पर्यावरण संरक्षण और वन-वन्यजीव बचाव के लिए जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से चंद्रपूर के लोहारा–मामला जंगल क्षेत्र में वृक्षरक्षाबंधन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का नेतृत्व इको-प्रो संस्था ने किया, जिसमें सरदार पटेल महाविद्यालय, एफईएस गर्ल्स कॉलेज और समाजकार्य महाविद्यालय समेत कई शैक्षणिक संस्थानों के विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक सहभाग लिया।
इस विशेष आयोजन के दौरान विद्यार्थियों और पर्यावरणप्रेमियों ने जंगल के प्रतीकात्मक वृक्षों को राखी बांधकर यह शपथ ली कि वे वन, वन्यजीव और पर्यावरण की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहेंगे। यह वृक्ष उन्हीं स्मृतियों से जुड़े हैं, जहाँ 2008–09 में अदाणी कोल प्रोजेक्ट के खिलाफ व्यापक जनआंदोलन हुआ था और चंद्रपूरकरों के संघर्ष से यह प्रस्तावित कोयला खान प्रकल्प रद्द किया गया था।
आंदोलन की स्मृतियाँ और पर्यावरणीय संदेश
इस अवसर पर इको-प्रो के अध्यक्ष बंडु धोतरे, सेवानिवृत्त वन अधिकारी अभय बडकेलवार, तथा ताडोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प के विभागीय वन अधिकारी सचिन शिंदे प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
उन्होंने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि –
“जंगल और जैवविविधता ही चंद्रपूर की असली संपदा है। यदि इन्हें बचाना है तो हर नागरिक को पर्यावरण प्रहरी की भूमिका निभानी होगी।”
कार्यक्रम में यह भी याद दिलाया गया कि चंद्रपूर जिला सिर्फ खनिज संपदा ही नहीं, बल्कि ‘वाघांचा जिल्हा’ यानी बाघों की भूमि के रूप में पहचान बना चुका है। लेकिन कोयला खनन के कारण जंगलों और वन्यजीवों के अस्तित्व पर संकट मंडराता रहता है। ऐसे में जनजागृति और युवाओं की भूमिका ही वन्यजीव–मानव संघर्ष को कम कर सकती है।
समाज और विद्यार्थियों की भागीदारी
इस वृक्षरक्षाबंधन समारोह में डॉ. किरणकुमार मनुरे, डॉ. पुष्पांजली कांबळे, डॉ. कुलदीप गोंड, डॉ. उषा खंडाळे, डॉ. पुरुषोत्तम माहोरे समेत कई शिक्षाविद और समाजसेवक उपस्थित रहे।
वन विभाग की ओर से वनपाल उत्तम गाठले और वनरक्षक धनराज गेडाम समेत कई अधिकारी शामिल हुए।
विद्यार्थियों ने प्रकृति के प्रति आस्था दिखाते हुए ‘अदाणी गो बैक आंदोलन’ की स्मृतियों को जीवंत रखा और इस संदेश को दोहराया कि –
“निसर्गाचा वारसा पुढील पिढीला सुरक्षित हस्तांतरित करणे हीच खरी जबाबदारी आहे।” यह कार्यक्रम केवल पर्यावरणीय उत्सव नहीं बल्कि सामाजिक चेतना का प्रतीक है।
- पहला पहलू – वृक्षों को राखी बांधना पर्यावरण को परिवार का हिस्सा मानने की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है।
- दूसरा पहलू – यह आयोजन युवाओं में सामाजिक और पर्यावरणीय आंदोलन की स्मृतियों को जीवित रखता है।
- तीसरा पहलू – इससे ग्रामीणों, वन विभाग और नागरिकों के बीच सहयोग का संदेश जाता है कि केवल सरकारी प्रयास पर्याप्त नहीं, बल्कि समाज की सक्रिय भागीदारी जरूरी है।
इस तरह चंद्रपूर का वृक्षरक्षाबंधन कार्यक्रम न केवल पर्यावरण संरक्षण का आह्वान करता है, बल्कि पिछली पीढ़ी के संघर्षों को नई पीढ़ी तक पहुँचाकर भविष्य के लिए हरित और सुरक्षित संदेश भी देता है।
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