Million Steels Pvt. Ltd, Public hearing: 432 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित होने जा रहे 30 मेगावाट क्षमता के Million पॉवर और स्टील प्लांट को लेकर शुक्रवार को बेलसनी-मुर्सा गांव में आयोजित जनसुनवाई में जमकर हंगामा हुआ। ग्रामीणों और किसानों ने आरोप लगाया कि जिस क्षेत्र में यह उद्योग स्थापित किया जा रहा है, वहां के स्थानीय लोगों को अपनी बात रखने का पर्याप्त अवसर ही नहीं मिला, जबकि स्वयंभू पर्यावरणविद और सामाजिक संगठन के कार्यकर्ता मंच पर हावी रहे।
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इस जनसुनवाई में बेलसनी, मुर्सा, येरूर, वढा, उसगांव और शेनगांव जैसे आसपास के गांवों के 50 से अधिक लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए अपने विचार व्यक्त किए। परंतु स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह प्रक्रिया एकपक्षीय होती दिखी, जहां स्थानीय किसानों और नागरिकों ने खुलकर कहा कि जब उद्योग उनके गांव में आ रहा है, तो प्राथमिक हक भी उनका होना चाहिए, लेकिन मंच पर बाहरी लोग अपने ‘पूर्व-लिखित भाषणों’ के साथ घंटों तक बोलते रहे और स्थानीय जनता बस दर्शक बनकर रह गई।
पर्यावरणवाद या अवसरवाद?
कई स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि ये तथाकथित पर्यावरण कार्यकर्ता केवल जनसुनवाई के दिन ही प्रकट होते हैं। उनका मकसद पर्यावरण की रक्षा नहीं बल्कि मीडिया कवरेज और व्यक्तिगत स्वार्थ साधना होता है। किसानों ने व्यंग्य में कहा – “ये लोग भाषणों के अंत में ‘हमें दुआओं में याद रखिए’ कहकर चले जाते हैं, लेकिन हमारी चिंता कोई नहीं करता।”
किसानों और नागरिकों की नाराजगी
किसानों का कहना था कि जब उद्योग उनके गांव में आ रहा है, तो बोलने का पहला अधिकार उन्हीं का होना चाहिए। ग्रामीणों ने स्पष्ट किया कि वे उद्योग के खिलाफ नहीं हैं। उनका मानना है कि इससे युवाओं को रोजगार मिलेगा और क्षेत्र का आर्थिक विकास भी होगा, बशर्ते पर्यावरणीय मानकों और प्रदूषण नियंत्रण का पालन कड़ाई से किया जाए।
पर्यावरणवादियों की भूमिका पर सवाल
जनसुनवाई के दौरान तनाव तब उत्पन्न हुआ जब कुछ पर्यावरणविद घंटों तक उद्योग के खिलाफ नियमों का हवाला देकर बोलते रहे। इस दौरान उपस्थित किसानों और ग्रामीणों ने विरोध जताते हुए सवाल किया कि यदि एक व्यक्ति ही एक-एक घंटे तक बोलता रहेगा, तो बाकी लोगों को अपनी बात कहने का मौका कब मिलेगा? यह झलकता है कि जनसुनवाई जैसे लोकतांत्रिक मंच पर भी अभिव्यक्ति की समानता नहीं है।
पूर्व जनप्रतिनिधि का बयान — विरोध भी, सौदे भी!
पूर्व जिलापरिषद सदस्य ने मंच से तीखा सवाल उठाया — “आज जो उद्योग के खिलाफ आग उगलते हैं, वही कल उद्योग प्रबंधन से हाथ मिलाकर सौदे करते नज़र आते हैं। यह दोहरा रवैया अब बर्दाश्त नहीं होगा।”
किसानों का पक्ष — हम उद्योग विरोधी नहीं
स्थानीय किसानों ने दो टूक कहा कि वे उद्योग के खिलाफ नहीं हैं। उन्हें उम्मीद है कि इससे युवाओं को रोजगार मिलेगा, लेकिन वे यह भी चाहते हैं कि पर्यावरणीय नियमों का कड़ाई से पालन हो। “हमें रोजगार चाहिए, लेकिन हमारी ज़मीन और पानी भी बचे रहना चाहिए।”
प्रबंधन की सफाई और आश्वासन
उद्योग प्रबंधन ने मंच से सभी सवालों का उत्तर देते हुए भरोसा दिलाया कि पूरी परियोजना पर्यावरणीय और कानूनी मानकों के अंतर्गत ही चलेगी। जल-संसाधनों और वायुप्रदूषण को लेकर विशेष सावधानी बरती जाएगी।
हालांकि सावल- जावब के दौर में कई मुद्दों पर तीखी आलोचना हुई, लेकिन समापन शांतिपूर्ण वातावरण में हुआ। सभी पक्षों ने यह सहमति जताई कि उद्योगों के आने से जहां क्षेत्र के युवाओं को रोजगार मिलेगा, वहीं संबधित पक्षों की जिम्मेदारी है कि वे पर्यावरण और जल संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।