चंद्रपुर जिले की राजनीति हमेशा से ही अपने उथल-पुथल और नेताओं के आपसी संघर्ष के लिए चर्चा में रही है। काँग्रेस की “चक्रघात” (आंतरिक कलह) की लंबी परंपरा रही है, जहाँ नेता एक-दूसरे को पदच्युत करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। अब यही प्रवृत्ति भाजपा में भी साफ़ दिखाई दे रही है। क्या यह भाजपा के लिए एक चिंताजनक संकेत है?
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काँग्रेस: चक्रघात का इतिहास
काँग्रेस, जिसकी नींव देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने रखी थी, आज अपने ही नेताओं की आपसी रंजिश की वजह से कमज़ोर हुई है। इंदिरा गांधी जैसे दिग्गज नेता भी इसकी भेंट चढ़े। चंद्रपुर में भी शांताराम पोटदुखे, वामनराव गड्डमवार, संजय देवतले और नरेश पुगलिया जैसे नेताओं के बीच कलह ने पार्टी को कमज़ोर किया। पूर्व सांसद स्वर्गीय बालू धानोरकर और आज प्रतिभा धानोरकर और विजय वडेट्टीवार जैसे नेता भी इसी राह पर चलते दिखते हैं। नतीजा? कभी छह विधायकों वाली काँग्रेस आज मात्र एक सीट तक सिमट गई है।
भाजपा: अनुशासन से अराजकता की ओर?
भाजपा को हमेशा से एक अनुशासित पार्टी के रूप में देखा जाता रहा है, जहाँ वरिष्ठ नेताओं का सम्मान किया जाता है। लेकिन चंद्रपुर में अब यह छवि धूमिल होती दिख रही है। सुधीर मुनगंटीवार और हंसराज अहीर के बीच चल रही तनातनी, शोभाताई फडणवीस का मुनगंटीवार से मतभेद, और अब किशोर जोरगेवार का उनके खिलाफ़ मोर्चा खोलना—ये सभी संकेत हैं कि भाजपा में भी अब काँग्रेस जैसी आंतरिक लड़ाई शुरू हो गई है।
विधानसभा चुनाव के बाद तो यह कलह और खुलकर सामने आई है। जोरगेवार, अहीर और फडणवीस गुट ने मुनगंटीवार के विरोध में एकजुट होकर पार्टी में दरार साफ़ कर दी है। करण देवतले और बंटी भांगडिया जैसे नेताओं का इस गुट में शामिल होना स्थिति को और गंभीर बना रहा है। सोशल मीडिया पर इनके समर्थकों की लड़ाई अब जनता के सामने है।
क्या यह भाजपा के लिए खतरा है?
काँग्रेस का पतन इसलिए हुआ क्योंकि उसके नेताओं ने पार्टी से ऊपर अपनी महत्वाकांक्षाओं को रखा। अगर भाजपा के नेता भी इसी रास्ते पर चले, तो क्या यह पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित होगा? चंद्रपुर में भाजपा की मज़बूत पकड़ है, लेकिन अगर आंतरिक कलह बढ़ी, तो कहीं ऐसा न हो कि काँग्रेस की तरह उसे भी चुनावी नुकसान उठाना पड़े।
राजनीति में प्रतिस्पर्धा स्वस्थ होती है, लेकिन जब यही प्रतिस्पर्धा अंदरूनी जंग में बदल जाए, तो पार्टी की जड़ें हिलने लगती हैं। काँग्रेस इसकी मिसाल है। अब भाजपा को यह समझना होगा कि उसकी ताकत उसके एकजुट नेतृत्व में है। अगर यही हाल रहा, तो चंद्रपुर की राजनीति में एक नया पाठ लिखा जा सकता है—जहाँ भाजपा, काँग्रेस की राह पर चल पड़े।