बिना किसी अनुमति के कृषि योग्य जमीन पर लोहे के पत्थरों को कुचलने वाली इकाई लगाकर धनाढ्य व्यापारियों ने पूरे क्षेत्र को प्रदूषण की भेंट चढ़ा दिया है। आसपास की कृषि भूमि, आम के बाग और इरई नदी का पानी जहरीला हो गया है, लेकिन प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है।
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अनुमति के बिना चल रहा अवैध कारोबार
चंद्रपुर-नागपुर मार्ग पर स्थित जुनी पडोली और मौजा विचोडा बुजरूक गांव में राधास्वामी मठ के पास कृषि भूमि पर श्रीकांत कावले, पप्पू सिंह समेत तीन धनाढ्य व्यवसायियों ने लोहे के पत्थर कुचलने (क्रशर) का अवैध उद्योग शुरू कर दिया है। इसके लिए उन्होंने न तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, न ही जिला प्रशासन और न ही ग्राम पंचायत से कोई अनुमति ली है।
सेल प्लांट से लाकर कुचले जा रहे लोहे के पत्थर
यहाँ चंद्रपुर फेरोअलॉय प्लांट (सेल) से लाए गए कच्चे लोहे के पत्थरों को कुचलकर उन्हें बारीक पाउडर बनाया जाता है, जिसे असम और अन्य राज्यों में बेचा जाता है। कानूनन कृषि भूमि पर ऐसा उद्योग चलाना मना है, लेकिन मुनाफे के लालच में इन धनाढ्यों ने नियमों की धज्जियाँ उड़ा दी हैं।
पूरा इलाका प्रदूषण की चपेट में
-» धूल और जहरीले कणों से आसपास की आम की बागें, कपास, सोयाबीन और धान की फसलें बर्बाद हो रही हैं।
-» इरई नदी का पानी काला पड़ गया है, जिससे स्थानीय कुएँ और हैण्डपम्प भी दूषित हो गए हैं।
-» पानी बरसने पर क्रशर की काली मिट्टी नदी में बहकर पूरे जलस्रोत को जहरीला बना रही है।
-» रात-दिन ट्रकों की आवाजाही से गाँव वालों की जिंदगी दूभर हो गई है।
प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नाकाम
स्थानीय लोगों ने जिलाधिकारी विनय गौड़ा, पालकमंत्री अशोक उईके और पर्यावरण मंत्री पंकजा मुंडे को शिकायत की है, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। क्रशर के मालिक श्रीकांत कावले ने खुद माना कि उनके पास प्रदूषण बोर्ड की अनुमति नहीं है, लेकिन वे “अर्ज दे दिया है” के बहाने बचने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रदूषण की चपेट में आई फसलें, बाग-बगिचे और जलस्रोत
इस अवैध क्रशर से निकलने वाली धूल और प्रदूषण से पूरे इलाके की खेती पूरी तरह से तबाह हो चुकी है। आम के बाग, धान, सोयाबीन और कपास की फसलें बर्बाद हो रही हैं। यहां तक कि इलाके के कुएं, हैंडपंप और नदी का पानी भी काला पड़ चुका है। बरसात के दिनों में क्रशर से निकलने वाली काली मिट्टी सीधे इरई नदी में बह जाती है, जिससे नदी का पूरा जलप्रवाह दूषित हो चुका है।
ट्रकों की आवाजाही और रात्रिकालीन ध्वनि प्रदूषण से ग्रामीण त्रस्त
रात-दिन ट्रकों की आवाजाही और लगातार चल रहे क्रशर के शोर से स्थानीय लोग बेहद परेशान हैं। खास बात यह है कि इस क्रशर उद्योग के बिल्कुल पास राधास्वामी सत्संग भवन और अर्बन ऑर्गेनिक व अर्बन प्रोटीन नामक खाद्य प्रकल्प भी स्थित हैं, जिससे धार्मिक और जैविक परियोजनाएं भी प्रभावित हो रही हैं।
प्रशासन मौन, व्यवसायी बेखौफ
खबरों के मुताबिक जब क्रशर के मुख्य साझेदार श्रीकांत कावले से संपर्क किया गया तो उन्होंने स्वीकार किया कि प्रदूषण नियंत्रण मंडल से अभी तक अनुमति नहीं मिली है, लेकिन उन्होंने अनुमति के लिए आवेदन देने की बात कही। वहीं जब मंडल से संपर्क किया गया तो कोई उत्तर नहीं मिला।
नागरिकों की मांग:
ग्रामीणों का कहना है कि अगर जल्द ही इस क्रशर को नहीं हटाया गया, तो पूरा इलाका बंजर भूमि में तब्दील हो जाएगा। उनकी मांग है कि सरकार तुरंत कड़ी कार्रवाई करे और किसानों की जमीन व पर्यावरण को बचाया जाए।
यह मामला सिर्फ प्रदूषण या कानून के उल्लंघन का नहीं, बल्कि एक पूरे कृषि आधारित समुदाय की आजीविका पर हमला है। अगर समय रहते इस पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो चंद्रपुर के हरे-भरे खेत केवल यादों में रह जाएंगे।
सवाल यह है: क्या अमीरों के काले धंधे के आगे सरकार और प्रशासन बेबस है? या फिर जनता के आक्रोश के बाद कोई कार्रवाई होगी?