358 भर्ती घोटाले से शुरू हुई सियासी जंग, भाजपा-कांग्रेस नेताओं की अजीब दोस्ती
आगामी चुनावों पर असर: कार्यकर्ता असमंजस में – ‘लड़ें किससे?’
चंद्रपुर जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक चुनाव में कांग्रेस की करारी हार ने संगठन की रणनीति और नेतृत्व पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस ने जिन भाजपा नेताओं के खिलाफ हमेशा मोर्चा खोला, उन्हीं के साथ चुनावी गठबंधन कर पार्टी ने न केवल कार्यकर्ताओं को असमंजस में डाला बल्कि खुद का जनाधार भी खतरे में डाल दिया।
गठबंधन की पृष्ठभूमि और भर्ती विवाद
यह पूरा राजनीतिक नाटक बैंक की 358 पदों की भर्ती प्रक्रिया से शुरू हुआ। इस भर्ती का भाजपा नेता और पूर्व मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने कड़ा विरोध किया और SIT जांच भी बैठी, लेकिन तब तक नियुक्तियां पूरी हो चुकी थीं। इसी बीच, स्थानीय स्तर पर कांग्रेस और भाजपा नेताओं का गुप्त गठबंधन बना, जो आगे चलकर खुलकर सामने आया।
नेताओं की उलझी चालें
भाजपा विधायक कीर्तीकुमार भांगडिया, कांग्रेस सांसद प्रतिभा धानोरकर, कांग्रेस विधायक सुधाकर अडबाले और कांग्रेस जिलाध्यक्ष सुभाष धोटे ने भाजपा में आए ठाकरे गुट के नेता रवींद्र शिंदे के साथ हाथ मिला लिया। महिला श्रेणी से प्रतिभा धानोरकर निर्विरोध विजयी रहीं, लेकिन जिलाध्यक्ष धोटे के भाई शेखर धोटे को चुनाव से पीछे हटना पड़ा। यहीं से इस अजीब गठबंधन में दरारें पड़नी शुरू हो गईं।
भाजपा की ‘करेक्ट’ चाल और कांग्रेस की फजीहत
भाजपा विधायकों भांगडिया और किशोर जोरगेवार ने अंतिम समय पर रवींद्र शिंदे को सीधे भाजपा में शामिल कर अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बना दिया। कांग्रेस नेताओं को तब समझ आया कि वे भाजपा की रणनीति का हिस्सा बन गए हैं। चार कांग्रेस निदेशकों ने भी गुप्त रूप से भाजपा को समर्थन दिया और पार्टी के भीतर ही भ्रम पैदा कर दिया।
कार्यकर्ताओं में आक्रोश और असमंजस
यह कोई पहली बार नहीं है जब कांग्रेस को भाजपा संग गठबंधन का खामियाजा भुगतना पड़ा। इससे पहले महापौर और जिला परिषद चुनाव में भी इसी तरह का गठबंधन कांग्रेस के लिए नुकसानदेह रहा था। अब आगामी नगर पालिका और जिला परिषद चुनाव में कार्यकर्ताओं के मन में बड़ा सवाल है – “जब लड़ना उन्हीं से है, तो कांग्रेस के नेता उन्हीं से गठबंधन क्यों कर रहे हैं?”
यह हार कांग्रेस के अंदर गहरे पैठे गुटबाजी और स्वार्थी राजनीति को उजागर करती है। भाजपा ने रणनीतिक तरीके से कांग्रेस के नेताओं को अपने पाले में खींचकर न केवल जीत सुनिश्चित की, बल्कि कांग्रेस की छवि को भी धूमिल किया। आगामी स्थानीय चुनावों में यह कांग्रेस के लिए और भी बड़ी चुनौती बन सकता है, क्योंकि कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है और नेतृत्व पर भरोसा डगमगा रहा है।
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