महाराष्ट्र की राजनीति में 🔍भाजपा का गढ़ माने जाने वाले 🔎चंद्रपुर में दो दिग्गज नेताओं— 🔍सुधीर मुनगंटीवार और 🔍किशोर जोरगेवार—के बीच की राजनीतिक खींचतान अब खुलकर सामने आ रही है। विधानसभा चुनावों के बाद से ही दोनों नेताओं के बीच संबंधों में तल्खी बढ़ती जा रही थी, लेकिन अब यह टकराव सार्वजनिक रूप से नजर आने लगा है। हाल ही में एक ट्रैफिक सिग्नल के उद्घाटन ने इस अंदरूनी घमासान को और भड़का दिया।
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राजनीतिक टकराव की पृष्ठभूमि
सुधीर मुनगंटीवार चंद्रपुर जिले की राजनीति में लंबे समय से एक प्रभावशाली चेहरा रहे हैं। वे भाजपा सरकार में वित्त मंत्री रह चुके हैं और उनकी पकड़ प्रदेश और जिले दोनों स्तरों पर मजबूत है। दूसरी ओर, किशोर जोरगेवार चंद्रपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं और चंद्रपुर में अपनी अलग सियासी पहचान बनाने की कोशिश में हैं। विधानसभा चुनावों के बाद से ही इन दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक मतभेद खुलकर सामने आने लगे थे।
मुनगंटीवार के मंत्रिमंडल में शामिल न होने से जोरगेवार गुट में खुशी की लहर दौड़ गई थी। उन्हें यह महसूस हुआ कि अब जिले की राजनीति में उनकी पकड़ मजबूत होगी। मगर मुनगंटीवार ने बैकफुट पर जाने की बजाय चंद्रपुर में सक्रियता बढ़ा दी और विभिन्न सरकारी योजनाओं के उद्घाटन व लोकार्पण में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे।
‘ट्रैफिक सिग्नल’ बना टकराव का नया मोर्चा
हाल ही में 🔍चंद्रपुर जिले के 🔍पडोली चौक पर एक ट्रैफिक सिग्नल का लोकार्पण मुनगंटीवार के हाथों हुआ। चौंकाने वाली बात यह थी कि यह लोकार्पण स्थानीय विधायक किशोर जोरगेवार को नजरअंदाज कर किया गया, जिससे उनकी नाराजगी खुलकर सामने आ गई। इस मुद्दे को लेकर जोरगेवार ने सीधे जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने पूछा कि—
>क्या यह उद्घाटन राजकीय शिष्टाचार के तहत हुआ था?
>किस विभाग के निर्देश पर कार्यक्रम आयोजित किया गया?
>सिग्नल को चालू करने की चाबी किसे दी गई?
जोरगेवार की इस प्रतिक्रिया से साफ है कि वे खुद को नजरअंदाज किए जाने से खासे नाराज हैं। उनका दावा है कि जिस विधानसभा क्षेत्र के वे निर्वाचित विधायक हैं, वहां के विकास कार्यों में उनकी भूमिका को दरकिनार किया जा रहा है।
स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं में असमंजस
इस विवाद से स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं में भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं के बीच चल रही इस रस्साकशी ने कार्यकर्ताओं को दुविधा में डाल दिया है कि वे किसका समर्थन करें।
स्थानीय नेताओं के अनुसार, कार्यकर्ता यह समझ नहीं पा रहे कि उन्हें किस नेता के साथ खड़ा होना चाहिए। एक ओर मुनगंटीवार जैसे वरिष्ठ नेता हैं, जिनका राजनीतिक कद और अनुभव बड़ा है, वहीं दूसरी ओर जोरगेवार हैं, जो अपने विधानसभा क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाए रखना चाहते हैं।
भाजपा के लिए खतरे की घंटी?
यह विवाद केवल व्यक्तिगत अहंकार की लड़ाई नहीं है, बल्कि भाजपा की आंतरिक गुटबाजी को भी उजागर करता है। अगर यह खींचतान इसी तरह जारी रही, तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। और आगामी स्थिनीय चुनावों में कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव गुट) इस अंदरूनी कलह को भुनाने की कोशिश कर सकते हैं।
अब आगे क्या?
सूत्रों के मुताबिक, अब प्रशासन दोबारा विधिवत तरीके से ट्रैफिक सिग्नल का उद्घाटन करने की तैयारी कर रहा है ताकि इस विवाद को शांत किया जा सके। मगर यह केवल एक अस्थायी समाधान होगा। असली चुनौती भाजपा के लिए यह है कि वह अपने दोनों विधायकों के बीच सामंजस्य कैसे बनाए रखे।
अगर भाजपा नेतृत्व इस टकराव को सुलझाने में विफल रहता है, तो आने वाले चुनावों में यह विवाद पार्टी के लिए भारी पड़ सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा आलाकमान इस अंदरूनी संघर्ष को कैसे संभालता है और क्या मुनगंटीवार-जोरगेवार की इस खींचतान का कोई स्थायी समाधान निकलता है या नहीं।
चंद्रपुर भाजपा में मुनगंटीवार और जोरगेवार के बीच शीतयुद्ध केवल एक ट्रैफिक सिग्नल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आने वाले दिनों में और भी कई राजनीतिक मोर्चों पर देखने को मिल सकता है। यह विवाद केवल व्यक्तिगत टकराव नहीं बल्कि स्थानीय सत्ता संतुलन की लड़ाई है, जो भाजपा की भविष्य की राजनीति को प्रभावित कर सकती है।