डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती पर इस बार शहर की मुख्य सड़कों पर कुछ अलग ही दृश्य देखने को मिला। हर साल की तरह इस बार भी जगह-जगह ‘होर्डिंग्स’ लगाए गए, लेकिन इस बार उन होर्डिंग्स में एक बड़ा बदलाव देखा गया – जो चेहरा हर बार केंद्र में रहता था, यानी ‘गुरु-जी’, वह कहीं नजर ही नहीं आया। उसकी जगह अब एक नया चेहरा, युवा भाजपा नेता आशीष का तेजस्वी चेहरा दिखाई दे रहा है। यह दृश्य केवल होर्डिंग्स तक सीमित नहीं है, बल्कि यह घुग्घुस भाजपा के भीतर तेजी से बदल रहे राजनीतिक समीकरणों का संकेत भी है।
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गुरु-जी का चेहरा गायब – क्या भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन की आहट?
अब तक शहर के हर राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों में गुरु-जी की उपस्थिति और उनका चेहरा ही सबसे प्रमुख रूप से नजर आता था। लेकिन इस बार समर्थकों ने एक बड़ा संदेश दिया – अब नेतृत्व में बदलाव की जरूरत है। होर्डिंग्स से गुरु-जी का चेहरा हटाकर आशीष और उनके “आका” की तस्वीरें प्रमुखता से लगाई गईं। यह बदलाव सिर्फ एक चेहरे का नहीं, एक पूरे विचार का प्रतीक है। समर्थक अब एकतरफा नेतृत्व से नाराज हैं और खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। Ghugus Politics
आशीष की एंट्री – युवा जोश बनाम पुराना जोश
भाजपा के उभरते युवा नेता आशीष की औद्योगिक नगरी घुग्घूस में एंट्री ने कई पुराने नेताओं की नींद उड़ा दी है। जो नेता कल तक “हम हैं सिकंदर” की मुद्रा में दिखते थे, आज उन्हें अपनी ज़मीन खिसकती महसूस हो रही है। आशीष की अगुवाई में युवाओं की नई टोली शहर में सक्रिय हो गई है। विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों के आयोजन के जरिए वे भाजपा की छवि को नई दिशा में मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
राजनीतिक गलियारों में गूंजती चर्चा
गुरु-जी के समर्थक अब विरोधी खेमे की तरफ झुकते नजर आ रहे हैं। कल तक जो लोग गुरु-जी के नेतृत्व में राजनीति के सपने बुनते थे, आज वे जोरगेवार खेमे की ओर खिंचते दिखाई दे रहे हैं। इसका कारण सिर्फ आशीष की लोकप्रियता ही नहीं, बल्कि पुराने नेताओं में बढ़ती दूरी और संवादहीनता भी है।
चंद्रपुर जिले की भाजपा पहले से ही मुनगंटीवार और जोरगेवार गुटों में बंटी हुई है। अब यह लड़ाई शहर से निकलकर ग्रामीण क्षेत्रों और औद्योगिक नगरी तक पहुँच गई है। पार्टी के मंचों पर यह मतभेद अब छुपाए नहीं छुपते।
भाजपा की एकता पर सवाल?
आने वाले चुनावों को देखते हुए यह आंतरिक कलह भाजपा के लिए नुकसानदायक हो सकती है। जनता यह सवाल पूछने लगी है – “क्या भाजपा अब अपने पुराने नेतृत्व को पीछे छोड़ने को तैयार है?” या फिर यह बदलाव केवल एक दिखावा है? यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी इस उथल-पुथल से कैसे निपटती है। क्या युवा चेहरों को आगे लाकर भाजपा नई ऊर्जा से भर सकेगी, या फिर पुराने नेताओं की खींचतान से पार्टी को नुकसान होगा?
आशीष की एंट्री ने शहर की राजनीति को नई करवट दी है। यह केवल चेहरे का बदलाव नहीं, बल्कि विचारधारा और नेतृत्व के बीच की गहरी खींचतान का संकेत है।
अब फैसला जनता और पार्टी दोनों के हाथ में है – बदलाव स्वीकार करें या परंपरा को बनाए रखें।