चंद्रपुर में इन दिनों एक नए विवाद ने तूल पकड़ा है। यह विवाद किसी राजनीतिक दल के बीच नहीं, बल्कि शहीदों के सम्मान और नेताओं के परिजनों के स्मरण को लेकर है। हाल ही में चंद्रपुर के विधायक किशोर जोरगेवार की दिवंगत माता गंगुबाई जोरगेवार के पुतले के निर्माण और चौक का नाम उनके नाम पर रखे जाने की घोषणा हुई। इस पर गोवा मुक्ति आंदोलन के शहीद बाबुराव थोरात के पुत्र विजय थोरात ने राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को एक खुला पत्र लिखकर तीखे सवाल खड़े किए हैं। उनका सवाल साफ है—”शहर में शहीदों का नाम कहीं नहीं, लेकिन नेताओं के परिवारों को सम्मान क्यों?”
गोवा मुक्ति आंदोलन का शहीद – बाबुराव थोरात
गोवा मुक्ति आंदोलन (1946-1961) के दौरान चंद्रपुर के बाबुराव थोरात ने बलिदान दिया था। उनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है, परंतु शहर के किसी भी सार्वजनिक स्थल पर उनकी स्मृति को स्थान नहीं मिला। यह विडंबना बार-बार उठाई जाती रही है, लेकिन प्रशासन की उदासीनता बनी हुई है।
शहीद पुत्र की पीड़ा: “क्या बलिदान व्यर्थ गया?”
विजय थोरात ने अपने पत्र में लिखा है कि चंद्रपुर का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम और गोवा मुक्ति आंदोलन की वीर गाथाओं से भरा पड़ा है। बाबुराव थोरात समेत अनेक शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों ने आज़ादी के लिए प्राण न्यौछावर किए, मगर आज शहर में कहीं भी उनका नाम न तो चौक पर दिखता है, न बगीचों, सड़कों या शैक्षणिक संस्थानों पर।
इसके उलट, वर्तमान नेताओं के माता-पिता के नाम पर चौक और पुतले स्थापित किए जा रहे हैं। थोरात ने सवाल किया –
“क्या यह शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान नहीं है?”
शहीदों और सेनानियों की लंबी फेहरिस्त, पर नामो-निशान नहीं
विजय थोरात ने पत्र में चंद्रपुर के उन स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों का उल्लेख किया जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया था। इनमें शामिल हैं:
मारोतराव सांबशीव कन्नमवार, विश्वनाथ बाबा पाटील दिक्षीत, रामचंद्र वासुदेव कथडे, जगदीशराव बालाजी साळवे, लक्ष्मण कृष्णाजी वासेकर, गजानन रामाजी आक्केवार, गोपिकाबाई मारोतराव कन्नमवार, राजेश्वर सोमाजी देशमुख, निळकंठ लक्ष्मण दिवांजी, सांबाजी नागोराव पडगेलवार, माधव बापुजी कडूकर, सखाराम गोविंदा कुचिनकर, मनोहर कृष्णाजी कोतपल्लीवार, खुशालचंद घाशीराम खंजाची, उत्तमचंद्र राजमल पुगलिया, गोविंदराव याज्ञिक, गोपिकाताई गोविंदराव याज्ञिक, राजेश्वर गजानन उपगन्लावार, आडकू पुंडलिक श्रीगिरीवार, काशीनाथ लक्ष्मण घटे, डोनप्पा नानाजी नामपल्लीवार, लक्ष्मीबाई राजेश्वर देशमुख, कृष्णराव लक्ष्मणराव जोगी आदि।
इन सभी के योगदान के बावजूद आज तक चंद्रपुर के चौकों, सड़कों या बगीचों को उनके नाम पर नहीं किया गया।
राजनीतिक समीकरण और जनता की नाराजगी
यह विवाद चंद्रपुर की सियासत में बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा है। स्थानीय जनता भी अब सवाल कर रही है कि शहीदों को दरकिनार कर राजनीतिक परिवारों को सम्मान देना क्या लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ नहीं है? आने वाले समय में यह मुद्दा चुनावी राजनीति में भी गर्मा सकता है।
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