महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठा समाज को कुणबी प्रमाणपत्र देने के हालिया निर्णय के खिलाफ आज दोपहर गांधी चौक पर ओबीसी समाज की ओर से जोरदार विरोध प्रदर्शन किया गया। ओबीसी समुदाय ने शासन निर्णय की प्रतियां जलाकर सरकार के खिलाफ तीव्र नाराजगी व्यक्त की और चेतावनी दी कि यदि 48 घंटे के भीतर यह निर्णय वापस नहीं लिया गया, तो राष्ट्रीय ओबीसी आयोग के अध्यक्ष हंसराज अहिर का घेराव कर ओबीसी महामोर्चा निकाला जाएगा।
ओबीसी समाज का आरोप: “मराठों का ओबीसीकरण अन्याय”
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि मराठा समाज को कुणबी प्रमाणपत्र देने का फैसला सीधे तौर पर ओबीसी समाज पर अन्याय है। उन्होंने आरोप लगाया कि हैदराबाद गजेट की नोंदी के आधार पर मराठों को आरक्षण देने और शासन निर्णय में “गांव/नातेसंबंध/कुल” जैसे शब्दों का समावेश ओबीसी आरक्षण में घुसपैठ का रास्ता खोलता है।
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि केवल प्रतिज्ञापत्र देकर जाति प्रमाणपत्र लेना, राजस्व और सामाजिक न्याय विभाग द्वारा तय नियमों का उल्लंघन है। यह कदम ओबीसी, भटक्या और विमुक्त समाज के आरक्षण पर सीधा हमला है और इससे उनके हिस्से का आरक्षण और अधिक बंट जाएगा।
प्रा. अनिल डहाके का वक्तव्य
पत्रकार परिषद में प्रा. अनिल डहाके ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान ने जाति प्रमाणपत्र जारी करने की एक सख्त कार्यपद्धति तय की है। बावजूद इसके, सरकार ने अपने ही विभागों के नियम दरकिनार कर संविधान की पायमाल की है। उनका कहना था कि इस निर्णय से न केवल ओबीसी, बल्कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के समाज पर भी अन्याय होगा।
आंदोलन की रूपरेखा और चेतावनी
गांधी चौक पर जुटे ओबीसी समाज के प्रतिनिधियों ने सरकार के खिलाफ जोरदार नारेबाजी की। उन्होंने मांग की कि शासन निर्णय तुरंत रद्द किया जाए, अन्यथा व्यापक आंदोलन छेड़ा जाएगा। खासकर, राष्ट्रीय ओबीसी आयोग के अध्यक्ष को घेरकर “ओबीसी महामोर्चा” निकालने की घोषणा ने माहौल को और भी गंभीर बना दिया है।
बड़ी संख्या में समाजबंधु उपस्थित
इस आंदोलन में नंदू नागरकर, संदीप गिऱ्हे, विलास माथनकर, रामू तिवारी, पप्पु देशमुख, प्रा. अनिल डहाके, प्रविण पडवेकर, अजय वैरागडे, राजु बनकर, विकास टिकेदार, शालिक फाले, सुनिता धोबे, घनश्याम वासेकर समेत ओबीसी समाज और विभिन्न जातीय संगठनों के कार्यकर्ता एवं बड़ी संख्या में ओबीसी बंधु उपस्थित रहे।
मराठा समाज को कुणबी प्रमाणपत्र देकर आरक्षण का लाभ देने का सरकार का निर्णय अब ओबीसी समाज के लिए एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा बन गया है। आने वाले दिनों में सरकार पर दबाव और आंदोलन की तीव्रता बढ़ने की संभावना है।
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