चंद्रपुर जैसे वनक्षेत्रीय जिलों में पिछले कुछ वर्षों से भालू, तेंदुए और बाघ के हमलों की घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं।
जंगलों के सिकुड़ते दायरे, खनन, सड़क निर्माण और बस्तियों के विस्तार ने वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक आवास से विस्थापित कर दिया है।
भोजन और पानी की तलाश में जंगली जानवर अब गाँवों और बस्तियों की ओर रुख कर रहे हैं।
जुनोना की घटना भी इसी व्यापक समस्या की भयावह कड़ी है।
शनिवार को चंद्रपुर शहर समीपस्त जुनोना के बेघर इलाके में भालू के हमले से हड़कंप मच गया। इस हमले में 65 वर्षीय अरुण कुकसे और उनके पुत्र विजय कुकसे गंभीर रूप से घायल हो गए। घटना के बाद ग्रामीणों ने साहस दिखाते हुए भालू को पथराव और लाठियों से खदेड़ दिया। अरुण कुकसे की गंभीर स्थिति को देखते हुए उन्हें नागपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया है, वहीं विजय का भी इलाज जारी है।
ग्रामीणों का साहसिक संघर्ष
गांव में अचानक चीख-पुकार मच गई। ग्रामीणों ने हिम्मत दिखाते हुए दूर से पत्थर बरसाने शुरू किए। कई लोग लाठियों के साथ भालू की ओर दौड़े और उसे खदेड़ने का प्रयास किया। इस दौरान भालू भी पथराव से गंभीर रूप से घायल हो गया। वनविभाग की टीम तत्काल मौके पर पहुँची और हालात पर काबू पाया।
प्रशासन और वन विभाग की भूमिका
इस बचाव अभियान में हैबिटेट कंजर्वेशन सोसाइटी के दिनेश खाटे, वनविकास महामंडल के कदम, जुनोना वनपरिक्षेत्र अधिकारी मेश्राम, पशुवैद्यकीय अधिकारी डॉ. कुंदन पोडसेलवार और वनपरिक्षेत्र अधिकारी घोरपडे ने अहम भूमिका निभाई।
गंभीर रूप से घायल भालू को ट्रांजिट ट्रीटमेंट सेंटर ले जाया गया है। वन अधिकारियों ने बताया कि एक मेडिकल टीम लगातार उसकी स्थिति और गतिविधियों पर नज़र रख रही है।
ग्रामीणों की माँग
गांव के लोगों ने भालुओं की लगातार बढ़ती आक्रामक घटनाओं पर गहरी चिंता जताई है। उनका कहना है कि ऐसे हमलों पर तुरंत नियंत्रण किया जाए और ग्रामीणों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
वन्यजीव संरक्षण बनाम मानवीय सुरक्षा
वन्यजीवों का भी अस्तित्व खतरे में है। भालू की चोटें और ग्रामीणों का गुस्सा यह दिखाता है कि स्थिति दोनों पक्षों के लिए असुरक्षित है। वन विभाग और प्रशासन पर दोहरी जिम्मेदारी है— एक ओर वन्यजीवों को बचाना और दूसरी ओर ग्रामीणों की सुरक्षा सुनिश्चित करना। इन दोनों के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण है।
जुनोना की यह घटना केवल एक हादसा नहीं, बल्कि एक चेतावनी है।
यदि समय रहते ठोस और टिकाऊ कदम नहीं उठाए गए तो मानव और वन्यजीव दोनों ही निरंतर संघर्ष में पिसते रहेंगे।
प्रशासन, वन विभाग और स्थानीय समुदाय के बीच समन्वय ही इस समस्या का दीर्घकालिक समाधान बन सकता है।
