकर्ता की मौत पर यह कार्यक्रम स्थगित किये जाने की संवेदना भी भाजपा नहीं दिखा पायी।
जोरगेवार, वडेट्टीवार के बाद अब कौन होगा रहनुमा ?
अनूप भंडारी वैसे तो केवल एक आम कार्यकर्ता है। परंतु उनके दल बदलने की नीति अब वर्तमान समाज का आईना है। यहां कौन कब कौनसे दल में प्रवेश कर जाएगा, यह कुछ कहा नहीं जा सकता। दूसरे दल में प्रवेश करने के पूर्व अपने स्वयं के दल में रहते हुए शिर्ष नेताओं की आलोचना करते ही दूसरे दलों के नेताओं का ध्यान खिंचने का यह सबसे सस्ता और आसान तरीका बन गया है। देश स्तर से लेकर स्थानीय स्तर पर भी इस तरह की रणनीति आम कार्यकर्ता अपना रहे हैं। ताकि कम समय में राजनीति में ऊंचे मकाम को हासिल किया जा सकें।
बहरहाल अनूप भंडारी को भाजपा में भले ही कोई बड़ा पद नहीं दिया गया हो, लेकिन एक कार्यकर्ता के निधन के वक्त जिस तरह से हर्षोल्लास के साथ भाजपा ने भंडारी का स्वागत किया है, उससे यह साफ झलकता है कि यह चुनावी रणनीतियों का ही एक भाग है।
यंग चांदा ब्रिगेड में रहते हुए अनूप ने विधायक किशोर जोरगेवार का दामन छोड़ दिया। विजय वडेट्टीवार की मौजूदगी में कांग्रेस का दुपट्टाओढ़ लिया, परंतु कांग्रेस की विचारधारा से वे तालमेल नहीं बिठा पाएं। ऐसे में दल बदलने वाले कार्यकर्ताओं पर कोई भरोसा नहीं करता। भाजपा में आगंतुकों का स्वागत तो हो रहा है, परंतु अनूप भंडारी कब तक भाजपावासी बनकर शांत बैठेंगे, यह कोई नहीं बता सकता। आगे चलकर अनूप का रहनुमा कौन बनेगा, यह कहना काफी मुश्किल है।
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