पहले राजेंद्र अडपेवार, अब राजीव गोलीवार – 35 साल पुराने कार्यकर्ता का इस्तीफा, “कार्यकर्ताओं को वेठबिगार समझना बंद करो” – संगठन में मतभेद और असंतोष चरम पर
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के चंद्रपुर महानगर में एक के बाद एक इस्तीफों से राजनीतिक हलचल मच गई है। कार्यकारिणी के उपाध्यक्ष राजेंद्र अडपेवार के इस्तीफे के बाद, अब संगठन के दूसरे उपाध्यक्ष राजीव गोलीवार ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।
गोलीवार का इस्तीफा न केवल स्थानीय संगठन में असंतोष का संकेत देता है, बल्कि यह बताता है कि पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेतृत्व के बीच खाई गहरी होती जा रही है।
राजीव गोलीवार ने महानगर अध्यक्ष सुभाष कासनगोटूवार को भेजे अपने इस्तीफा पत्र में लिखा – > “अत्यंत व्यथित मन से मैं यह पद छोड़ रहा हूं। पिछले 35 वर्षों से भाजपा संगठन में सक्रिय रहा हूं, सत्ता हो या विपक्ष, हमने पार्टी की विचारधारा जन-जन तक पहुंचाने का काम निष्ठा से किया। पहले संगठन में आपसी प्रेम और सम्मान था, पर अब यह माहौल ईर्ष्या, द्वेष और अहंकार में बदल गया है।”
उन्होंने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि –
- नेताओं के जन्मदिन कार्यक्रम में न पहुंचने पर कार्यकर्ताओं को नोटिस भेजी जाती है।
- कार्यकर्ताओं को ‘वेठबिगार’ (बंधुआ मजदूर) जैसा व्यवहार सहना पड़ रहा है।
- दूसरे दलों से आए लोगों को सम्मान और अपने वर्षों पुराने कार्यकर्ताओं को अपमानित किया जाता है।
गोलीवार ने कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों में आस्था रखते हुए जीवन के अंतिम क्षण तक भाजपा की विचारधारा के लिए काम करेंगे, लेकिन चंद्रपुर महानगर के इस “कलुषित वातावरण” में काम करना अब संभव नहीं है। उन्होंने अपने इस्तीफे की प्रति वरिष्ठ नेता सुधीर मुनगंटीवार, हंसराज अहिर और किशोर जोरगेवार को भी भेजी है।
- चंद्रपुर महानगर भाजपा में लगातार हो रहे इस्तीफे इस बात का संकेत हैं कि संगठन के भीतर आंतरिक कलह और गुटबाजी गहराती जा रही है।
- दो उपाध्यक्षों का एक सप्तहा के बितर पद छोड़ना यह दर्शाता है कि असंतोष केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं, बल्कि व्यापक है।
- कार्यकर्ताओं के प्रति “असम्मान” और “बाहरी नेताओं को प्राथमिकता” का आरोप, संगठन की जमीनी पकड़ कमजोर कर सकता है।
- विपक्षी दल इस बगावत को चुनावी मुद्दा बनाकर भाजपा पर निशाना साध सकते हैं।
चंद्रपुर भाजपा की यह अंदरूनी लड़ाई आने वाले महीनों में बड़ा राजनीतिक मोड़ ले सकती है। अगर केंद्रीय और राज्य नेतृत्व ने समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया, तो स्थानीय संगठन में टूट-फूट और गहरी हो सकती है।
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