छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित बहुचर्चित फिल्म ‘छावा’, जो प्रसिद्ध लेखक शिवाजी सावंत के उपन्यास पर आधारित है, वर्तमान में दर्शकों से जबरदस्त सराहना प्राप्त कर रही है। लेकिन चंद्रपुर में इस फिल्म के प्रदर्शन को लेकर भाजपा में शक्ति प्रदर्शन की होड़ मची हुई है। भाजपा के दो प्रमुख नेता— विधायक सुधीर मुनगंटीवार और विधायक किशोर जोरगेवार— फिल्म को लेकर अपनी-अपनी ताकत दिखाने में जुटे हैं। इस प्रतिस्पर्धा का सीधा लाभ सिनेमाघर मालिकों को मिल रहा है, लेकिन कार्यकर्ता असमंजस में पड़ गए हैं कि वे किस गुट के साथ जाएं।
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‘छावा’ फिल्म पर भाजपा नेताओं की सियासत
छत्रपति संभाजी महाराज के वीरतापूर्ण बलिदान को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से भाजपा के इन दोनों नेताओं ने अपने-अपने समर्थकों के लिए विशेष शो आयोजित किए। सबसे पहले सुधीर मुनगंटीवार ने पहल करते हुए भाजपा पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के लिए पूरे सिनेमाघर को बुक कर फिल्म दिखाई। इसके तुरंत बाद किशोर जोरगेवार भी पीछे नहीं रहे और उन्होंने भी विशेष शो का आयोजन कर डाला। इतना ही नहीं, उन कार्यकर्ताओं के लिए अतिरिक्त शो भी बुक किए गए, जो पहले शो में शामिल नहीं हो सके थे।
इस घटनाक्रम ने भाजपा में गुटबाजी को सतह पर ला दिया है। पहले से ही दो ध्रुवों में बंटे भाजपा कार्यकर्ताओं के सामने असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है— वे किस नेता के शो में शामिल हों? कुछ कार्यकर्ताओं ने संतुलन साधने के लिए दोनों नेताओं के साथ फिल्म देख ली, जिससे उनकी स्थिति हास्यास्पद बन गई।
फिल्म के जरिये समाज के विभिन्न वर्गों तक संदेश पहुंचाने की होड़
भाजपा कार्यकर्ताओं तक ही सीमित न रहते हुए, सामाजिक संगठनों, पत्रकारों, विद्यार्थियों, महिलाओं और समाज के विभिन्न वर्गों के लिए भी ‘छावा’ फिल्म के निःशुल्क शो आयोजित किए जा रहे हैं। इससे स्पष्ट होता है कि यह केवल ऐतिहासिक फिल्म का प्रचार-प्रसार नहीं, बल्कि इसके जरिए राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन भी किया जा रहा है।
‘छावा’ फिल्म छत्रपति संभाजी महाराज की वीरता और बलिदान की गाथा को उजागर करती है, लेकिन भाजपा के नेताओं के बीच शक्ति प्रदर्शन ने इसे सियासी रंग दे दिया है। सिनेमाघरों में भीड़ जुटाने के इस प्रयास ने गुटबाजी को और अधिक गहरा कर दिया है। वहीं, शिवाजी महाराज के अपमान पर चुप्पी साधने वाले नेताओं की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। कुल मिलाकर, चंद्रपुर में ‘छावा’ अब सिर्फ एक ऐतिहासिक फिल्म नहीं, बल्कि भाजपा की अंदरूनी राजनीति का नया अखाड़ा बन गया है।
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