चंद्रपुर जिले में शराबबंदी का निर्णय 2015 में एक नैतिक और सामाजिक सुधार के रूप में लिया गया था। शासन-प्रशासन ने उम्मीद की थी कि इससे समाज में सकारात्मक बदलाव आएंगे, लेकिन नीयत और व्यवस्था दोनों ने ही इस फैसले को नाकाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
Whatsapp Channel |
वैध शराब बंद होते ही अवैध शराब की सप्लाई ने तेज रफ्तार पकड़ ली। दारूबंदी सिर्फ कागजों तक सीमित रह गई। जनता को न तो शराब से मुक्ति मिली, न ही अपराधों में कोई खास कमी आई। अंततः, 2021 में सरकार ने शराबबंदी हटाकर नया अध्याय शुरू किया — लेकिन यह अध्याय भ्रष्टाचार, लाचलुचपत और अनियमितताओं से सना हुआ प्रतीत हो रहा है।
750 परवाने: कौन बना ‘शराब का साहूकार’?
शराबबंदी हटते ही जिस रफ्तार से शराब दुकानों को लाइसेंस बांटे गए, वह चौंकाने वाली है। 315 की संख्या सीधे 750 तक जा पहुँची। सवाल यह है कि इतने लाइसेंस आखिर किस आधार पर और किन परिस्थितियों में जारी किए गए? 🔍राज्य उत्पादन शुल्क विभाग से लेकर स्थानीय स्वराज संस्था तक, हर विभाग की भूमिका पर अब सवालिया निशान लग रहा है।
लाचखोरी के रंगे हाथ सबूत:
पिछले वर्ष जब🔍 चंद्रपुर राज्य उत्पादन शुल्क विभाग के अधीक्षक संजय पाटील, दुय्यम निरीक्षक चेतन खारोड़े तथा कार्यालय अधीक्षक अभय खताल रिश्वत लेते पकड़े गए, तब जाकर यह भ्रष्टाचार सतह पर आया। लेकिन इससे पहले जो हुआ, वह एक लंबी योजना और मिलीभगत का हिस्सा था।
अब जांच, लेकिन किस पर होगी कार्रवाई?
अब सरकार ने 🔍संदीप दिवाण के नेतृत्व में 🔍SIT गठित की है, जो इन परवाना प्रकरणों की जांच करेगी। दिलचस्प यह है कि दिवाण वही अधिकारी हैं, जो शराबबंदी के समय जिले के पुलिस अधीक्षक थे। तब चंद्रपुर में बड़े पैमाने पर अवैध शराब का धंधा चलता रहा। अब वही अधिकारी जांच दल के मुखिया बनाए गए हैं। इससे जांच की निष्पक्षता पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है।
क्या जनता को मिलेगा जवाब?
इस बार चंद्रपुर की जनता सजग है। लोग चाहते हैं कि दोषियों को सजा मिले और इस पूरे परवाना घोटाले की परतें पूरी तरह उजागर हों। लेकिन अफसोस की बात यह है कि अधिकांश जांच समितियाँ ‘कागदी घोडा’ साबित होती रही हैं — रिपोर्ट बनती है, फाइल बंद होती है और जनता ठगी जाती है।
शराब नीति कोई साधारण नीति नहीं होती। यह नीति समाज की दिशा तय करती है। अगर इस नीति में भ्रष्टाचार की गंध हो, तो उसका असर केवल अर्थव्यवस्था पर नहीं, समाज की जड़ों पर भी पड़ता है। चंद्रपुर का यह मामला केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि सुनियोजित भ्रष्टाचार का उदाहरण है।
अब सवाल ये नहीं कि SIT क्या करेगी, सवाल यह है कि क्या वह करने दिया जाएगा जो जरूरी है?