चंद्रपुर जिला बैंक चुनाव: न्यायालय के आदेश से फिर टली प्रक्रिया, 13 वर्षों से जमे संचालकों को राहत या झटका?
चंद्रपुर जिला मध्यवर्ती बैंक के बहुचर्चित और लंबे समय से प्रतीक्षित चुनाव में एक बार फिर अड़चन आ गई है। 16 मई को अंतिम मतदाता सूची घोषित होने वाली थी, जिससे चुनाव प्रक्रिया को औपचारिक रूप से गति मिलती। लेकिन इससे पहले ही नागपुर खंडपीठ ने प्रारूप मतदाता सूची पर स्थगनादेश (Stay Order) जारी कर दिया है, जिससे यह चुनाव फिर से अधर में लटक गया है।
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क्या है पूरा मामला?
चंद्रपुर जिला सहकारी बैंक पर वर्तमान में 2012 से ही वही संचालक मंडल कार्यरत है। बीते 13 वर्षों में इस संचालक मंडल पर कई तरह के गंभीर आरोप लगे हैं — एक अध्यक्ष के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हुआ, एक को जेल की हवा खानी पड़ी, और वर्तमान अध्यक्ष संतोष रावत के कार्यकाल में 358 पदों की भर्ती विवादों में रही। इस भर्ती प्रक्रिया में कथित गड़बड़ियों की जांच फिलहाल जारी है।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने हाल ही में आदेश जारी करते हुए पुराने संचालक मंडल के अधिकार रद्द कर दिए और तय समय-सीमा में चुनाव कराने का निर्देश दिया। इस निर्देश के तहत जिला प्रशासन हरकत में आया और चुनावी प्रक्रिया शुरू की गई। 21 अप्रैल को प्रारूप मतदाता सूची जारी की गई और 30 अप्रैल तक आपत्तियाँ मांगी गईं।
न्यायालय का हस्तक्षेप और तात्या चौधरी की याचिका
वांढली सेवा सहकारी संस्था के तात्या चौधरी ने प्रारूप सूची में शामिल एक नाम पर आपत्ति जताई थी। उनका दावा था कि संबंधित नाम नियमों को ताक पर रखकर जोड़ा गया है। हालांकि विभागीय सहनिबंधक ने 13 मई को यह आपत्ति खारिज कर दी। इसके तुरंत बाद चौधरी नागपुर उच्च न्यायालय पहुंचे और त्वरित सुनवाई में न्यायालय ने पूरी प्रारूप मतदाता सूची पर ही स्थगनादेश दे दिया।
इस स्थगनादेश ने 16 मई को प्रस्तावित अंतिम मतदाता सूची को रोक दिया है, जिससे चुनावी कार्यक्रम ठप्प हो गया है। अब अगली सुनवाई की तिथि 9 जून 2025 तय की गई है। तब तक किसी भी प्रकार की चुनावी कार्रवाई संभव नहीं होगी।
क्या चुनाव टल जाएगा फिर से?
अब यह स्पष्ट हो गया है कि जब तक न्यायालय से कोई अंतिम निर्णय नहीं आता, चंद्रपुर जिला बैंक के चुनावों की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती। इससे 13 वर्षों से कुर्सी पर जमे संचालक मंडल को एक बार फिर राहत मिलती नजर आ रही है, वहीं चुनाव की आस लगाए उम्मीदवारों और मतदाताओं में निराशा फैल गई है।
कहीं खुशी, कहीं ग़म
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर सहकारी संस्थाओं में पारदर्शिता और समयबद्ध चुनाव कब सुनिश्चित होंगे? जहाँ एक ओर न्यायालय का आदेश न्यायिक प्रक्रिया की महत्ता को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह चुनाव प्रक्रिया में अड़चन भी बन रहा है।
कुल मिलाकर, चंद्रपुर जिला बैंक की सत्ता को लेकर “अदालती रणभूमि” बन चुकी है। फिलहाल यह देखना अहम होगा कि 9 जून की सुनवाई में न्यायालय क्या निर्णय देता है और क्या यह बहुप्रतीक्षित चुनाव प्रक्रिया उस दिन के बाद फिर से पटरी पर लौट पाएगी।