Chandrapur District Central Co-op Bank (CDCC) faces a reservation controversy : चंद्रपुर जिले में बहुचर्चित चंद्रपुर जिला मध्यवर्ती बैंक की भर्ती प्रक्रिया आखिरकार पूरी हो गई। इस भर्ती प्रक्रिया के दौरान जिले के सभी दलों के जनप्रतिनिधियों की अभूतपूर्व एकता देखने को मिली। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सभी एकमत होकर इस भर्ती को सफल बनाना चाहते थे। बेरोजगार युवाओं के सामने नेताओं ने एक तरह से यह संदेश दिया कि “एक हैं तो सेफ हैं”।
हालांकि, इस राजनीतिक एकजुटता से अलग भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता सुधीर मुनगंटीवार नजर आए। उन्होंने इस भर्ती प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं और आरक्षण की अनदेखी के खिलाफ अंत तक आवाज उठाई। वहीं, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हंसराज अहीर, ओबीसी नेता और विधायक विजय वडेट्टीवार, सांसद प्रतिभा धानोरकर, विधायक बंटी भांगडिया, विधायक करण देवतले सहित अन्य सभी नेताओं ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रखी।
विधानसभा में विधायक देवराव भोंगले और किशोर जोरगेवार ने इस मुद्दे को उठाया जरूर, लेकिन जैसे ही भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई, उनकी आवाज भी धीमी पड़ गई। यह स्थिति अब मतदाताओं के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है।
आरक्षण हटाने का कारण और न्यायालय का हवाला
चंद्रपुर जिला मध्यवर्ती बैंक में राज्य सरकार की कोई वित्तीय हिस्सेदारी नहीं है। इसी आधार पर बैंक के संचालक मंडल ने भर्ती प्रक्रिया में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण समाप्त कर दिया। इसके लिए एक न्यायालयीन निर्णय का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया कि यदि बैंक में सरकार की कोई भागीदारी नहीं है तो वहां आरक्षण लागू करना अनिवार्य नहीं है।
लेकिन इस फैसले की खास बात यह थी कि बैंक के 22 में से 21 संचालक स्वयं पिछड़ा वर्ग से आते हैं। यदि वे चाहते तो बैंक के उपविधानों के तहत संचालक मंडल के निर्णय से पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दे सकते थे। लेकिन आरक्षण लागू करने से ‘भाव’ (नियुक्तियों की कीमत) कम होने की आशंका जताई गई।
इस कारण आरक्षण रहित भर्ती प्रक्रिया अपनाई गई, जिसका सीधा नुकसान पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को हुआ। यह स्थिति तब और अधिक विरोधाभासी हो गई जब जिले के सभी प्रमुख पिछड़ा वर्ग नेता, जो खुद सत्ता में हैं, इस मुद्दे पर चुप्पी साधे बैठे रहे।
मुनगंटीवार अलग-थलग, बाकी नेता क्यों चुप?
संपूर्ण भर्ती प्रक्रिया के दौरान खुली श्रेणी के नेता सुधीर मुनगंटीवार को छोड़कर सभी पिछड़ा वर्ग के नेता चुप्पी साधे रहे। उनके इस मौन का “राजनीतिक अर्थ” अब मतदाताओं के बीच चर्चाओं का विषय बन गया है।
जहां एक ओर जिले के पिछड़ा वर्ग के नेता इस भर्ती प्रक्रिया का समर्थन कर रहे थे, वहीं सुधीर मुनगंटीवार अकेले इस मुद्दे पर आरक्षण की मांग कर रहे थे। ऐसे में क्या जिले के जनप्रतिनिधियों ने अपने ही समाज के युवाओं के आरक्षण अधिकार को दरकिनार कर दिया? इस सवाल ने जिले की राजनीति में हलचल मचा दी है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि आने वाले चुनावों में यह मुद्दा कितनी अहम भूमिका निभाता है और क्या मतदाता अपने नेताओं की चुप्पी को माफ करेंगे या नहीं।
